फेसबुक ‘ को बीती रात अल्प पक्षाघात हुआ तो पूरी दुनिया में फेसबुक के भक्त(फेसबुकिये) विचलित हो गए। लगा कि जैसे किसी ने उनकी जान ही छीन ली हो। मैं भी इस भक्तमंडली का सदस्य था लेकिन फेसबुक के शांत होने के बाद मैंने भी चैन की सांस ली। मैंने बहुत कम अवसरों पर देखा है, जब लोग किसी चीज के लिए इतने परेशान और फिक्रमंद होते हैं। फेसबुक तो कोई चीज भी नहीं है। एक सेवा है किन्तु अपनी उपयोगिता की वजह से आज दुनिया के एक बड़े हिस्से के लिए प्राणवायु बन गयी है।
दुनिया में जिंदगी के लिए जैसे भोजन -पानी और आक्सीजन आवश्यक है वैसे ही अब सोशल मीडिया एक आवश्यक अवयव बन गया है । अकेले फेसबुक दुनिया के 1560 मिलियन लोग फेसबुक की सेवाओं से जुड़े हैं ,और ऐसे जुड़े हैं कि कुछ समय के लिए ही फेसबुक के बंद होने से सदमे की स्थिति में पहुँच गए। फेसबुक के हितग्राहियों की दशा ऐसी हो गयी जैसे किसी सांप के मुंह से उसकी मणि छीन ली गयी हो, या किसी मछली को पानी से निकाल कर गर्म रेत पर फेंक दिया हो। जाहिर है कि फेसबुक ने बीस साल में ही जनमानस पर अपना इतना प्रभुत्व बना लिया है कि लोग उसके आदी हो गए हैं और एक पल भी ‘ फेसबुकाये ‘ बिना नहीं रह सकते।
फेसबुक ‘अनंग ‘ है। फेसबुक को शैव सम्प्रदाय का कोई ‘ हैकर ‘ ही अपनी तीसरी आँख से भस्म कर सकता है लेकिन हमेशा के लिए नहीं। फेसबुक की मारक क्षमता से समाज ही नहीं बल्कि सियासत भी बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है, बावजूद इसके फेसबुक अपनी जगह है, उसे मिटाने की, हैक ‘करने की तमाम कोशिशें बार-बार नाकाम हो जाती है। 5 मार्च 2024 को भी ऐसी ही कोशिशें नाकाम हुईं और लोगों ने चैन की सांस ली। सवाल ये है कि गुण-दोषों से भरी फेसबुक आम आदमी की जिंदगी का अभिन्न हिस्सा बन कैसे गयी? इसके लिए हम खुद जिम्मेदार है। हमने ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न की कि हम आपस में ही एक-दूसरे से कटते चले गये। संवाद की सूरत लगातार कम होती चली गयी।
आज फेसबुक है तो तमाम दूसरी बुक्स बेकार है। फेसबुक आज का सबसे बड़ा और सबसे ज्यादा लोकप्रिय महाग्रंथ बन चुका है। फेसबुक किसी से भेदभाव नहीं करता। फेसबुक की अपनी दुनिया है। अपने कानून हैं। अपने तौर-तरीके हैं। फेसबुक की अपनी कोई भाषा नहीं है। फेसबुक अपने उपयोगकर्ताओं को अपनी पसंद की भाषा चुनने का अवसर देती है। फेसबुक का अपना लोकतंत्र है, अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है, हालाँकि इसके अपने मापदंड हैं, सीमाएं है। फेसबुक भी अभिव्यक्ति की आजादी को एक सीमा के बाद पाबंद करती है, किन्तु उस तरीके से नहीं जिस तरीके से आज दुनिया में तमाम धार्मिक और लोकतांत्रिक सरकारें कर रही हैं। फेसबुक दुनिया के तमाम सत्ता प्रतिष्ठानों के लिए खतरा है। इसीलिए जब तब दुनिया के तमाम देशों की सरकारें फेसबुक को प्रतिबंधित करने के लिए इंटरनेट को ही बंद करा देती हैं।
कहते हैं कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है, सो इसी तरह अमेरिका के एक कालेज छात्र मार्क जुकरबर्ग की मित्रों से जुड़े रहने की जरूरत ने 2004 में फेसबुक को जन्म दिया था जो आज दुनिया के एक बड़े हिस्से की जरूरत बन चुकी है। दुनिया के तमाम लोग जुकरबर्ग के शुक्रगुजार हैं फेसबुक बनाने के लिए। फेसबुक दुनिया का ऐसा मेला है जहाँ दशकों से गुम हुए लोग आपस में मिल जाते हैं। ये काम आसान काम नहीं है। फेसबुक ने मनुष्य के एकांत में दखल किया है । मनुष्य को अवसाद से बचाया भी है और सामाजिक सुरक्षा भी दी है ,साथ ही अश्लीलता ,घृणा भी परोसी है। फेसबुक गोपनीयता के लिए खतरा भी है और समाज को पारदर्शिता की ओर भी ले जाती है। यानि फेसबुक एक दोधारी तलवार है। ये ऐसा उस्तरा भी है जो यदि बंदर के हाथ लग जाये तो हजामत बनने के बजाय गर्दन काटने का भी काम कर सकती है।
फेसबुक के अनेक रूप है। फेसबुक दवा भी है और जहर भी। फेसबुक मनोरंजन भी देती है और विकृति भी। फेसबुक के पास दोस्ती और दुश्मनी के लिए पर्याप्त समय है। फेसबुक राजनीतिक हस्तक्षेप भी करती है और निजता पर भी डाका डालती है। फेसबुक नशा भी है और नशा मुक्ति भी। फेसबुक के समर्थक भी हैं और विरोधी भी। फेसबुक अबाल-वृद्ध सबकी मित्र है। सबकी अभिभावक भी है। सबकी हमराह, हम जुल्फ,हमदर्द, हमजोली यानि सब कुछ है। फेसबुक किसी के लिए गीता है तो किसी के लिए कुरआन। किसी के लिए बाइबल है तो किसी के लिए कुछ और। इतना रूतबा और व्यापकता शायद किसी दूसरे माध्यम के पास नहीं हैं।
फेसबुक से आप मनोरंजन, ज्ञानार्जन, व्यवसाय, महिमा मण्डन और मान मर्दन जो चाहे सो कर सकते है। ये आपके ऊपर है कि आप फेसबुक का कैसे इस्तेमाल करना चाहते है। दुनिया में जैसे विभिन्न प्रकार के नशा से मुक्ति के लिए अभियान चलाये जाते हैं उसी तरह फेसबुक से मुक्ति के लिए भी अभियान चलाये जाते हैं। कुछ लोग 31 मई को फेसबुक छोडो दिवस के रूप में भी मानते हैं। कुल मिलाकर फेसबुक आज मनुष्य जीवन की प्राणवायु है। इस पर जब-जब खतरा मंडराता है दुनिया बेचैन हो जाती है। इसलिए जरूरी है कि आप फेसबुक से मुहब्बत करते हुए भी इसका कोई न कोई विकल्प खोजकर रखिये अन्यथा खुदा न खास्ता किसी दिन फेसबुक समाप्त हुई उस दिन आपकी दुनिया भी आपको समाप्त होती सी नजर आएगी। वैसे मै फेसबुक को कलियुग का असली अवतार मानता हूँ। आइये हम सब फेसबुक की सलामती के लिए समवेत होकर ईश्वर से, हैकरों से प्रार्थना करें कि वे इस पाकीजा उपक्रम से छेड़छाड़ न करें और ईश्वर इसे लम्बी उम्र दे ।
(राकेश अचल-विभूति फीचर्स)