Saturday, May 18, 2024

संदेशखाली के संदेशों को सुना जाना आवश्यक

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माँ,माटी और मानुष के नारे के साथ पश्चिम बंगाल में स्थापित हुई सर्वभारतीय तृणमूल कांग्रेस के ‘राज में माँ, माटी और मानुष तीनों बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। माँ काली को प्रथम देवी के रूप में पूजने वाली इस संस्कृति में महिलाओं की स्थिति संदेशख़ाली की घटनाओं से ही उजागर हुई है। राज्य सरकार संरक्षित नेताओं द्वारा किए जा रहे श्रृंखलाबद्ध अत्याचारों के बारे में इससे पहले देश दुनिया को पता भी न था कि कालिंदी नदी के इस तटीय क्षेत्र में महिलाएँ योजनाबद्ध षडयंत्र के तहत किए जा रहे हैं दैहिक शोषण का शिकार हो रही थीं। किसानों और महिलाओं के साथ जो अत्याचार पूर्ववर्ती लेफ़्ट सरकार के लोग पश्चिम बंगाल में करते रहे उसे तृणमूल कांग्रेस ने और आगे ही बढ़ाया है। तृणमूल जो ‘सर्वभारतीयÓ शब्द को छोड़ बैठी है और तुष्टीकरण की नीति के साथ माफिय़ा समूह के साथ ‘राजÓ कर रही है इसीलिए महिलाओं के शोषण की आवाज़ को दबाया जाता रहा। माफिय़ा और गुंडों को सरकारी संरक्षण कितना अधिक है इसका पता इसी बात से लगता है कि हज़ारों करोड़ के घोटाले और महिलाओं के साथ जघन्य अत्याचार के आरोपी अपने जिला स्तर के एक कार्यकर्ता को पकडऩे में ही राज्य की पुलिस 55 दिन लगा देती है। बहरहाल संदेशख़ाली की घटना समाज को कई संदेश दे रही है जिन्हें सुनना और अमल में लाया जाना आवश्यक है।
पश्चिम बंगाल के संदेशख़ाली क़स्बे का सच तब दुनिया के सामने आया जब आठ फऱवरी को क्षेत्र की महिलाओं ने बड़ा प्रदर्शन किया। झाड़ू और लाठी हाथ में लेकर ये महिलाएँ इस ‘भद्रदेशÓ में अपने साथ लंबे समय से किए जा रहे जघन्य दैहिक शोषण के विरुद्ध प्रदर्शन करने सड़क पर उतरी थीं। यह प्रतिरोध भी शायद सामने न आ पाता यदि पाँच जनवरी के ईडी पर हमले के घटनाक्रम के बाद मामले का मुख्य आरोपी शाहजहाँ शेख यहाँ से फऱार न हुआ होता। तृणमूल कांग्रेस का नेता शाहजहाँ शेख़ लगभग 10,000 करोड़ रुपए के मनरेगा और राशन वितरण घोटाले का आरोपी है। इसी आर्थिक अपराध की जाँच करने के लिए प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की टीम ने पाँच जनवरी को संदेशखाली में शाहजहाँ शेख़ के आवास पर छापा मारा था। तब सत्ता संरक्षित इस माफिय़ा के गुंडों ने ईडी की टीम पर हमला कर उसके अधिकारियों को घायल कर मार भगाया था। शाहजहाँ तृणमूल में कितनी हैसियत रखता है इसे इस बात से समझा जा सकता है कि ईडी पर हमले के बाद भी तृणमूल शाहजहाँ शेख का बचाव ही कर रही थी। शाहजहाँ का आतंक इतना ज़्यादा था कि उसके फऱार होने के लगभग एक महीने बाद पीडि़त महिलाएँ अपनी आपबीती बताने का साहस जुटा सकीं। इन महिलाओं का दर्द है कि संदेशख़ाली क्षेत्र में ऐसी कौन महिला है जिसकी इज़्ज़त को शाहजहाँ शेख और उसके गुंडों शिवप्रसाद हज़ारा व उत्तम सरदार के हाथों तार-तार न किया गया हो। कभी बांग्लादेश से अवैध रूप से घुसपैठ करके आया शाहजहाँ एक मज़दूर हुआ करता था लेकिन तत्कालीन सत्ताधारी लेफ़्ट पार्टी का कार्यकर्ता बनने के बाद उसने उन्हीं किसानों की ज़मीनों पर क़ब्ज़े शुरू कर दिए लेफ़्ट पार्टी जिनके दम पर बंगाल में शासन करती थी और ख़ुद को उनकी सबसे बड़ा हमदर्द बताती थी। वह किसानों से ज़मीन बटाई पर लेता और उसमें खारा पानी भर के झींगा मछली का उत्पादन करता। इससे मोटी कमाई होती लेकिन किसान के खेत खारे पानी से बंजर हो जाते थे। तृणमूल कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद 2012 में शाहजहाँ शेख़ ने तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन कर ली। इसके बाद ‘ऊपर तक पहुँच का फ़ायदा उठाकर उसने अपने आतंक और ज़मीन क़ब्ज़ाने के काम को और ज़्यादा तेज कर दिया। किसानों को दबाए रखने के लिए उसने संदेशख़ाली की स्त्रियों पर अपनी बुरी नजऱ डालनी शुरू कर दी। कभी पीठापुली (बंगाल का एक ख़ास पकवान जो चावल के आटे में खोया भरकर बनाया जाता है) बनाने के नाम पर महिलाओं को ज़बरन उनके घरों से उठाकर शाहजहाँ के यहाँ ले जाया जाता। इसके बाद पार्टी मीटिंग के नाम पर उन्हें बुलाया जाने लगा। महिलाओं और उनके परिवारजनों के पास न कह पाने का कोई विकल्प नहीं रहता क्योंकि ऐसा करने पर शाहजहाँ के गुंडे आकर महिलाओं और परिवार के लोगों से बर्बरता के साथ मारपीट करते। महिलाओं ने जो व्यथा बतायी है उसके मुताबिक़ सुन्दर स्त्रियों को छाँट-छाँट कर जबरन उठवा लिया जाता। रात में पार्टी मीटिंग के नाम पर गाँव वालों को पार्टी ऑफि़स में बुलाया जाता और वहीं कुछ महिलाओं को छांटकर अंदर ले जाया जाता फिर दरवाज़े बंद करके जो किया जाता अब भी कोई महिला उसे बताने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही है। संदेशख़ाली और उसके आस पास के क्षेत्र की महिलाएं सालों से शाहजहाँ और उसके गुंडों की इस बर्बरता के दर्द से गुजऱ रही थीं। पुलिस में शिकायत करने पर पुलिस कार्रवाई करने की बजाय उलटे कहती कि जाकर शाहजहाँ से समझौता कर लो। इस प्रकार राज्य संरक्षित गुंडों के आतंक को ये महिलाएँ और उनके परिजन अपने भीतर ही ज़ब्त किए रहे।
संदेशख़ाली में महिलाओं और किसानों के साथ हुए अत्याचारों के इस घटनाक्रम में महत्वपूर्ण संदेश छिपे हुए हैं। इससे पश्चिम बंगाल में राज्य संरक्षित गुंडों के सालों से चले आ रहे आतंक की ख़बर तो मिलती ही है साथ ही पता चलता है कि यह राज्य कितनी अराजकता का शिकार है। ऐसे में सभी राजनीतिक दलों, बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, शासन, पुलिस और विशेष रूप से महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का दायित्व है कि वे यह पता करें कि कहीं ऐसे और संदेशख़ाली तो नहीं जहाँ शाहजहाँ शेख़ और उसके गुंडों जैसे बर्बर नरपिशाच तो नहीं पनप रहे। इस घटनाक्रम से यह भी संदेश लिया जा सकता है कि स्त्री सम्मान किसी एक राजनीतिक संगठन का ही दायित्व नहीं है बल्कि यह सभी की जि़म्मेदारी होनी चाहिए। यह प्रश्न इसलिए खड़ा हुआ है क्योंकि संदेशख़ाली मामले में केवल भारतीय जनता पार्टी और सामाजिक सांस्कृतिक राष्ट्रवादी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रतिरोध ही सामने आया है, माँ,माटी और मानुष की बात करने वाली तृणमूल कांग्रेस तो इस अतिसंवेदनशील मामले को दबाने में ही लगी रही। आरोपी शाहजहाँ को हिरासत में लेने में पश्चिम बंगाल पुलिस को 55 दिन लग गए। कोलकाता हाईकोर्ट के आदेश के बाद उसे हिरासत में लिया जा सका। इसके बावजूद तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता ने प्रेस कॉन्फ्ऱेन्स में यहाँ तक कहा कि हिरासत में लिए जाने का अर्थ यह नहीं है कि कोई अपराधी साबित हो गया है। इस मामले में अन्य राजनीतिक दलों की चुप्पी भी ख़तरनाक है। महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों का चुप भी यह बताता है कि वे कितने सिलेक्टिव हैं। जबकि इस घटनाक्रम का सीधा संदेश है कि ऐसे बर्बर स्त्री विरोधी आतंकी मानसिकता वाले लोगों के साथ निपटने में सब को एक साथ खड़े होना चाहिए।
संदेशख़ाली का एक संदेश यह भी है कि पुलिस, प्रशासन और राज्य का जनता के प्रति क्या दायित्व होना चाहिए। क्या ये संस्थाएं किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं का बचाव करने के लिए हैं या जनता के अधिकारों की रक्षा करने के लिए हैं? इसकी पड़ताल कौन कर रहा है कि हमारे समाज में ऐसे शाहजहाँ शेख तो नहीं पल रहे हैं। यदि कहीं ऐसा हो रहा है तो अब दलगत राजनीति, भेदभाव और व्यक्तिगत लाभ-हानि छोड़कर पूरे समाज को साथ आने की आवश्यकता है जिससे ऐसा तीव्र प्रतिरोध खड़ा किया जा सके कि देश में कहीं दूसरा संदेश ख़ाली न बन सके और कोई शाहजहाँ किसानों और स्त्रियों के साथ ऐसी बर्बर हरकत करने के बारे में सोच भी न सके।
(डॉ वंदना गाँधी -विनायक फीचर्स)

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