अपने समय की ब्लॉकबस्टर रही मूवी, ‘राम तेरी गंगा मैली का एक गाना खूब लोकप्रिय हुआ था – राम तेरी गंगा मैली हो गयी, पापियों का पाप धोते धोते। एक पार्टी के बारे में अक्सर विपक्षी कहते हैं कि वह राजनीतिज्ञों के पापों को भी पुण्य में बदल देती है।
दरअसल मोक्षदायिनी गंगा में पहले यही गुण था। वैज्ञानिकों के अनुसार गंगाजल में बैक्टीरियोफेज कभी खूब थे जो हानिकारक रोगाणुओं का भक्षण कर जल को रोग मुक्त करते थे मगर इसकी भी एक सीमा थी। अब गंगाजल में बैक्टीरियोफेज कमतर हो चले हैं और कई जगह तो गंगाजल इतना अशुद्ध हो चला है कि पीने की कौन कहे, वह स्पर्श लायक भी नहीं है।
लोकसभा चुनाव के लिये एक पार्टी के हाल के आबंटित टिकटों के कुछ चेहरे भी ऐसे हैं जिनके बारे में विपक्षियों का यह आक्षेप कि इस पार्टी में आकर जघन्य पाप भी धुल जाते हैं, सही लगता है । यहां पार्टी में शामिल होने वाला स्वच्छ धवल और पवित्र हो जाता है मगर यह कब तक चलेगा? आखिर इस राजनीतिक गंगा की भी दोष प्रक्षालन की कोई तो सीमा होगी? और यह भी ध्यातव्य है कि इस समय यह पार्टी अपनी लोकप्रियता के चरम बिन्दु पर है और चरम बिन्दु के तदनंतर क्या होता है, कहने की जरुरत नहीं।
कथित पार्टी की सफलता का मूल कारण केवल एक है – हिन्दू माईंड सेट को सेट कर लेना, उसके मन की बात को भांपना और तदनुसार रणनीतियां बनाना। राम जी तो सभी का बेड़ा पार करते हैं और इस पार्टी के यूसपी तो राम जी ही है। जन जन, जन मन में व्याप्त राम जी। राम जी राजनैतिक नैया पार कराने के भी शर्तियां माध्यम बन गये हैं।
इस समय देश में रामनामी बयार बह रही है। राम नाम की लूट है लूट सको तो लूट, अंत काल पछतायेंगे जब तन जैहें छूट। और राम नाम की इसी बहती गंगा में हाथ धोने कथित पार्टी में शामिल हो रहे हैं लोग, जो पापों को धो देने की गारंटी देती है। नये गठबंधन बन रहे हैं। संसद प्रवेश की गारंटी वाला टिकट भी ले रहे हैं। शीर्ष नेता जो विजय की गारंटी हैं।
मगर जनता सब छल छद्म देख रही है। हमेशा उसे मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। राम जी तो ठीक हैं मगर आखिर में किया गया जमीनी काम ही काम आयेगा। यह यूफोरिया, यह नशा हमेशा के लिए नहीं है। हमें तो लगता है कि बस यह इस पार्टी का उत्कर्ष बिन्दु है।
-डॉ अरविन्द मिश्रा
दरअसल मोक्षदायिनी गंगा में पहले यही गुण था। वैज्ञानिकों के अनुसार गंगाजल में बैक्टीरियोफेज कभी खूब थे जो हानिकारक रोगाणुओं का भक्षण कर जल को रोग मुक्त करते थे मगर इसकी भी एक सीमा थी। अब गंगाजल में बैक्टीरियोफेज कमतर हो चले हैं और कई जगह तो गंगाजल इतना अशुद्ध हो चला है कि पीने की कौन कहे, वह स्पर्श लायक भी नहीं है।
लोकसभा चुनाव के लिये एक पार्टी के हाल के आबंटित टिकटों के कुछ चेहरे भी ऐसे हैं जिनके बारे में विपक्षियों का यह आक्षेप कि इस पार्टी में आकर जघन्य पाप भी धुल जाते हैं, सही लगता है । यहां पार्टी में शामिल होने वाला स्वच्छ धवल और पवित्र हो जाता है मगर यह कब तक चलेगा? आखिर इस राजनीतिक गंगा की भी दोष प्रक्षालन की कोई तो सीमा होगी? और यह भी ध्यातव्य है कि इस समय यह पार्टी अपनी लोकप्रियता के चरम बिन्दु पर है और चरम बिन्दु के तदनंतर क्या होता है, कहने की जरुरत नहीं।
कथित पार्टी की सफलता का मूल कारण केवल एक है – हिन्दू माईंड सेट को सेट कर लेना, उसके मन की बात को भांपना और तदनुसार रणनीतियां बनाना। राम जी तो सभी का बेड़ा पार करते हैं और इस पार्टी के यूसपी तो राम जी ही है। जन जन, जन मन में व्याप्त राम जी। राम जी राजनैतिक नैया पार कराने के भी शर्तियां माध्यम बन गये हैं।
इस समय देश में रामनामी बयार बह रही है। राम नाम की लूट है लूट सको तो लूट, अंत काल पछतायेंगे जब तन जैहें छूट। और राम नाम की इसी बहती गंगा में हाथ धोने कथित पार्टी में शामिल हो रहे हैं लोग, जो पापों को धो देने की गारंटी देती है। नये गठबंधन बन रहे हैं। संसद प्रवेश की गारंटी वाला टिकट भी ले रहे हैं। शीर्ष नेता जो विजय की गारंटी हैं।
मगर जनता सब छल छद्म देख रही है। हमेशा उसे मूर्ख नहीं बनाया जा सकता है। राम जी तो ठीक हैं मगर आखिर में किया गया जमीनी काम ही काम आयेगा। यह यूफोरिया, यह नशा हमेशा के लिए नहीं है। हमें तो लगता है कि बस यह इस पार्टी का उत्कर्ष बिन्दु है।
-डॉ अरविन्द मिश्रा