Monday, December 23, 2024

कांग्रेस एससी, एसटी, ओबीसी का आरक्षण हटाकर मुसलमानों को देना चाहती है- भाजपा

नयी दिल्ली। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने बुधवार को आरोप लगाया कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अमेरिका में अपनी उस छिपी मंशा का इज़हार किया है कि कांग्रेस अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़े वर्ग के लिये आरक्षण हटाकर मुसलमानों को देना चाहती है।

 

भाजपा के आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने एक्स पर अपनी पोस्ट में कहा, “राहुल गांधी ने अमेरिका के वाशिंगटन डीसी में जॉर्जटाउन विश्वविद्यालय में छात्रों और शिक्षकों के साथ बातचीत करते हुये यह स्पष्ट कर दिया कि वह अंततः ‘आरक्षण खत्म’ करेंगे। इससे पता चलता है कि राहुल गांधी की जाति जनगणना तथा पिछड़ों और हाशिये पर पड़े लोगों को सशक्त बनाने की बात सिर्फ एक दिखावा है।”

 

 

उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि नेहरू गांधी परिवार ने आरक्षण को कमजोर किया है या सामाजिक रूप से वंचित लोगों के लिए सकारात्मक कार्यों को अपमानित किया है। यहां पंडित जवाहरलाल नेहरू से लेकर श्रीमती इंदिरा गांधी, राजीव गांधी तक की महत्वपूर्ण घटनाओं का कालक्रम है, जो एससी, एसटी और ओबीसी के प्रति उनके और कांग्रेस के तिरस्कार को सामने लाता है।

 

मालवीय ने कहा कि राजीव गांधी ने 1990 में मंडल आयोग की रिपोर्ट को खारिज कर दिया था और लोकसभा में ओबीसी के लिये आरक्षण का विरोध किया था। उन्होंने छह सितंबर, 1990 को लोकसभा में अपने भाषण में कहा था -“कांग्रेस ‘सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों’ की हरसंभव सहायता के पक्ष में है।” लेकिन हम एसईबीसी के भीतर एक विशेष समूह द्वारा ऐसे उपायों को अपनाने के पक्ष में नहीं हैं। उन्होंने यह भी आराेप लगाया कि राजीव गांधी आरक्षण उम्मीदवारों को बुद्धू भी कहते थे।

 

भाजपा आईटी प्रमुख ने आरक्षण पर श्रीमती इंदिरा गांधी के रुख पर टिप्पणी करते हुये कहा कि श्रीमती इंदिरा गांधी ने आरक्षण के मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। सुश्री नीरजा चौधरी की किताब ‘हाउ प्राइम मिनिस्टर्स डिसाइड’ के एक अंश से पता चलता है कि आरक्षण के संबंध में मंडल आयोग पर ‘एक्शन टेकन रिपोर्ट’ के लिये भी इंदिरा गांधी ने अपने कानून मंत्री शिव शंकर से कहा था, -‘ऐसे एटीआर तैयार करो कि सांप भी मर जाये और लाठी भी न टूटे।’ उन्होंने मंडल आयोग की रिपोर्ट को वस्तुतः अस्पष्ट कर दिया था।

 

मालवीय ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के वर्ष 1947 से 1964 के बीच मुख्यमंत्रियों को लिखे गये पत्रों को उद्धृत करते हुए लिखा, “मैंने ऊपर दक्षता और हमारी पारंपरिक लीक से बाहर निकलने का उल्लेख किया है। इसके लिये हमें इस जाति या उस समूह को दिये जाने वाले आरक्षण और विशेष विशेषाधिकारों की पुरानी आदत से बाहर निकलना जरूरी है। राष्ट्रीय एकता पर विचार करने के लिये हाल ही में हमारी यहां जो बैठक हुई, जिसमें मुख्यमंत्री मौजूद थे, उसमें यह तय किया गया कि मदद आर्थिक आधार पर दी जानी चाहिये, न कि जाति के आधार पर। यह सच है कि हम अनुसूचित जातियों और जनजातियों की मदद के संबंध में कुछ नियमों और परंपराओं से बंधे हैं। वे मदद के पात्र हैं, लेकिन फिर भी, मैं किसी भी प्रकार के आरक्षण को नापसंद करता हूं, विशेषकर सेवा में। मैं ऐसी किसी भी चीज़ के ख़िलाफ़ कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करता हूं, जो अक्षमता और दोयम दर्जे के मानकों की ओर ले जाती है। मैं चाहता हूं कि मेरा देश हर चीज में प्रथम श्रेणी का देश बने। जिस क्षण हम दोयम दर्जे को प्रोत्साहित करते हैं, हम खो जाते हैं।”

 

उन्होंने कहा कि पंडित नेहरू ने कहा था कि किसी पिछड़े समूह की मदद करने का एकमात्र वास्तविक तरीका अच्छी शिक्षा के अवसर देना है। इसमें तकनीकी शिक्षा भी शामिल है, जो लगातार महत्वपूर्ण होती जा रही है। बाकी सब कुछ किसी न किसी प्रकार की बैसाखी का प्रावधान है, जो शरीर की ताकत या स्वास्थ्य में वृद्धि नहीं करता है। यदि हम सांप्रदायिक और जातिगत आधार पर आरक्षण की व्यवस्था करते हैं, तो हम प्रतिभाशाली और सक्षम लोगों को कुचल देते हैं और दूसरे दर्जे या तीसरे दर्जे के बने रह जाते हैं।

 

 

मालवीय ने पंडित नेहरू को उद्धृत करते हुए कहा, “ मुझे यह जानकर दुख हुआ कि सांप्रदायिक विचार के आधार पर आरक्षण का यह व्यवसाय कितना आगे बढ़ गया है। मुझे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि पदोन्नति भी कभी-कभी सांप्रदायिक और जातिगत विचारों पर आधारित होती है। इस रास्ते में न केवल मूर्खता है, बल्कि आपदा भी है। आइये पिछड़े समूहों की हर तरह से मदद करें, लेकिन दक्षता की कीमत पर कभी नहीं। हम अपने सार्वजनिक क्षेत्र या वास्तव में किसी भी क्षेत्र को दोयम दर्जे के लोगों के साथ कैसे खड़ा करेंगे?”

 

उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि कांग्रेस एससी, एसटी, ओबीसी के लिये आरक्षण हटाकर मुसलमानों को दे देगी, जब तक कि हम उन्हें निरर्थक न बना दें। नेहरू-गांधी परिवार का इतिहास आरक्षण विरोधी स्वरों से भरा है।

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