बातें करना किसे अच्छा नहीं लगता। बच्चे, बूढ़े, टीनेजर्स, महिलाएं यहां तक कि पुरूष भी अब गॉसिपिंग का मजा लेने लगे है। इंटरनेट चैटिंग भी इसी का एक उदाहरण है। बारहवीं कक्षा में पढऩे वाली श्रुति को बगैर बातें किए खाना हजम नहीं होता।
दोस्तों के साथ गप्प मारे बिना वह फिट नहीं रह सकती। यह उसकी जिंदगी का हिस्सा है। गॉसिपिंग एक सोशल स्किल है, कोई चारित्रिक कमी नहीं। हमारे समाज में ज्यादा बोलने वाले को अच्छा नहीं माना जाता किन्तु धीरे-धीरे यह धारणा गलत होती जा रही है।
गॉसिपिंग समाज में लोगों को एक-दूसरे से जोड़ती है। व्यक्ति में आत्मविश्वास जगाती है। उसे अपनी हर बात कहने का मौका देती है। लोगों को घुलने मिलने का मौका देती है। उन्हें एक दूसरे के व्यवहार को प्रदर्शित करने का अवसर देती है। इससे दो अजनबियों में जल्दी से जल्दी दोस्ती हो जाती है।
गासिपिंग का ही नतीजा है कि दो महिलाओं में जल्दी से जल्दी दोस्ती हो जाती है और बरसों तक कायम रहती है। गॉसिपिंग एक क्रि एटिव स्किल भी है। इसे अपने आप इस्तेमाल किया जाये, वो भी सही तरीके से तो आप जानेंगे कि गॉसिपिंग वास्तव में है क्या? आपने देखा होगा कि कुछ लोग एक चाय के बहाने घंटों चुस्कियां लेते हुए गुजार देते हैं।
उनमें बातें करने की ऐसी कला होती है कि उन्हें पता ही नहीं चलता और चाय काफी देर बाद ठंडी हो चुकी होती है। कुछ लोग घंटों घंटों अपने फोन से चिपके रहते है। पता नहीं क्या-क्या बतियाते रहते हैं। बातें कहां से शुरू होती हैं और कहां कहां तक पहुंचती हैं। दुनिया भर की बातें घंटे भर में सिमट जाती हैं।
गॉसिप में हम अपने विचारों को दूसरों के सामने रखते हैं। जिन्हें हम जानते हैं हम उनके विषय में भी बातें करते हैं। अपने दोस्तों, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के बारे में हम क्या विचार रखते हैं, यही हम गॉसिप लड़ाते हैं। जिनकी तरह बनना चाहते हैं उनकी बातें हम करते हैं और इस तरह दिखाते हैं उनमें सिर्फ कमियां हैं, हम में नहीं।
अक्सर गासिपिंग के अन्दर तारीफ कम, बुराइयां ज्यादा होती हैं। प्रशंसा के तो दो ही शब्द होते हैं। बुराई तो घंटों की जा सकती हैं किन्तु इस तरह की गासिपिंग से भी बचना चाहिए। गॉसिपिंग अपना तनाव दूर करने के लिए करें न कि नई टेंशन उत्पन्न करने के लिए, इसलिए इसके साइड इफेक्ट से भी जरा बचकर रहेें।
– शिखा चौधरी