रुद्रप्रयाग। अलकनंदा व मंदाकिनी के संगम पर बसे रुद्रप्रयाग नगर में एक तरफ जगह-जगह रंग-बिरंगी आकृतियां आकर्षण का केंद्र बनी हुई हैं। वहीं, दूसरी तरफ अलकनंदा नदी के किनारे नमामि गंगे परियोजना के तहत करोड़ों की लागत से बने घाट मुंह चिढ़ा रहे हैं। रेत-बजरी से पटे इन घाटों की सुध लेने वाला कोई नहीं। जबकि जिले के आला अधिकारी रोज घाटों की दुर्दशा देख रहे हैं। घाटों का जिम्मा नगर पालिका को सौंपा गया है, पर साफ-सफाई और संरक्षण के लिए बजट की कोई बजट उपलब्ध नहीं है।
वर्ष 2017-18 में 1639.12 लाख की लागत से योग, ध्यान और तीर्थाटन को बढ़ावा देने के लिए रुद्रप्रयाग नगर क्षेत्र से लेकर घोलतीर तक अलकनंदा नदी किनारे व संगम के समीप आठ घाटों का निर्माण किया गया था। नदी तल पर बिना बुनियाद और सुरक्षा इंतजाम के इन घाटों का निर्माण किया है, जो सिर्फ सरकारी धन की बर्बादी साबित हो रहे हैं। संगम में दाह संस्कार के साथ घाट बनाया गया है, जो रेत-बजरी और बोल्डरों से पटा है। इन घाटों के निर्माण के दौरान तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी एनएस रावत ने स्वयं स्थलीय निरीक्षण कर जांच भी कराई थी, पर मामला फाइलों में भी सिमट गया। निर्माण के छह वर्ष बाद भी इन घाटों का पर्यटन व तीर्थाटन की दृष्टि से उपयोग नहीं हो पाया है। इस वर्ष बरसात के बाद से रुद्रप्रयाग नगर क्षेत्र में बेलणी पुल के समीप बना शिव मूर्ति घाट जलमग्न हो रखा है। वहीं, नगर पालिका कार्यालय के ठीक नीचे अलकनंदा नदी किनारे का घाट रेत-बजरी और कूड़े कचरे से पटा हुआ है। जीएमवीएन के नीचे और संगम स्थित घाट रेत का मैदान है।
अधिकारी क्या बाेले
नमामि गंगे परियोजना के तहत निर्मित घाटों में बरसात में जमा कूड़ा व रेत-बजरी की सफाई के लिए बजट की कोई व्यवस्था नहीं है। पूर्व में प्रशासन ने बजट मुहैया कराने की बात कही थी, तब घाटों की सफाई की गई, पर आज तक वह धनराशि भी नहीं मिल पाई है। पालिका के पास इतना बजट नहीं है कि रेत से पटे घाटों की सफाई कर इनका नियमित संरक्षण किया जा सके। -सुनील राणा, अधिशासी अधिकारी नगर पालिका रुद्रप्रयाग।