Wednesday, May 8, 2024

वसंत ऋतु में स्वास्थ्य रक्षा

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कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है। यदि व्यक्ति थोड़ा सा भी अपने शरीर का ख्याल करे, ऋतु के अनुसार उचित आहार विहार का ध्यान रखे तो वह होने वाले रोगों से बच सकता है। जब ऋतु विदा हो रही हो और दूसरी ऋतु का प्रारंभ हो रहा हो तो उस काल में व्यक्ति को विशेष रूप से अपने आहार-विहार एवं स्वास्थ्य के प्रति सतर्क रहना चाहिए।

वैसे तो उचित-आहार विहार लेना प्रत्येक ऋतु में आवश्यक होता है परन्तु ऋतु का समय ऐसा होता है जो सन्धि काल वाला समय होता है। इस समय शीत काल की विदाई होती है। इसके बाद ग्रीष्मकाल की शुरूआत होती है।

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हेमन्त ऋतु में हमारे शरीर में जो कफ एकत्र होता है वह बसन्त ऋतु से कुपित होता है। इस लिए व्यक्ति को इस ऋतु में अधिक मीठे, खट्टे, अधिक चिकने तथा कफ बढ़ाने वाले पदार्थो के सेवन से बचना चाहिए। साथ ही दिन में सोना भी स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होता है। इस ऋतु में मौसम बड़ा ही मनभावन और सुहाना होता है। इसमें कभी सर्दी तो कभी गरमी लगती है। इस ऋतु को ऋतुओं का ‘राजा’ भी कहते हैं।

इस ऋतु में शरीर की मालिश करना, प्रात: काल दौड़ लगाना, पानी से स्नान करना, उबटन लगाना आदि उचित विहार हैं। इससे शरीर स्वस्थ रहता है तथा रोग प्रतिरोधक शक्ति का विकास होता है। इन दिनों पतझड़ के बाद नीम के पेड़ में नयी-नयी कोंपलें आ जाती हैं। व्यक्ति को पूरे चैत्र मास में प्रति-दिन सुबह के समय 1०-12 कोमल कोंपलों को खूब चबा चबाकर थोड़ी देर मुंह में रहकर चूसते रहना चाहिए और फिर निगल जाना चाहिए। इससे पूरे वर्ष भर चर्म विकार, रक्त और ज्वर आदि में शरीर की रक्षा करने में सहायता मिलती है।

इन दिनों बबूल या नीम का दातुन अवश्य ही करना चाहिए। इस ऋतु में बड़ी हरड़ का चूर्ण 3 से 5 ग्राम मात्रा में थोड़े शहद के साथ मिलाकर प्रात: काल चाट लेना चाहिए। मौसमी फलों का सेवन करना भी स्वास्थ्य के लिए उत्तम होता है। इसलिए इस ऋतु में फल का सेवन अवश्य ही करना चाहिए।

इस मौसम में कभी ठंडक लगती है तो कभी गर्मी का अनुभव होता है इसलिए व्यक्ति को खान-पान और रहन सहन के मामले में सामंजस्य बनाये रखना चाहिए। इस मौसम में गले की खराश, टांसिल्स का दर्द और कफ की शिकायत आदि रहती है। घरेलू इलाज के रूप में गरारे, गले को ठंडी हवा से बचाना, गले को गरम आग से सेंकना और रात को सोते समय आधी चम्मच, पिसी हुई हल्दी दूध में घोलकर 3-5 दिन तक पीना तथा तुलसी का काढ़ा पीने से काफी हद तक लाभ मिलता है।

गले की खराश, हल्की खांसी, टांसिल्स आदि में तकलीफ होने पर 1 गिलास गरम पानी में आधा-आधा छोटा चम्मच खाने का सोडा व खाने का नमक और 1.2 ग्राम पिसी हुई फिटकरी घोलकर दिन में 4-5 बार गरारे अवश्य करने चाहिए। सुबह के समय और सोते समय गरारे करने से काफी लाभ मिलता है।

इस प्रकार इस ऋतु में उचित आहार-विहार, खान पान द्वारा अपने शरीर को हृष्ट-पुष्ट तथा बलवान अवश्य ही बनाना चाहिए जिससे अन्य ऋतुओं में भी हमारा शरीर इसी तरह से बलवान, तन्दुरूस्त और गुलाब की तरह खिला-खिला रह सके।
-शोक कुमार श्रीवास्तव

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