बढ़ाएं दोस्ती का हाथ, बच्चों के साथ अधिक से अधिक समय बच्चों के साथ बिताएं।
बच्चों के साथ उनकी पसंद के कुछ खेल खेलें और छोटी-छोटी शरारतें करें।
बातों-बातों में स्कूल के बारे में जानकारी लेते रहें।
बच्चों की रूचियों के बारे में जानें और उनकी अच्छी रूचियों को बढ़ावा दें।
बच्चों की बातों को भी ध्यान देकर सुनें और यदि उनकी कोई समस्या है तो उसे हल करने में उनकी मदद करें।
बच्चों के साथ ईमानदार और स्पष्टवादी रहें। उन्हें भी स्पष्ट और ईमानदार बनने की शिक्षा दें।
बच्चों के होमवर्क के बारे में पूरी जानकारी रखें और ध्यान दें कि बच्चे पढ़ाई पूरी कर रहे हैं या नहीं। प्रोजेक्ट और पोस्टर बनाने में उनकी मदद करें।
अपनी इच्छाएं और महत्वाकांक्षाएं बच्चों पर न लादें। उनकी इच्छाओं को भी जानें।
गलत काम करने पर उन पर अधिक क्रोधित न हों। उन्हें यह शिक्षा दें कि मां बाप से बढ़ कर उनका कोई शुभचिन्तक नहीं हैं। जो भी फैसला या कार्य करें, माता-पिता को अवश्य बताएं।
फालतू खर्चों को कैसे नियन्त्रण में रखा जाये, पैसे की क्या कीमत है, इस बारे में उन्हें जानकारी दें। बच्चों को काफी हद तक अपनी आर्थिक स्थिति के बारे में बताएं ताकि बच्चे कभी अपनी पहुंच से अधिक खर्च करने को आपको मजबूर न करें।
बच्चों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े रहें, उनकी भावनाओं की कद्र करें।
बच्चों से उचित सम्मान पाने के लिए बच्चों के सम्मान का भी ध्यान रखें।
बच्चों को उनके दोस्तों और परिचितों के बीच शर्मिन्दा न करें।
बच्चों को सकारात्मक सोच देकर उनमें आत्मविश्वास बढ़ाएं।
उम्र के साथ होने वाले शारीरिक और मानसिक परिवर्तन की जानकारी दें। दोस्तों से गलत जानकारी से अच्छा है कि माता पिता बच्चों को सही जानकारी दें।
बच्चों के दोस्तों को घर पर कभी-कभी बुलाएं और उन्हें भरपूर स्नेह और प्यार दें। बच्चों के दोस्तों के बारे में जानकारी अवश्य रखें।
बच्चों में विश्वास जगाएं कि गलती होने पर गलती को सुधारा जा सकता है।
बच्चों के प्रति प्यार और सहानुभूति का रूख अपनायें। बच्चे भी यही सब सीखेंगे।
बच्चों के आदर्श मार्गदर्शक बनें और अच्छे मित्र बनें। डिक्टेटर न बनें। बात-बात पर बच्चों को टोकाटाकी न करें।
– नीतू गुप्ता