Friday, May 17, 2024

रूद्राक्ष के महत्त्व

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– अंजलि रूपरेला

भारतीय संस्कृति में रूद्राक्ष सिर्फ एक मनका नहीं वरन दर्शन है, ऐसा दर्शन जो आस्थावानों को जिंदगी से लडऩे की क्षमता देता है तो यथार्थवादियों को उसके चिकित्सकीय चमत्कार अचंभित कर जाते हैं।
वाकई रूद्राक्ष में जीवन-मरण, यश अपयश, लाभ हानि से लडऩे की अद्भुत क्षमता है। यही वजह है कि हजारों सालों से इसकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आयी। दिवंगत शिव सेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे जैसी कई हस्तियों का रूद्राक्ष प्रेम तो जग जाहिर है।

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रूद्राक्ष क्या है:- रूद्राक्ष शब्दों के जोड़ रूद्र$अक्ष से बना है। रूद्र यानी भगवान शिव और अक्ष यानी आंसू अर्थात भगवान शंकर के आंसुओं से जो पौधा अस्तित्व में आया, वह रूद्राक्ष कहलाया। वैदिक गं्रथों के मुताबिक रूद्राक्ष में ग्रहों के दुष्प्रभाव कम करने की अद्भुत शक्ति होती है। यह भी मान्यता है कि रूद्राक्ष चाहे कितने भी मुख का क्यों न हो, उसे पहनने से किसी तरह का नुक्सान नहीं होता।

कब और कैसे पहनें:- रूद्राक्ष सोमवार या भगवान शिव से जुड़े किसी भी दिन पहना जा सकता है। पहनने से पहले उसे दूध, शहद या घी से धोकर प्राण प्रतिष्ठा कर लेनी चाहिए। ओम नम: शिवाय का 1०8 बार जाप करना भी ठीक रहता है।
रूद्राक्ष के प्रकार:- दुनियां भर में 1 से लेकर 38 मुखों तक के रूद्राक्ष पाए जाते हैं। सामान्यत: 14 तरह के रूद्राक्ष ही अधिक लोकप्रिय हैं।

एकमुखी तथा 9 से 14 मुखी रूद्राक्ष बेहद दुर्लभ होते हैं एक मुखी रूद्राक्ष में तो अद्भुत शक्ति होती है। पूजा के लिए पंचमुखी रूद्राक्ष आदर्श माना गया है। भारतीय ज्योतिष विज्ञान में ग्रह दोष दूर करने तथा रोगों के उपचार के लिए इन्हीं का प्रयोग किया जाता है। प्रत्येक मुख वाले रूद्राक्ष का व्यक्ति पर अलग प्रभाव होता है इसलिए किसी सिद्धहस्त विशेषज्ञ को अपनी जन्मपत्री दिखा कर ही व्यक्ति को रूद्राक्ष पहनना चाहिए।

एकमुखी रूद्राक्ष:- एकमुखी रूद्राक्ष सृष्टि के नियामक भगवान सूर्य का प्रतिनिधि है। यह मनुष्य के शरीर पर पडऩे वाले सूर्य के अशुभ प्रभावों को नियंत्रित करता है जैसे दायीं आंख में खराबी, सिर दर्द, कान दर्द, आंत संबंधी रोगों, हड्डियों की कमजोरी आदि में लाभ पहुंचाता है। यही नहीं, मानसिक कमजोरियों जैसे आत्मविश्वास में कमी नेतृत्व क्षमता के अभाव को भी नियंत्रित करता है। कहा जाता है कि इसे पहनने वाले पर भगवान सूर्य की खास कृपा रहती है। उसके मार्ग में आने वाली हर बाधा को वे दूर करते हैं।

दोमुखी रूद्राक्ष:- चंद्रमा, इसका कारक ग्रह है। इसे धारण करने से चंद्रमा के दुष्प्रभावों जैसे बायीं आंख में खराबी, गुर्दे व अंतडिय़ों के रोगों में कमी आती है, साथ ही भावनात्मक रिश्ते मजबूत होते हैं।

तीनमुखी रूद्राक्ष:- यह अग्नि के देवता मंगल ग्रह का प्रतिनिधित्व करता है। विभिन्न शारीरिक विकारों जैसे असंतुलित रक्तचाप, अनियमित मासिक धर्म, गुर्दे के रोगों के साथ-साथ मानसिक परेशानियों जैसे डिप्रेशन नकारात्मक विचारों, अपराध बोध तथा हीन भावना में भी कमी आती है।

चारमुखी रूद्राक्ष:- इस रूद्राक्ष का प्रतिनिधि ग्रह बुध है तथा देवी सरस्वती तथा ब्रह्मा इसके इष्ट हैं। इसे पहनने से दिमागी फुर्ती, समझ तथा वार्तालाप प्रभावी बनता है और मन को शक्ति मिलती है।

पंचमुखी रूद्राक्ष:- इसका कारक ग्रह बृहस्पति है जो ज्ञान विज्ञान, अस्थि मज्जा, जिगर, हाथ, जांघ, धर्म, तथा भौतिक सुखों का प्रतिनिधि है। इसे पहनने से बृहस्पति के दुष्प्रभावों जैसे मानसिक अशांति, दरिद्रता, कमजोर शारीरिक गठन गुर्दे, कान व मधुमेह जैसे रोग दूर होते हैं।

छहमुखी रूद्राक्ष:- इसका प्रतिनिधि ग्रह शुक्र  है। इसे पहनने से जननेंद्रिय, यौन तथा कंठ संबंधी रोग दूर होते हैं। प्रेम तथा संगीत की ओर व्यक्ति का रूझान बढ़ता है।

सातमुखी रूद्राक्ष:- सातमुखी रूद्राक्ष धारण करने से शनि ग्रह के दुष्प्रभावों, नपुंसकता, कफ, निराशा, लंबी बीमारी तथा चिन्ताएं दूर होती हैं।

आठमुखी रूद्राक्ष:- इसका नाता राहू ग्रह से है। इसे धारण करने से मोतियाबिंद, फेफड़े, त्वचा आदि के रोग दूर होते हैं, सर्पदंश की संभावना कम होती है।

नौमुखी रूद्राक्ष:- यह रूद्राक्ष केतु के दुष्प्रभावों को दूर करने में कारगर साबित होता है। केतु ग्रह फेफड़ों त्वचा, आंख तथा पेट के रोगों का कारण है।

दसमुखी रूद्राक्ष:- इस रूद्राक्ष का कोई प्रतिनिधि ग्रह नहीं है। इसे पहनने से व्यक्ति खुद को सुरक्षित महसूस करता है।
ग्यारह मुखी रूद्राख:- इसे पहनने से साहस तथा आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।

बारहमुखी रूद्राक्ष:- इसका प्रतिनिधि ग्रह सूर्य होने की वजह से यह एकमुखी रूद्राक्ष वाले ही प्रभाव व्यक्ति को देता है।
तेरहमुखी रूद्राक्ष:- इसके प्रभाव भी छहमुखी रूद्राक्ष के जैसे ही प्रभाव होते हैं। इसे पहनने से व्यक्ति की मानसिक ताकत बढ़ती है।

चौदहमुखी रूद्राक्ष:- इसे पहनने से शनि के दुष्प्रभाव कम होते हैं।

रूद्राक्ष और सेहत:- शोधों से सिद्ध हो चुका है कि रूद्राक्ष तन मन की बहुत सी बीमारियों में राहत पहुंचाता है। इसे पहनने से दिल की धड़कन तथा रक्तचाप नियंत्रित होता है पर इसके लिए रूद्राक्ष का मरीज के दिल को छूना जरूरी है। तनाव, घबराहट, डिप्रेशन तथा ध्यान भंग जैसी समस्याएं दूर होती हैं। कुछ लोगों की मान्यता है कि रूद्राक्ष धारण करने वाले व्यक्ति को देर से बुढ़ापा आता है।

– उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने के लिए पंचमुखी रूद्राक्ष के 2 दाने रात को 1 गिलास पानी में भिगो दें। सुबह उठ कर खाली पेट उसे पानी को पी लीजिए। दाने भिगोने के लिए तांबे के अलावा किसी भी अन्य धातु का बर्तन इस्तेमाल में लाया जा सकता है।

– घबराहट दूर करने के लिए बड़े आकार का पंचमुखी रूद्राक्ष हमेशा अपने पास रखें। मन उदास होने पर मजबूती से सीधी हथेली में जकड़ लें। आत्मविश्वास की वापसी होगी तथा शारीरिक शिथिलता दूर होगी।
रूद्राक्ष से जुड़ी महत्त््वपूर्ण बातें:-
– कभी भी किसी दूसरे व्यक्ति से अपना रूद्राक्ष नहीं बदलना चाहिए।
– रूद्राक्ष हमेशा चांदी, सोने, तांबे या पंचधातु में पहनना चाहिए। इसे धागे में भी पहना जा सकता है।
– सभी रूद्राक्ष में समान गुण होते हैं। कोई भी रूद्राक्ष दूसरे से कमजोर नहीं होता।
– रूद्राक्ष पहनने से एकाग्रता तथा स्मरण शक्ति मजबूत होती है।
– रूद्राक्ष न तो नकारात्मक ऊर्जा उत्सर्जित करता है और न ही इसे पहनने से किसी तरह के बुरे प्रभाव व्यक्ति पर पड़ते हैं।
– रूद्राक्ष पहनने के 40 दिनों के भीतर ही व्यक्तित्व में परिवर्तन दिखायी देने लगते हैं।
– रूद्राक्ष हमेशा साफ रखना चाहिए। इन्हें पूजा घर में रखा जाना श्रेष्ठ माना जाता है।

असली रूद्राक्ष की पहचान:-
रूद्राक्ष असली है या नकली, यह जानने के लिए उसे एक गिलास पानी में रखें। डूबने पर रूद्राक्ष असली है तथा तैरने पर नकली। रूद्राक्ष को लगातार 6 घंटे पानी में उबालें। अगर असली होगा तो उसकी रंगत खराब नहीं होगी।

रूद्राक्ष खरीदते समय उसके आकार तथा आकृति को ध्यान से देखें। रूद्राक्ष के मुख अच्छी तरह समझ में आने चाहिएं। उसमें कोई दरार तो नहीं है। मनका टेढ़ा-मेढ़ा तो नहीं है यह भी जांच लें तथा बीच का छेद सटीक जगह पर है या नहीं, यह भी देख लें। रूद्राक्ष कहीं से भी चटका या टूटा हुआ नहीं होना चाहिए। छोटे साइज का रूद्राक्ष बहुत शुभ माना जाता है।

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