वाराणसी। ज्ञानवापी मस्जिद प्रकरण को लेकर कोर्ट में लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने वाले पक्षकार हरिहर पांडेय नहीं रहे। रविवार को बीएचयू स्थित सरसुंदर लाल अस्पताल में इलाज के दौरान हरिहर पांडेय(77) ने अन्तिम सांस ली। उम्र जनित बीमारियों के चलते कुछ समय से उनकी तबीयत ठीक नहीं चल रही थी। हालत बिगड़ने पर परिजनों ने बीएचयू अस्पताल में भर्ती कराया था।
लक्सा थाना क्षेत्र के औरंगाबाद निवासी हरिहर पांडेय ने वर्ष 1991 में ज्ञानवापी परिसर स्थित मस्जिद को हटाने के लिए सिविल कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया था। इसमें उनके साथ सोमनाथ व्यास और संपूर्णानंद विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे रामरंग शर्मा शामिल थे। याचिकाकर्ता हरिहर पांडेय ने ज्ञानवापी में पूजा की इजाजत मांगी थी। याचिका के जरिए कहा था कि 250 साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने यहां मंदिर का निर्माण कराया था। साल 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मामले में स्टे लगा दिया था । लेकिन सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद साल 2019 में वाराणसी कोर्ट में एक बार फिर से मामले की सुनवाई शुरू हुई। ज्ञानवापी प्रकरण को पक्षकार हरिहर पांडेय को फोन पर जान से मारने की धमकी भी मिली थी।
काशी विश्वनाथ मंदिर के पुरातात्विक सर्वेक्षण का कोर्ट से आदेश होने के बाद हरिहर पांडेय को सुरक्षा भी मिली थी। हरिहर पांडेय के निधन से परिजनों के साथ ज्ञानवापी की लड़ाई लड़ रहे संगठन,साधु संत भी शोकाकुल है। अखिल भारतीय संत समिति के महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि सनातन परंपरा को मानने वालों के लिए हरिहर पांडेय का जाना बहुत दुखद है। हम उनके परिवार के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करते हैं और बाबा विश्वनाथ से प्रार्थना करते हैं कि वह अपने चरणों में उन्हें स्थान दें। हरिहर जी सरल, दृढ़ निश्चयी और सनातन परंपरा के प्रति स्नेह रखने व्यक्ति थे। आज काशी ज्ञानवापी मुक्ति आंदोलन के एक युग का अवसान हो गया।