Wednesday, May 7, 2025

क्या आप लेते हैं विटामिन पी? जानें क्यों है ये सेहत के लिए जरूरी

नई दिल्ली। बच्चे से लेकर बुजुर्ग किसी से पूछें कि आपका फेवरेट या पसंदीदा खाना क्या है तो तपाक से जवाब मिल जाएगा। किसी को वेज तो किसी को नॉन वेज पसंद होगा। अपनी पसंद बताने में कोई हिचक नहीं क्योंकि इससे मिलने वाली खुशी सीमा से परे होती है। असल में हममें से अधिकांश के लिए खाना जीवन के सबसे बड़े सुखों में से एक होता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आपके मूड को परफेक्ट बनाने वाला फूड विटामिन पी से भरपूर होता है! अब ये विटामिन पी होता क्या है? कुछ ऐसा जो आपके प्लेट से होते हुए पेट तक पहुंच आत्मा को तृप्त करता है।

 

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यहां ‘पी’ का अर्थ ‘प्लेजर’ से है। आप खुश तो आपका पेट खुश और वो खुश तो सेहत खुश। वर्षों से, शोधकर्ताओं ने आनंद के लिए खाने के पीछे के विज्ञान का अध्ययन किया है। उनके निष्कर्ष दिलचस्प और काफी हद तक उत्साहवर्धक हैं। भोजन हमारी जीभ और मस्तिष्क दोनों को संतुष्ट करता है। 2011 का एक रिसर्च है -डोपामाइन के सेहत पर पड़ने वाले असर को लेकर। डोपामाइन को ‘फील गुड हार्मोन’ के रूप में जाना जाता है क्योंकि यह मस्तिष्क के उन तारों को छेड़ता है जो खुशी, शांति, प्रेरणा और ध्यान को बढ़ावा देने में मदद करता है।

 

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इस शोध से पता चला कि मोटापे से जूझ रहे लोगों का डोपामाइन सही तरह से काम नहीं करता और इसलिए वो ओवर इटिंग करते हैं वो अति के चक्कर में मोटापे का शिकार हो जाते हैं। लेकिन यही अगर ठीक से काम करे तो सेहत पर सकारात्मक असर पड़ता है। जब हम भोजन का स्वाद सुख उठाते हैं तो डोपामाइन एक्टिव हो जाता है इससे जो आनंद की अनुभूति होती है जो भोजन को आसानी से पचाने में मदद करता है। 2020 में (एनएलएम में छपी है) भोजन के आनंद और स्वस्थ आहार के बीच संबंध को लेकर 119 अध्ययनों की समीक्षा की गई।

 

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सत्तावन प्रतिशत अध्ययनों में खाने के आनंद और आहार संबंधी परिणामों के बीच अनुकूल संबंध पाया गया। उदाहरण के लिए, 2015 के एक अध्ययन में भोजन के प्रति अधिक आनंद को उच्च पोषण स्थिति के साथ जोड़ा गया है। कुछ अध्ययन पौष्टिक, संतुलित आहार को बढ़ावा देने के लिए स्वस्थ खाद्य पदार्थों का आनंद लेने के महत्व पर जोर देते हैं। संस्कृत का बेजोड़ सूक्त है- संतोषम परम सुखम। भोजन के मामले में कहें तो जब हम वह खाते हैं जिसमें हमें रस मिलता है तो संतुष्टि का लेवल बढ़ जाता है, आहार की गुणवत्ता में सुधार होता है और अधिक खाने या अत्यधिक खाने की संभावना से हम बच जाते हैं।

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