नयी दिल्ली-उच्चतम न्यायालय में एक पुनर्विचार याचिका दायर कर इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) के माध्यम से डाले गए मतों के साथ वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट (वीवीपैट) की पर्चियों की गिनती (मिलान)100 फीसदी तक बढ़ाने या पुरानी मतपत्र प्रणाली वापस लाने की मांग वाली याचिकाएं खारिज करने के 26 अप्रैल के फैसले की समीक्षा की गुहार लगाई गई है।
याचिकाकर्ता अरुण कुमार अग्रवाल की ओर से वकील नेहा राठी ने यह याचिका दायर की है। उन्होंने अपनी याचिका में दावा किया है कि 26 अप्रैल 2024 के शीर्ष अदालत के आदेश में स्पष्ट रूप से खामियां हैं। ऐसे पर्याप्त कारण थे जिनकी वजह से इसकी समीक्षा की आवश्यकता है।
याचिका में कहा गया है, “इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें मतदाताओं को यह सत्यापित करने की अनुमति नहीं देती कि उनके वोट सटीक रूप से दर्ज किए गए हैं। इसके अलावा उनकी प्रकृति को देखते हुए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें विशेष रूप से डिजाइनरों, प्रोग्रामर, निर्माताओं, रखरखाव तकनीशियनों आदि जैसे अंदरूनी सूत्रों द्वारा दुर्भावनापूर्ण परिवर्तनों के प्रति संवेदनशील हैं।”
याचिका में कहा गया है कि वर्तमान में वीवीपैट पेपर पर्चियों में से 5 फीसदी मतों का मिलान किया जाता है। उक्त आंकड़ा तथ्यात्मक रूप से गलत है और वास्तव में ईवीएम के सत्यापन के लिए 2 फीसदी से भी कम वीवीपैट पर्चियों की गिनती की जाती है। उक्त तथ्य को तत्काल मामले की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं द्वारा मौखिक रूप से भी बताया गया था।
याचिकाकर्ता ने ईवीएम की सिस्टम लोडिंग इकाइयों पर भी दावा किया और कहा कि इस पर पूरी चर्चा में इस तथ्य को नजरअंदाज किया गया कि यह असुरक्षित है और इसके ऑडिट की आवश्यकता है।
याचिकाकर्ता ने कहा, “अदालत ने इस संभावना को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया कि ‘एसएलयू’ में डेटा में केवल आवश्यक छवियों के अलावा अतिरिक्त बाइट हो सकते हैं। 27 अप्रैल 2024 को वायर में प्रकाशित माधव देशपांडे द्वारा लिखे गए एक लेख में इसका विस्तार से वर्णन किया गया है।”
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि यह कहना सही नहीं है कि परिणाम में अनुचित रूप से देरी होगी या सभी वीवीपैट की गिनती के लिए पहले ही तैनात लोगों से दोगुनी की आवश्यकता होगी।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दिपांकर दत्ता की पीठ एनजीओ ‘एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स’ और अन्य की ओर से दायर याचिकाओं पर 26 अप्रैल को फैसला सुनाया था।