बाजार में रेडिमेड मिलने वाले डिस्पोजेबल नैपी का उपयोग एवं उसकी मांग इन दिनों सर्वत्र बढ़ गई है। भारत में तो इसकी व्यापकता कुछ दशक पूर्व ही बढ़ी है किंतु पाश्चात्य देशों में यह बहुत पहले से उपयोग होते आ रहे हैं। इसके अधिक एवं अंधाधुंध उपयोग करने के चलते जो नुक्सानदायक पक्ष सामने आ रहा है उसने सबके कान खड़े कर दिए हैं।
डिस्पोजेबल नैपी की लोकप्रियता ने उसे कई आकार प्रकार में बाजार में ला दिया है। अब तो बच्चों से लेकर बड़ों तक के लिए डिस्पोजेबल नैपी बाजार में सर्वत्र उपलब्ध हैं । ये सिंथेटिक सामग्री के बने होते हैं जो शरीर के साथ चिपके रहने के कारण उस भाग का तापमान सामान्य से बढ़ जाता है। इससे आगे यौन सक्रियता और रज वीर्य निर्माण प्रभावित हो रहे हैं। उस भाग में कोशिकाओं के मरने की गति एवं कैंसर होने की संभावना को बढ़ रही है।
परंपरागत सूती कपड़े से बने नैपी एवं तिकोन पोतड़े का तापमान शरीर के समान ही रहता है जिसके उपयोग से कोई दुष्प्रभाव नहीं होता। भारत में प्राचीनकाल से यह सर्वविदित है कि उस भाग का तापमान सामान्य या कम रहने पर रज वीर्य का निर्माण एवं यौन सक्रि यता यथा अनुरूप रहती है।
वहां का तापमान बढऩे पर यह इनकी गति को धीमी एवं संख्या में कमी करता है। चिकित्सक एवं वैज्ञानिक डिस्पोजेबल नैपी के अधिक उपयोग करने वालों को सचेत कर रहे हैं।
– सीतेश कुमार द्विवेदी