मेरठ। आज गढ़ रोड स्थित राधा गोविंद मंडप में राधा गोविंद मंडप परिवार द्वारा तुलसीदास महोत्सव के पावन अवसर पर दिव्य संत सम्मेलन आयोजित किया गया। गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी गोस्वामी तुलसीदास जयंती धूम धाम से मनायी गयी। संत सम्मेलन में हरिद्वार से परम पूज्य अनन्त विभूषित महामंडलेश्वर स्वामी अभयानंद सरस्वती महाराज , परम पूज्य वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी शिव प्रेमानंद, परम पूज्य महामंडलेश्वर स्वामी विद्या गिरी, परम पूज्य महामंडलेश्वर स्वामी नवल किशोर दास, परम पूज्य महामंडलेश्वर स्वामी कंचन गिरि जी , परम पूज्य महामंडलेश्वर भैया महाराज, पूज्य महंत नारायण गिरी महाराज, स्वामी सर्वेश्वरानंद महाराज, स्वामी पुष्करानंद महाराज, पूज्य स्वामी अनंतननंदा सरस्वती जी महाराज मौजूद रहें।
इस शुभ अवसर पर सभी पूज्य संतो ने उपस्थित विशाल भागवत प्रेमी समूह को अपने आशीर्वचनों से कृतार्थ किया। सभी संतो ने मनुष्य जीवन के पुरुषार्थ और लक्ष्यार्थ को संबोधित करते हुए मनुष्यत्व, मुमुक्षुत्व और महापुरुष संसरे को दुर्लभ बतलाते हुए इसे परम पिता परमात्मा की अहैतुकी कृपा और संतो की करुणा बतलाया। गोस्वामी तुलसी दास महाराज के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि बचपन का नाम इनका रामबोला था, क्योंकि जब अवतरित हुए तब उनके मुख में 32 दांत विराजमान थे और पहला शब्द जो उच्चारण किया वह था राम, इस लिए इनका नाम रामबोला पड़ा।
सभी संतो ने बतलाया कैसे उनका बचपन कष्टप्रध रहा और कैसे इस कष्टमय जीवन के बावजूद भी उनके भेंट नरहरि दास महाराज से सूकरक्षेत्र में हुई जिन्होंने उन्हें भगवान के दीक्षा प्रदान की और उनका नाम तुलसीदास रखा। तत्पश्चात स्वामी नरहरि दास जी ने शिक्षा के लिए इनको वाराणसी शेष सनातन जी महाराज के पास भेज दिया, जहां यह लगभग 15 वर्षो तक रहकर के पूज्य स्वामी जी महाराज से वेद और वेदांगों का अध्यन किया फिर इनको प्रेतराज और हनुमान महाराज की कृपा से चित्रकूट धाम में भगवान राम के दर्शन प्राप्त हुए। हमें तुलसीदास के जीवन से यह शिक्षा मिलती है कि तमाम परिस्थितियां प्रतिकूल होने के बावजूद भी सतगुरु और भगवान के चरणों मे अटूट श्रद्धा प्रेम और विश्वास होना चाहिए, तभी हम अप्राप्य को अप्राप्य बना सकते हैं और जीवन का सम्पूर्ण आनंद उठा सकते हैं। बड़ी संख्या में भक्तों ने अपने इष्ट मित्रों सहित कथा सुनकर धर्म लाभ उठाया।