Thursday, January 23, 2025

ज्ञानवापी मामले में सुनवाई पूरी,उच्च न्यायालय ने सुरक्षित किया फैसला

प्रयागराज। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी स्थित ज्ञानवापी गृहतल में काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को पूजा की अनुमति देने की जिला जज के आदेश की वैधता की चुनौती देने वाली अपीलों की सुनवाई पूरी होने के बाद फैसला सुरक्षित कर लिया।

न्यायधीश रोहित रंजन अग्रवाल मसाजिद कमेटी की तरफ से दाखिल जिला जज के दो आदेशों की चुनौती अपीलों की सुनवाई कर रहे थे।

मस्जिद पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता एस एफ ए नकवी व पुनीत गुप्ता ने तर्क दिया कि पूजा के अधिकार की मांग में दाखिल सिविल वाद में अधिकार तय किए बगैर अंतरिम आदेश से फाइनल रिलीफ देना कानूनी प्रक्रिया का उल्लघंन है। तहखाने में पूजा की अनुमति देकर वस्तुत: सिविल वाद स्वीकार कर लिया गया है। साथ ही जिला जज ने स्वयं ही दो विरोधाभाषी आदेश दिए हैं।

यह भी कहा गया कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 152 के अंतर्निहित अधिकार का प्रयोग करते हुए अदालत मूल आदेश की प्रकृति में बदलाव का आदेश नहीं दे सकती। मूल आदेश में केवल एक मांग मानी गई। जिलाधिकारी को रिसीवर नियुक्त कर दिया गया। बिना किसी अर्जी के केवल मौखिक अनुरोध पर पूजा का अधिकार दे दिया गया है। अदालत ने अपनी अंतर्निहित शक्ति का इस्तेमाल करने का आदेश में उल्लेख नहीं किया है। जिला अदालत ने 17 जनवरी को अर्जी स्वीकार कर केवल एक रिलीफ ही दी। दूसरी मांग पर आदेश नहीं देना ही अनुतोष से इंकार माना जाएगा।

कहा गया कि 17 जनवरी 24 के मूल आदेश से जिला जज ने विवादित भवन की सुरक्षा व देखरेख करने व किसी प्रकार का बदलाव न होने देने का भी निर्देश दिया है और 31 जनवरी 24 के आदेश से बैरिकेडिंग काट कर तहखाने में पूजा के लिए दरवाजा बनाने तथा ट्रस्ट को पुजारी के जरिए तहखाने में स्थित देवी देवताओं की पूजा करने की अनुमति देकर अपने ही आदेश का विरोधाभासी आदेश दिया है।

यह भी कहा गया कि तहखाने पर किसका अधिकार है, यह साक्ष्यों के बाद सिविल वाद के निर्णय से तय होगा। जिला जज ने अंतरिम आदेश से फाइनल रिलीफ देकर गलती की है। इसलिए जिला जज के आदेश रद किए जाये।
मंदिर पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, हरिशंकर जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने पक्ष रखा। इनका कहना था कि अदालत को धारा 151व 152 के अंतर्गत न्याय हित में आदेश देने का अंतर्निहित अधिकार है।वादी अधिवक्ता के संज्ञान में लाने के बाद अदालत ने छूटी हुई प्रार्थना स्वीकार की है।वादी के बजाय अदालत ने ट्रस्ट को पुजारी के जरिए पूजा का अधिकार बहाल किया है।

वादी व्यास जी के तहखाने में वर्षों से पूजा अर्चना करता आ रहा है। वर्ष 1993 मे श्रीराम जन्मभूमि विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद ज्ञानवापी की लोहे की बाड़ से बैरिकेडिंग करने के कारण तहखाने में पूजा करने से बिना किसी आदेश के रोक लगा दी गई थी। अदालत ने कोई नया अधिकार नहीं दिया है।

 

कहा कि जिला जज ने अर्जी की तीन बार सुनवाई की तिथि तय की किंतु मस्जिद पक्ष की तरफ से कोई आपत्ति नहीं की गई। दोनों पक्षों को सुनकर जिला जज ने 31 जनवरी का दूसरा आदेश जारी किया है जो 17 जनवरी के मूल आदेश का ही हिस्सा है। अदालत को गलती दुरूस्त करने व छूटे आदेश को पारित करने का पूरा अधिकार है। आदेश कानूनी प्रक्रिया के तहत पारित किया गया है।

 

बहस की गई कि दीन मोहम्मद केस में कोर्ट ने व्यास जी के तहखाने का जिक्र किया है। जितेंद्र व्यास के पूजा करने को स्वीकार किया गया है। इसलिए अपीलें बलहीन होने के नाते खारिज की जाये।

 

प्रदेश सरकार की तरफ से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र, मुख्य स्थाई अधिवक्ता कुणाल रवि व हरे राम त्रिपाठी ने पक्ष रखा। महाधिवक्ता का कहना था कि कानून व्यवस्था कायम रखने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। अदालत के आदेश पर अमल कराना सरकार का दायित्व है।

 

उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने लगभग 40 मिनट तक तर्क प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि ज्ञानवापी के दाहिने हिस्से में तहखाना स्थित है, जहां हिंदू वर्ष 1993 तक पूजा कर रहे थे। सीपीसी के आदेश 40 नियम एक के तहत वाराणसी कोर्ट ने डीएम को रिसीवर नियुक्त किया है। पूजा का आदेश किसी तरह से मुस्लिमों के अधिकारों को प्रभावित नहीं करता है, क्योंकि मुसलमान कभी तहखाने में नमाज नहीं पढ़ता था।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

74,735FansLike
5,484FollowersFollow
140,071SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय

error: Content is protected !!