जब हम किसी महापुरूष का सत्संग श्रवण करने उसके समीप जाते हैं तो उनके दर्शन से हमें प्रभु का स्मरण हो आता है, क्योंकि हमारा मन उनके द्वारा दिये गये ईश्वरीय ज्ञान को सुनने को उत्सुक रहता है। उस समय हम प्रभमय हो जाते हैं। महापुरूषों का भी यही दायित्व होता है कि वे आध्यात्म की जो रहस्यमयी बातें हैं, उन्हें बडे सरल तरीके से मानव के आगे रखे। परमात्मा का जो गूढ ज्ञान है यदि उसे गूढ भाषा में ही बताया जाये तो जनसाधारण की बुद्धि में वह ज्ञान ठीक प्रकार से उतर नहीं पायेगा। एक योग्य अध्यापक की यही सबसे बड़ी योग्यता होती है कि किसी भी प्रश्र की जटिलता को वह बड़े सरल ढंग से विद्यार्थियों के मध्य रखता है, समझाता है। विज्ञान का प्राध्यापक जितनी सरल विधि से विज्ञान के सूत्रों को, प्रयोगों को समझायेगा विद्यार्थी उतने शीघ्र ही उसे समझलेगा। कठिन भाषा से उसमें विरक्ति आ सकती है फिर भी जिज्ञासु को चाहिए कि वह एकाग्र होकर सत्संग का श्रवण करे। जब मन एकाग्र होता है तो कठिन व्यक्तव्य भी हमारी बुद्धि को समझ आ जायेगा। सत्संग में बैठे भी मन संसार में लगा हो तो यही नरक की ओर ले जाता है। इसलिए एकाग्र होकर सुने, पठनीय को एकाग्रता से पढे और जीवन में उतारने का प्रयास करें।