Sunday, April 28, 2024

रामपुर तिराहा कांड में पत्रावलियों पर सीबीआई के पक्ष में आया कोर्ट का फैसला

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मुजफ्फरनगर। जनपद में गत 2 अक्टूबर 1994 की रात्रि में हुए रामपुर तिराहा कांड को लेकर कोर्ट में सुनवाई लगातार जारी है रामपुर तिराहा कांड पर आज एक और महत्वपूर्ण फैसला आया है जिसमें अपर सत्र न्यायाधीश कोर्ट नंबर 7 शक्ति सिंह की अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला देते हुए रामपुर तिराहा कांड की पत्रावलियों के चल रहे मामले पर सीबीआई के पक्ष में फैसला सुनाया है जिसमें अब आगे की सुनवाई फोटोस्टेट आधारित पत्रावली ऊपर होगी।

दरअसल प्रार्थना पत्र 185ख सी.बी.आई. की ओर से इस आशय से प्रस्तुत किया गया है कि प्रस्तुत प्रकरण में उच्च न्यायालय, इलाहाबाद द्वारा रिट याचिका संख्या 32982 ऑफ 1994 में पारित आदेश के अनुपालन में केस दर्ज किया गया था। प्रथम सूचना रिपोर्ट में यह अभिकथित किया गया है कि उत्तराखण्ड संघर्ष समिति द्वारा एक रैली दिनांक 02.10.1994 को दिल्ली में आयोजित की गयी थी, जिसमें बसों से पहाड़ी क्षेत्रों के लोग रैली में भाग लेने हेतु दिल्ली जा रहे थे। पुलिस द्वारा रामपुर तिराहा के निकट बसें रोकी गयी तथा 1/2 अक्टूबर 1994 की रात्रि को महिलाओं से बलात्कार व छेड़छाड़ की घटनायें हुई। सी.बी.आई. द्वारा विवेचना के उपरान्त आरोप पत्र न्यायालय स्पेशल मजिस्ट्रेट, सी.बी.आई. कोर्ट, देहरादून में दाखिल किया गया, जिसमें मूल प्रपत्र भी दाखिल किये गये थे। यह केस तमाम कोटों में ट्रान्सफर हुआ एवं ऐसे सभी न्यायालयों में मूल प्रपत्र ढूंढने का पूरा प्रयास किया गया, किन्तु ये प्रपत्र ढूंढे नहीं जा सके। मूल प्रपत्रों के सापेक्ष उनकी फोटोकॉपियां न्यायालय के रिकार्ड पर उपलब्ध हैं। अतः मूल प्रपत्रों के स्थान पर फोटोकॉपियों के आधार पर द्वितीयक साक्ष्य कराये जाने की अनुमति प्रदान किये जाने की याचना की गयी है।

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प्रार्थना पत्र के विरुद्ध अभियुक्तगण की ओर से लिखित आपत्ति 188ख दाखिल की गयी है। संक्षेप में आपत्ति में यह कहा गया है कि प्रार्थना पत्र किसी प्रवेश कुमार उप निरीक्षक सी.बी.आई. द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किया गया है। उनका इस केस से क्या लोकस स्टेन्डाई है, यह स्पष्ट नहीं किया गया है। वह न तो वादी हैं, न विवेचक हैं। इस कारण उन्हें यह कैसे मालूम है कि विवेचना पूर्ण करने के पश्चात आरोप पत्र के साथ मूल प्रपत्र भी दाखिल किये गये थे। मूल प्रपत्र दाखिल किये जाने का कोई प्रमाण नहीं है। सी.बी.आई. को इस बात का ज्ञान कब हुआ कि मूल प्रपत्र उपरोक्त स्पेशल केस से गुम हो गये हैं, जबकि इस स्पेशल केस की फाईल में कभी मूल प्रपत्र थे ही नहीं और यह पत्रावली शुरु से ही बिना मूल प्रपत्रों के चल रही है। सी.बी.आई. ने बिना न्यायालय के संज्ञान में यह बात लाये कि पत्रावली पर मूल प्रपत्र नहीं हैं,

दिनांक 18.10.2005 को फोटोग्राफ प्रपत्रों की मदद से ही विभिन्न धाराओं में चार्ज लगवा दिये गये जो मान्य नहीं हैं। इस केस में सी.बी.आई. फोटोग्राफ प्रतिलिपियों के सहारे 10 साक्षियों के बयान अंकित करा चुका है और घटना के 29 वर्ष बाद भी न्यायालय में अभियुक्तगण की पहचान करायी जा रही है जो किसी भी हालत में मान्य नहीं है। सी.बी.आई. द्वारा मूल प्रपत्रों को ढूंढने का क्या प्रयत्न किया गया है, इसका कोई उल्लेख प्रार्थना पत्र में नहीं है। सी.बी. आई. कोर्ट देहरादून से मूल प्रपत्र उपलब्ध कराने के लिये कोई प्रार्थना पत्र नहीं दिया गया। मूल प्रपत्र गुम हो जाने के बाद किसी भी न्यायालय में कोई जांच कराने के आदेश पारित कराने के लिये प्रार्थना पत्र या नोटिस नहीं दिया। मूल प्रपत्र गायब हो जाने की बाबत कोई रिपोर्ट लिखायी गयी या कोई प्रयत्न सी.बी. आई. द्वारा किया गया या नहीं, इसका भी कोई उल्लेख प्रार्थना पत्र में नहीं है। भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 66 के प्राविधानों के अन्तर्गत प्रयास करने के बावजूद भी जब तक यह सही एवं अन्तिम निष्कर्ष न निकल जाये कि गुम हुये मूल प्रपत्र किसी भी हालत में उपलब्ध नहीं किये जा सकते हैं, तब तक न्यायालय द्वारा केवल फोटोग्राफ प्रपत्रों के आधार पर बिना सर्टिफाइड कॉपी के सी.बी.आई. को द्वितीयक साक्ष्य प्रस्तुत करने की अनुमति प्रदान न की जाये और उनके प्रार्थना पत्र को निरस्त किया जाये।

इस मामले में कुछ सवाल थे जिसमें प्रथम क्या किसी प्रपत्र की फोटोकॉपी द्वितीयक साक्ष्य की परिभाषा के अन्तर्गत आती है… ?

द्वितीय- किन परिस्थितियों में फोटोस्टेट कॉपी साक्ष्य में प्रस्तुत की जा सकती है..?

तृतीय- क्या पत्रावली के इस स्तर पर फोटोस्टेट कॉपियों पर प्रदर्श डलवाये जा सकते हैं तथा क्या ऐसा किये जाने से पूर्व न्यायालय को अभिलेख की पोषणीयता पर अन्तिम रूप से कोई निष्कर्ष देना अनिवार्य है..?

  1. उक्त प्रश्नों के उत्तर की खोज करने हेतु यहां सर्वप्रथम भारतीय साक्ष्य अधिनियम के कुछ सुसंगत प्राविधानों का उल्लेख किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है। 6. भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 63 द्वितीयक साक्ष्य को परिभाषित करती है, जिसके अनुसार-

 

  1. द्वितीयक साक्ष्य – द्वितीयक साक्ष्य से अभिप्रेत है और उसके अन्तर्गत आते हैं- (1) एतस्मिनपश्चात् अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन दी हुई प्रमाणित प्रतियां, (2) मूल से ऐसी यान्त्रिक प्रक्रियाओं द्वारा जो प्रक्रियाएं स्वयं ही प्रति की शुद्धता सुनिश्चित करती हैं, बनाई गई प्रतियां तथा ऐसी प्रतियों से तुलना की हुई प्रतिलिपियां, (3) मूल से बनाई गई या तुलना की गई प्रतियां,

 

(4) उन पक्षकारों के विरुद्ध, जिन्होंने उन्हें निष्पादित नहीं किया है,

इस मामले की सुनवाई के बाद अब फैसला cbi के पक्ष में आने के कारण फोटोस्टेट आधारित पत्रावली ऑफर ही मामले की आगे की सुनवाई होगी जिसकी अगली तारीख 16 अगस्त 2023 लगाई गई है

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