नई दिल्ली। दिल्ली हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने सिंगल बेंच के उस आदेश पर रोक लगा दी है, जिसमें सिंगल बेंच ने कहा था कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ चल रही जांच में एक साल के बाद भी कोई आरोप साबित नहीं हो पाता है तो उस व्यक्ति की जब्त संपत्ति ईडी को वापस करनी होगी। कार्यकारी चीफ जस्टिस मनमोहन की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस आदेश पर 11 मार्च तक की रोक लगाने का आदेश दिया। सिंगल बेंच के फैसले को ईडी ने डिवीजन बेंच में चुनौती दी थी।
दरअसल, जस्टिस नवीन चावला की सिंगल बेंच ने 31 जनवरी को अपने फैसले में कहा था कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ चल रही जांच में एक साल के बाद भी कोई आरोप साबित नहीं हो पाता है तो उस व्यक्ति की जब्त संपत्ति ईडी को वापस करनी होगी। ईडी ने इसी आदेश को चुनौती दी है।
सिंगल बेंच ने कहा था कि संपत्ति जब्त होने के बाद 365 दिनों तक अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ आरोप साबित नहीं होते तो जब्ती की अवधि स्वयं ही खत्म हो जाती है।
दरअसल, सिंगल बेंच भूषण स्टील एंड पावर के महेंद्र खंडेलवाल की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। महेंद्र खंडेलवाल ने याचिका में कहा था कि फरवरी 2021 में ईडी ने उनके घर छापा मारकर ज्वेलरी और कई दस्तावेज जब्त किए थे। याचिका में कहा गया था कि ईडी महेंद्र खंडेलवाल के खिलाफ कुछ भी साबित नहीं कर पाई है उसके बावजूद उसके घर से मिली ज्वेलरी और दस्तावेज उसे वापस नहीं किए गए हैं। याचिका में कहा गया था कि याचिकाकर्ता की संपत्ति को 11 फरवरी 2022 को ही जब्ती प्रक्रिया से बाहर कर देना चाहिए।
सिंगल बेंच ने साफ किया था कि मनी लॉन्ड्रिंग मामले में लंबित अवधि की गिनती उस समय से शुरू होती है जब से अदालत में केस चल रहा हो, लेकिन इसके तहत ईडी के समन को चुनौती देना, जब्ती प्रक्रिया को चुनौती देना शामिल नहीं है। ऐसे में एक साल के अंदर अगर जांच पूरी नहीं हो या आरोप साबित नहीं हो तो जब्त की गई संपत्ति वापस लौटानी होगी। सिंगल बेंच ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग कानून के तहत संपत्ति जब्त करने का प्रावधान काफी कड़ा है इसलिए जांच एजेंसी को जब्ती कार्रवाई शुरू करने से पहले सोच- विचार कर आगे बढ़ना चाहिए।