अधिकांश पति-पत्नी आपस में मतभेद हो जाने पर जीतने के लिए कमर कस लेते हैं। इसमें समझदारी नहीं। लड़ाई में किसी की जीत नहीं होती बल्कि संबंधों की हार होती है, इसीलिए संवेदनशील, विवेकी जीवनसाथी मतभेद हो जाने पर उसका हल निकालने की कोशिश करते हैं, एक दूसरे से जीतने की नहीं। यदि लड़ाई-झगड़े आपके वैवाहिक जीवन में कटुता ला रहे हों तो सरल नियमों का पालन करें।
आप विवाद का जो विषय हो, बस उस तक ही सीमित रहें, पुराने गिले-शिकवों के गड़े मुर्दे उखाडऩा उस वक्त समझदारी नहीं होगी।
विवाद को जल्द से जल्द खत्म करने की कोशिश करें। उसे लेकर काफी समय या दिनों तक मन में कड़वाहट रखना संबंधों की नींव खोखली करना है।
विवाद को खत्म किए बिना वहां से उठकर न जाएं। इससे उलझनें तथा कटुता दोनों ही बढ़ती हैं। कभी एक-दूसरे पर हाथ न उठाएं। कभी यह बात न कहें कि-ऐसे साथ से क्या फायदा, क्यों न संबंध तोड़ ही दिए जाएं।
हर व्यक्ति में कुछ गुण होते हैं तो कुछ अवगुण भी। उसके गुणों को पहचानें, उन्हें सराहें तथा अवगुणों को दूर करने के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं। कई पति-पत्नी एक दूसरे के दोषों की आलोचना करना ही अपना धर्म मान बैठते हैं।
इससे दांपत्य संबंधों में खाई पैदा हो जाती है। अगर सुधार चाहते हों तो उसमें स्पष्टता भी होनी अनिवार्य है। इसी तरह यदि दूसरा किसी तरह की आलोचना करे तो उसका सीधा स्पष्ट उत्तर दें। बदले में उस पर आरोप थोपना समझदारी नहीं होगीं।
संबंधों में व्यवहार कुशलता रिश्तों को सुदृढ़ एवं मधुर बनाती है। दूसरे के प्रति मृदु व्यवहार, नम्रता, सहिष्णुता और उदारता दांपत्य प्रेम को उत्कृष्ट बनाते हैं। कई पति-पत्नी इस भ्रम में रहते हैं कि दांपत्य जीवन में हर समय निसंकोच स्पष्टता ही बरतनी चाहिए, चाहे वह सामने वाले को कितनी भी कड़वी क्यों न लगे पर दरअसल यह अविवेकी होने का ही परिचायक है।
किसी की कमियों को बार-बार उघाड़ते रहना, तीखापन, आलोचना, जुबान पर काबू न रख पाना संबंधों में तनाव लाता है। यह आपस में मान-अभिमान की लड़ाई शुरू करवा देता है। यह खुलापन नहीं बल्कि संबंधों को धराशायी करने का रास्ता है।
प्रशंसा, सराहना के शब्द भला किसे अच्छे नहीं लगते। दांपत्य जीवन में तो यूं भी हर रोज, हर पल ऐसे कितने ही अवसर आते हैं जब आप दूसरों के प्रति अपना आभार प्रकट कर सकते हैं। इससे संबंधों में बनावटीपन नहीं बल्कि ताजगी आती है, एक-दूसरे के गुणों एवं क्षमताओं का अहसास गहराता है तथा एक-दूसरे पर गर्व होता है, साथ ही परस्पर आदर भाव भी पनपता है।
एक दूसरे को उपहार देकर भी प्रीत का रस गाढ़ा होता है। अकस्मात दिए गए उपहार का सुखद आश्चर्य दुनिया की महंगी से महंगी चीज से ज्यादा मूल्यवान होता है।
हर व्यक्ति में अपने रूझान होते हैं जिनके पूरे होने से उसे सुख एवं खुशी प्राप्त होती है, अत: पति-पत्नी के लिए यह जरूरी है कि वे एक-दूसरे के रूझानों की व रूचियों की कद्र करना जानें। इससे सुख एवं खुशी दुगनी हो जाती है।
उपहास-परिहास एवं तिरस्कार इस सुख को भावशून्य बना देता है, इसलिए दूसरे की गतिविधि कितनी भी अटपटी क्यों न हो, उसके सुख में सुख एवं खुशी पाने की कोशिश करें।
कोई भी संबंध उतना ही मधुर बन पाता है जितना उसके भागीदार इस दिशा में प्रयत्न करते हैं। यों भी कोई संबंध गतिहीन नहीं होता। उसमें विकास की संभावना हमेशा रहती है, अत: समय समय पर इस बारे में सोचने-विचारने से संबंध और अधिक मधुर बनाए जा सकते हैं।
– मीना जैन छाबड़ा