Tuesday, April 30, 2024

डिप्रेशन से पायें छुटकारा

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उदासी जीवन का एक सहज भाव है परंतु उदासी का भाव जब बिना किसी कारण मन की गहराइयों में उतरकर इस तरह छा जाये कि कुछ भी अच्छा न लगे, जीवन बिल्कुल व्यर्थ व नीरस लगने लगे तो समझो हम अवसाद व डिप्रेशन से बुरी तरह घिर गये हैं।

डिप्रेशन के लक्षण:- डिप्रेशन एक आम शब्द है। किसी का कोई नुक्सान हो जाये, किसी को कोई परेशानी हो अथवा दिमागी तनाव हो तो लोग तुरंत अपने आपको डिप्रेशन का शिकार मान लेते हैं, जबकि ऐसी बात नहीं है। मनोरोग विज्ञान में डिप्रेशन उस बीमारी का नाम है जिसमें शारीरिक व मानसिक लक्षण जुड़े रहते हैं। इनमंं मानसिक लक्षण ज्यादा महत्वपूर्ण हैं-तनाव, याददाश्त की कमी, मन की परेशानी, किसी काम में मन न लगना तथा हर वक्त किसी न किसी निषेधात्मक विचार में डूबे रहना मानसिक लक्षण हैं।

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इसमें दिमाग में विचारों का प्रवाह इस तरह चलता रहता है जैसे कोई टेप चल रहा हो। ऐसी मनोदशा में किसी अखबार या पुस्तक को पूरा पढ़ लिया जाता है और कुछ याद नहीं रहता। निराश रहना, सदा रोने का मन करना तथा कहीं भी अकेले जाने की हिम्मत न कर पाना डिप्रेशन के ही लक्षण हैं।

शारीरिक लक्षणों में बिल्कुल भूख न लगना, नींद न आना, कब्ज या बदहजमी हो जाना ही मुख्य हैं। रोग ज्यादा बढ़ जाने पर रोगी पानी पीना बंद कर देता है, व्यक्ति का वजन कम होने लगता है और कमजोरी आने लगती है।

डिप्रेशन के कारण:- मानसिक आघात, निकट संबंधी की मृत्यु, आर्थिक हानि, प्रेम या परीक्षा में असफलता, अपमान आदि से डिप्रेशन हो सकता है। शारीरिक व्याधियों में ब्रेन ट्यूमर, लम्बी असाध्य बीमारियां और कुछ औषधियां भी इसका कारण हो सकती हैं। इसके अलावा हमारी जीवनशैली भी डिप्रेशन का कारण बनती है जैसे रात में देर से सोना, सुबह अत्यधिक जल्दी उठना, शरीर को पूर्ण आराम न देना आदि भी अवसाद के कारण हो सकते हैं। अपनी कमियों के प्रति हीन भावना पाल लेना भी डिप्रेशन का कारण है।

एकल परिवार की प्रणाली के फलस्वरूप जहां परिवार में कोई एक दूसरे की मदद करने वाला नहीं होता और असुरक्षा की भावना पैदा होती है, वहां अवसाद पैदा हो जाता है।
उम्र के अनुसार भी डिप्रेशन के कारण हैं जैसे-बच्चे को मां-बाप का प्यार न मिलना अथवा उनका निधन हो जाना। ऐसे में बालक अपनी उदासी की अभिव्यक्ति खाना-पीना छोड़कर, बिस्तर गीला करके तथा तुतलाकर बोलने जैसी हरकतों से करता है।

किशोरावस्था में बच्चों में एक द्वंद्व रहता है। वे न तो अपनी स्वतंत्रता खोना चाहते हैं और न ही मां-बाप का प्यार छोडऩा चाहते हैं। इस अंतद्र्वंद्व में फंसा किशोर मन अवसाद का शिकार हो जाता है। तीस की उम्र तक आते-आते परिवार में वैचारिक मतभेद, वैवाहिक सम्बन्धों में बिखराव, भावनात्मक असंतुष्टि तथा शरीर पर असर भी मन में डिप्रेशन ला देता है।
डिप्रेशन की शिकार अधिकतर महिलाएं ही होती हैं। शोध अनुसंधान के अनुसार 12 प्रतिशत महिलाएं किसी न किसी अवसाद का शिकार होती हैं जबकि पुरूष सिर्फ 9 प्रतिशत शिकार होते हैं, बच्चों में भी डिप्रेशन बढ़ता जा रहा है।

डिप्रेशन का उपचार:- डिप्रेशन मानसिक बाधा उत्पन्न करती है, अत: इसका उपचार आवश्यक है। इसके लिये जरूरी है कि जब भी मन में कोई नकारात्मक विचार आयें, उन्हें मन से निकालने का प्रयत्न करें। मन को नृत्य, कला, साहित्य, संगीत आदि जैसी विधाओं से जोडऩे का प्रयत्न करें। इससे कठिनाइयों से जूझने की शक्ति का विकास होता है, साथ ही समस्याओं का सही हल भी मिल जाता है। व्यायाम के द्वारा भी काफी हद तक अवसाद को दूर किया जा सकता है।

अवसाद मूलत: एक मनोभाव है और मनोभाव हमारे विचारों का ही प्रतिबिम्ब होता है। यदि हम अपने विकृत विचारों को दूर करने का साहस जुटा लें तो निश्चित ही हम कभी अवसादग्रस्त नहीं होंगे। अपनी कमियों को आत्महीनता का कारण बनाने की बजाय हमें अपने आत्मबल से उन्हें दूर करने की कोशिश करनी चाहिये।

बेहतर होगा कि हमारी दैनिक दिनचर्या खुशी व उल्लास से परिपूर्ण हो। जीवन में आयी विपरीत परिस्थितियां तो पानी के बुलबुलों की तरह होती हैं जो स्वयं समाप्त हो जाती हैं। इनका प्रभाव अपने मन पर नहीं पडऩे देना चाहिये। जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने को शांत व प्रसन्न रखते हैं वही अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होते हैं।
– अंजलि गंगल

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