जिसमें खतरों से लडऩे का साहस है और संघर्षों में मानसिक संतुलन बनाये रखने की क्षमता है, सिद्धि पथ पर उन्हें ही कदम बढ़ाने चाहिए। जो खतरों से भयभीत हो जाते हैं, जिन्हें कष्ट सहने से भय लगता है, कठोर परिश्रम करने का जिन्हें अभ्यास नहीं है, उन्हें अपने आपको उन्नति के शिखर पर पहुंचने की कल्पना भी नहीं करनी चाहिए।
अदम्य उत्साह, अटूट साहस, अविचल धैर्य, निरन्तर परिश्रम और खतरों से लडऩे वाला पुरूषार्थ ही किसी को सफल बना सकता है। इन्हीं तत्वों की सहायता से साहसी व्यक्ति उन्नति के शिखर पर पहुंचकर महापुरूष बन जाते हैं। साहसी और वीर पुरूष ही इस संसार का सच्चा सुख प्राप्त करते हैं।
जो भविष्य के अंधकार की दुखद कल्पनाएं कर करके अपना सिर फोड़ रहे हैं वें नास्तिक ही कहे जायेंगे। उनके लिए संसार दुखमय और नरक के समान है। जिसने कठिन समय में अपने मानसिक संतुलन को बनाये रखने का महत्व समझ लिया, जो प्रतिकूल परिस्थितियों में भी दृढ़ रहता है। ऐसा वीर पुरूष सहज में ही दुर्गम राहों को पार कर जाता है।