Saturday, May 11, 2024

हमीरपुर में दशहरे पर पान खिलाकर गले मिलने की सदियों पुरानी परम्परा अब तोड़ रही दम

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हमीरपुर। बुन्देलखंड क्षेत्र में किसी जमाने में विजयादशमी पर्व पर पान खिलाकर एक दूसरे का मान करने की परम्परा कायम थी, लेकिन अब मान का पान अधूरा रह गया है। किसी कवि ने लिखा भी है कि पान आधा रह गया, जलपान आधा रह गया, जाती रही इंसानियत इंसान आधा रह गया। ये पंक्ति यहां दशहरे के परिवेश में फिट बैठती है। अब तो लोग पान मसाला और गुटखा खिलाकर असत्य पर सत्य की जीत का त्योहार मनाते हैं।

बुन्देलखंड के हमीरपुर, महोबा, बांदा, चित्रकूट, ललितपुर, झांसी और जालौन के अलावा मध्यप्रदेश के तमाम ग्रामीण इलाकों में दशहरे की धूम शुरू हो गई है। हालांकि इस बार पर्व पर पहले जैसी कोई रंगत नहीं दिख रही है। शहर और कस्बे में पान खिलाने के रिवाज से आम लोगों ने किनारा ही कर लिया है। अब तो लोग चलते फिरते दशहरे पर हाथ मिलाकर बधाई दे रहे हैं। और तो और लोग गुटखा, पान मसाला अपने शुभचिंतकों को खिलाकर आगे बढ़ जाते हैं। बुन्देलखंड के ग्रामीण इलाकों में भी विजयादशमी के पर्व पर पान मसाला और सुपारी का गुटखा खिलाकर लोग एक दूसरे को दशहरा की राम-राम कर रहे हैं।

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दशहरा पर्व की धूम में दुश्मनी भी छोड़ गले मिलते थे लोग

हमीरपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आश्रित विजय कुमारी (104) ने बताया कि दशहरे के पर्व पर पहले लोग दुश्मनी भी छोड़कर घर जाते थे और एक दूसरे से गले मिलकर मान सम्मान करते थे। लेकिन कुछ दशक से अब गांवों में दशहरे की रौनक नहीं रह गई है। पंडित दिनेश दुबे, सुरेश व बुजुर्ग सिद्ध गोपाल अवस्थी ने बताया कि पहले लोग बिना किसी भेदभाव के आपस में मिलते जुलते थे। लोग बैर भी भूल जाते थे। त्योहार में स्नेह, लगाव और आस्था अब पहले जैसे नहीं दिखाई देती है। इसीलिए दशहरे में मान, पान, और सम्मान सब कुछ आधा अधूरा रह गया है।

गांवों में कभी महिलाएं ढोलक बजाकर मनाती थी दशहरा

बुन्देलखंड के ग्रामीण इलाकों में महिलाएं घर के बाहर एक जगह एकत्र होकर आपस में ढोलक बजाकर दशहरे का त्योहार मनाती थी। एक दूसरे का मुंह मीठा कराने के साथ ही दशहरे का पान देकर मान भी बढ़ाने की परम्परा थी लेकिन अब यह विलुप्त हो गई है। बुजुर्ग समाजसेवी एवं पूर्व प्रधान बाबूराम प्रकाश त्रिपाठी ने बताया कि बुन्देलखंड और पूर्वांचल के अलावा मध्यप्रदेश के इलाकों में दशहरा पर्व पर लोग मीठा पान खिलाकर एक दूसरे से गले मिलते थे। गांवों में इस त्योहार की बड़ी ही रंगत होती थी लेकिन अब पान खिलाकर गले मिलने की परम्परा दम तोड़ रही है।

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