प्राय: मनुष्य अपनी बड़ी-बड़ी त्रुटियों को छुपाकर रखता है और बड़ा आश्चर्य तो यह है कि वो मनुष्य भी ऐसा करते हैं, जो दूसरों को उपदेश देते हैं कि ईश्वर हर समय, हर स्थान, हर वस्तु में विद्यमान है। हम जो कर रहे हैं, कह रहे हैं, वह सब देखता रहता है, किन्तु उन्हें यह बात उस समय स्मरण नहीं आती, जब वे स्वयं किसी व्यक्ति के प्रति अनुचित व्यवहार करते हैं।
इससे भी अधिक आश्चर्य तो यह है कि लोग बुरा करने से नहीं बुरा कहलाने से डरते हैं। झूठ बोलते हैं पर झूठा कहलाना नहीं चाहते, बेईमानी करते हैं पर बेईमान कहलाना बुरा लगता है। तात्पर्य यह है कि बुरे काम से घृणा नहीं, बुरे नाम से घृणा है।
व्यापार, व्यवहार में चाहे सारे दिन झूठ बोलते हों, परन्तु एक बार भी किसी ने झूठा कह दिया तो उसे गाली समझकर लड़ने को तैयार हो जाते हैं। मरने-मारने को तैयार हो जाते हैं। यही है कलियुग का स्वरूप, बेईमानी करना बुरा नहीं, बेईमान कहलाना बुरा है।
याद रखो, अपनी भूल पर धूल मत डालो अर्थात भूल करके भूल को छुपाने का प्रयत्न मत करो अपितु उस भूल को उस दोष को निकालने का प्रयास करो ताकि पुनरावृत्ति न हो।
कोई कुछ भी करे मनुष्य मनुष्य से छिपा सकता है, किन्तु सर्वज्ञ, सर्वत्र, सदैव परमात्मा से बिल्कुल नहीं।