जैसे दर्पण में मुख नहीं होता, फिर भी हमें मुख दिखाई देता है, वैसे ही सांसारिक भोगों में वास्तविक सुख नहीं होता, लेकिन प्रतीत होता है कि सुख मिल रहा है। विद्वानों का कहना है कि यदि भोग पदार्थों में सच में सुख होता, तो वह उस समय भी महसूस होना चाहिए जब भोग की इच्छा नहीं रहती। उदाहरण के लिए, प्यास शांत होने पर पानी में, क्षुधा शांत होने पर भोजन में और रोगमुक्त होने पर औषधि में सुख का अनुभव नहीं होता।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि भोगने से भोग और भोगने में हमारी आयु समाप्त हो जाती है। भोग किसी भी समय, किसी भी मूल्य पर मिल सकते हैं, लेकिन जिस आयु में भोग किए जाते हैं, वह आयु फिर कहीं भी उपलब्ध नहीं होती। इसलिए जीवन की अमूल्य अवधि को व्यर्थ भोगों में नष्ट न किया जाए।
उन्होंने कहा कि हम भोगों को नहीं भोगते, बल्कि भोग ही हमें और हमारी आयु को भोग लेते हैं। जीवन की सच्ची समझ और मूल्य पहचानने के लिए भौतिक सुखों के मोह से परे देखने की आवश्यकता है।