नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) से उस याचिका के संबंध में जवाब मांगा है, जिसमें शिक्षण और गैर-शिक्षण पदों पर भर्तियों में जाति और अनुसूचित जनजाति श्रेणियों का कोटा खत्म कर धर्म आधारित आरक्षण लागू करने के फैसले को चुनौती दी गई है। न्यायमूर्ति विकास महाजन की अवकाश पीठ ने कहा कि इस मामले पर विचार करने की जरूरत है। पीठ ने जेएमआई और केंद्र से तीन सप्ताह के समय में याचिका पर अपना जवाब दाखिल करने को कहा।
अदालत ने स्पष्ट किया कि वह भर्ती प्रक्रिया पर रोक नहीं लगा रही है और निर्देश दिया कि याचिकाकर्ताओं – राम निवास सिंह और संजय कुमार मीणा ने विज्ञापन के अनुसार जिन श्रेणियों के लिए आवेदन किया है, उनके लिए एक-एक पद खाली रखा जाए।
अदालत ने कहा : “तीन सप्ताह के भीतर जवाबी हलफनामा दाखिल करें। इस बीच प्रतिवादी विश्वविद्यालय को निर्देश दिया जाता है कि वह प्रत्येक श्रेणी में याचिकाकर्ताओं के लिए एक पद खाली रखे। याचिकाकर्ताओं ने (1) सहायक कुलसचिव, (2) अनुभाग अधिकारी और (3) एलडीसी (अवर श्रेणी लिपिक) पद के लिए आवेदन किया है।”
इससे पहले, अदालत ने शीघ्र सुनवाई की मांग वाली इसी याचिका पर जामिया से जवाब मांगा था।
याचिकाकर्ता सिंह और मीणा क्रमश: एससी और एसटी समुदाय से हैं।
याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि 23 जून 2014 को जेएमआई की कार्यकारी परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव को रद्द किया जाना चाहिए, क्योंकि इसे उचित कानूनी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना अधिनियमित किया गया था।
याचिकाकर्ताओं ने 241 गैर-शिक्षण पदों के लिए भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगाने का भी अनुरोध किया, जिसमें अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवारों के लिए आरक्षण नहीं है।
जामिया की ओर से पेश स्थायी वकील प्रीतीश सभरवाल ने कहा था कि अल्पसंख्यक संस्थान होने के नाते यह एससी/एसटी के लिए आरक्षण नीति से बाध्य नहीं है।