वनिता बेटी ? आजकल अनिता बेटी दिखाई नहीं पड़ती, कहीं बाहर गई है? पड़ोस वाली आंटीजी के पूछने पर हंसते हुए वनिता बोली- आंटीजी! दीदी कहीं नहीं गई हैं, वे यहीं हैं, दो माह तक वह नहीं दिखेगी, क्यों… अभी परीक्षा के दिन भी नहीं हैं। कहने पर वनिता बोली- हां आंटीजी!
परीक्षा के दिन तो नहीं हैं पर उनकी परीक्षा चल रही है, क्या …कौन-सी परीक्षा… बेटी! ये पहेली भरी बातें मेरी समझ में नहीं आ रही हैं, सीधे से बतलाओ। उनके कहने पर वनिता बोली-आंटीजी! मेरे साथ चलिए। वे वनिता के साथ चल दीं। सामने पहुंच कर देखा अनिता पीठ किए बैठी है। उसके हाथ चल रहे हैं। वे पास पहुंचीं। तो देखा वह मशीन पर स्वेटर बना रही है, अपने सामने उन्हें देख अनिता उठी, उन्हें नमस्कार किया।
आंटीजी बोलीं- बेटी! तुम ये काम कब से कर रही हो। अनिता बोली- आंटीजी! पिछले वर्ष से ये काम कर रही हूं। पर तुमने किसी को बताया नहीं। उनके कहने पर वह बोली- आंटीजी! पिछले वर्ष मैंने मशीन पर स्वेटर बनाना सीखा, मेरी सहेली नमिता के पापा ने मुझे व नमिता को मशीन पर बुनाई करना सिखाया। पिछले वर्ष मैंने नमिता की मशीन पर ही काम किया था। बहुत स्वेटर बनाए। उसके पापा ने मुझे रुपए दिए। मैंने पापा को सारी बात बतलाकर अपने रुपए दिए और मशीन लाने को कहा। पापा ने अपनी तरफ से रुपए मिलाकर ये मशीन ला दी। अब मैं इस पर बुनाई करती रहती हूं। मेरे पास स्वेटर के बहुत आर्डर हैं।
उसकी बात सुन आंटीजी हंसते हुए बोलीं- बेटी! यह तो बहुत अच्छी बात है पर तुम्हारे द्वारा मशीन खरीदी जाने पर तुम्हारी सहेली नाराज हो गई होगी? उसने तुमसे बोलचाल बंद कर दी होगी? अनिता बोली- आंटीजी!
मेरी सहेली नाराज नहीं हुई और न ही उसके पापा नाराज हुए, वे तो खुश होते हुए कह रहे थे- बेटी! अच्छा हुआ जो तुमने भी मशीन खरीद ली। ज्यादा काम रहेगा तो जल्दी होगा। वे बाजार से आर्डर लेकर आते हैं। आंटीजी बोलीं- बेटी! सचमुच तुम्हारी सहेली और उसके पापा बहुत अच्छे हैं, वरना आज के जमाने में ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं। जो किसी को भी आगे बढ़ाएं, आजकल तो कोई आगे बढ़ रहा हो तो दूसरे जलन के मारे उसे नीचा दिखाने का बहाना खोजते रहते हैं।
मेरी सहेली नाराज नहीं हुई और न ही उसके पापा नाराज हुए, वे तो खुश होते हुए कह रहे थे- बेटी! अच्छा हुआ जो तुमने भी मशीन खरीद ली। ज्यादा काम रहेगा तो जल्दी होगा। वे बाजार से आर्डर लेकर आते हैं। आंटीजी बोलीं- बेटी! सचमुच तुम्हारी सहेली और उसके पापा बहुत अच्छे हैं, वरना आज के जमाने में ऐसे लोग बहुत कम मिलते हैं। जो किसी को भी आगे बढ़ाएं, आजकल तो कोई आगे बढ़ रहा हो तो दूसरे जलन के मारे उसे नीचा दिखाने का बहाना खोजते रहते हैं।
इतने में नमिता आ गई। अनिता ने आंटीजी से उसका परिचय करवाया तो वे नमिता से बोलीं- बेटी। अभी तुम्हारी और तुम्हारे पापा की बातें हो रही थीं। सचमुच तुम और तुम्हारे पापा महान हो। बेटी! एक काम करना होगा मुझे भी मशीन से स्वेटर बनाना सिखाना होगा? नमिता बोली- क्यों नहीं आंटीजी! यह तो बहुत अच्छा होगा। जब आप भी यह काम सीख जाएंगी तो हमारे काम का दबाव कम रहेगा। हम अपनी परीक्षा की तैयारी भी अच्छे से कर लेंगे।
वनिता आई और बोली- आंटीजी! ये क्या खुसर-फुसर चल रही है ? अनिता ने सारी बात बतलाई तो वनिता मजाकिया अंदाज में बोली- आंटीजी! दीदी से मिलवाने का और काम सिखाने का कमीशन देना होगा। वे बोलीं- कितना कमीशन चाहिए। हाथ नचाते हुए वह बोली- ज्यादा नहीं बस जब आप मशीन चलाना सीख जाएं तो एक स्वेटर बना देना। यह सुन आंटीजी बोलीं- अरे एक क्या… फिर तो स्वेटर ही स्वेटर बनाना है। यह सुन नमिता और अनिता मुस्करा दीं।
नयन कुमार राठी – विभूति फीचर्स
नयन कुमार राठी – विभूति फीचर्स