नींद का न आना एक भयंकर रोग है तथा जो लोग इस रोग से ग्रस्त हैं अथवा जिन्हें नींद नहीं आती, उनके समान दु:खी प्राणी इस संसार में विरले ही होंगे। कारण यह है कि शारीरिक विश्राम के लिए नींद जितनी आवश्यक है उतनी ही मानसिक विश्राम के लिए भी आवश्यक है। इस संसार का प्रत्येक प्राणी रोग, शोक आदि चिन्ताओं से पीडि़त रहता है।
नींद ही एक मात्र ऐसी औषधि है जो चौबीस घंटे में मनुष्य को कम से कम एक तिहाई समय के लिए समस्त चिन्ताओं से मुक्त कर के विश्राम देती है, जिसके बिना वह जीवन को ठेलने में असमर्थ सा रहता है। अत: यह सिद्ध है कि जो लोग अनिद्रा रोग के शिकार हैं अथवा जिन्हें रात्रि में नींद नहीं आती, उनकी दिन भर की चिन्ताएं रात्रि में कई गुणा बढ़ जाती हैं।
अनिद्रा का यह रोग कभी-कभी तो इतना भयंकर रूप ले लेता है कि इससे मुक्ति पाने के लिए रोगी आत्महत्या करने पर उद्यत हो जाता है। भारतवर्ष में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना करने वाला अंग्रेज सैनिक राबर्ट क्लाइव जो अनिद्रा रोग का शिकार था, जब स्वदेश इंग्लैण्ड लौटा, तब उसका यह रोग बढ़ता गया। फलत: उसकी आत्मा जिन पिछली चिन्ताओं से हर समय पीडि़त रहा करती थी, रात्रि में उग्र रूप धारण कर लेती थी और वह सारी रात करवटें बदलकर बिता देता था किन्तु यह क्रम भी अधिक दिनों तक न चल सका और अन्त में घबरा कर उसने छुरे से अपना गला काटकर आत्महत्या कर ली।
आत्महत्या करने वाले लोगों में अधिकांश इस रोग से पीडि़त रहे हैं। अनिद्रा का यह भयंकर रोग मनुष्य को या तो पागल बना देता है अथवा उसमें आत्महत्या करने की भयंकर प्रवृति को उत्पन्न कर देता है। अत: शारीरिक तथा मानसिक स्वास्थ्य के लिए और जीवन को स्वाभाविक रूप से चलाने के लिए इस रोग से मुक्ति पाना परमावश्यक है।
ये करें
सुखद निद्रा की प्राप्ति कुछ साधारण उपायों द्वारा सम्भव है जिनका पालन करने से विशेष लाभ हो सकता है।
सोने से पूर्व पेट का हल्कापन अत्यावश्यक है। अत: यह आवश्यक है कि भोजन सोने से कम से कम दो घंटे पहले कर लेना चाहिए।
सोने से पूर्व किसी भी नशीली वस्तु का सेवन करना हानिकारक है। कारण यह है कि नशीली वस्तुएं शरीर में प्रवेश कर हमारी रक्तवाहिनी नाडिय़ों को उत्तेजित कर देती हैं जो सुखद निद्रा में बाधक हो जाती हैं।
सोने से पूर्व दिन भर की चिन्ताओं को भूलने का भी प्रयत्न करना चाहिए।
बहुधा यह देखा जाता है कि दिन भर कार्यालयों में काम करने वाले कर्मचारियों को मानसिक श्रम के अतिरिक्त अन्य बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ता है, अत: जब वे घर लौटते हैं तो उन्हें भूलना तो दूर, वे अपनी कल्पना के द्वारा गहरे रंगों में चित्रित करने लगते हैं। उनकी यह प्रवृति अत्यन्त घातक है। इससे रात्रि की नींद में घोर बाधा उत्पन्न हो जाती है।
कुछ लोगों के अनुसार दिन भर की चिन्ताओं को भुलाया नहीं जा सकता अथवा यह कहा जाए कि वे भूलना चाहते हैं पर भूल नहीं पाते है। वास्तव में यदि विचार किया जाए तो यह तर्क गलत है। सच तो यह है कि उनका मन चिन्ताओं को भूलना ही नहीं चाहता। ऐसे लोग चिन्ताओं में डूबे रहने की आदत सी डाल लेते हैं।
ऐसे लोगों के लिए आवश्यक है कि वे विपरीत दिशा में आदत डालने की कोशिश करें। यद्यपि प्रारम्भ में कठिनाई अवश्य होगी किन्तु बाद में यह मार्ग सरल हो जाता है और धीरे-धीरे नई आदत जड़ पकड़ लेती है। अत: अनिद्रा के रोगी को दिन भर की चिन्ताओं को रात में भूल जाने का सतत प्रयत्न करना चाहिए।
इस रोग से ग्रस्त रोगी के लिए यह भी आवश्यक है कि वह अपनी अप्रिय घटनाओं को छोड़कर प्रिय घटनाओं का स्मरण करे।
कुछ लोगों के विचार से दिन में नींद का आना हानिकारक है किन्तु यह ठीक नहीं। यदि रात्रि में किन्हीं कारणों से नींद ठीक न आ सके तो दिन में भोजनोपरान्त कुछ समय के लिए सो लेना आवश्यक है। रात्रि में नींद न आने पर उसके विषय में दूसरे दिन कदापि नहीं सोचना चाहिए क्योंकि नींद न आने से ज्यादा उसके सम्बन्ध में की जाने वाली चिन्ता हानिकारक होती है।
इस प्रकार शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के नियमों का यदि पूर्णरूप से पालन किया जाए तो अनिद्रा के इस भयंकर रोग से मुक्ति पाकर जीवन को आनन्द से परिपूर्ण बनाया जा सकता है।
– इन्दीवर मिश्र