पुष्प का महत्व उसके सौंदर्य मात्र से नहीं उसकी सुगन्ध के कारण है। पुष्प में यदि सुगन्ध नहीं है तो पुष्प बेरौनक हो जायेगा। सुगन्ध रहित पुष्प में कागजों से बने पुष्प में विशेष भेद नहीं होगा।
यही सब मानव के संदर्भ में भी सच है। मानव का महामत्य उसके रूप में नहीं उसके गुणों में निहित है। गुणों के कारण ही मानव महान है। गुणों के कारण ही सब ओर उसकी पूजा होती है। रूप से सरूप होकर भी यदि मानव में गुण नहीं है, तो उसकी सुरूपता व्यर्थ है, उसका सौंदर्य बेकार है, क्योंकि सच्चा सौंदर्य उसके सद्गुणों से निर्मित होता है।
इतिहास द्वारा इसे पुष्ट करने के लिए चाणक्य इसका बड़ा सटीक उदाहरण है। चाणक्य कुरूप थे, परन्तु उनके सद्गुणों के कारण ही संसार उनका लोहा मानता है। चाणक्य की नीतियां आज भी उतनी ही प्रासंगिक और आदरणीय है, जितनी उनके काल में थी, जब चाणक्य की बुद्धिमत्ता और कूटनीति का डंका बजता था।