नई दिल्ली। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण चिकित्सा उपलब्धि हासिल करते हुए गंभीर हीमोफीलिया ए के लिए लेंटीवायरल वेक्टर का उपयोग करते हुए पहली बार मानव जीन थेरेपी विकसित की है। क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) वेल्लोर में स्टेम सेल अनुसंधान केंद्र (सीएससीआर) द्वारा विकसित और जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा समर्थित इस चिकित्सा ने परिवर्तनकारी परिणाम दिखाए हैं।
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यह ब्रिक-इनस्टेम की एक ट्रांसलेशन इकाई है। इस वर्ष के प्रारम्भ में सी.एम.सी. वेल्लोर के वैज्ञानिकों ने हीमोफीलिया ए (एफ.वी.आई.आई.आई. की कमी) के लिए जीन थेरेपी का देश का पहला मानव क्लिनिकल परीक्षण सफलतापूर्वक किया। इस शोध में 22 से 41 वर्ष की आयु के पांच प्रतिभागियों को शामिल किया गया था, जिसमें कई परिवर्तनकारी परिणाम निकलकर सामने आए। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में प्रकाशित शोधपत्र में वैज्ञानिकों ने कहा कि इस थेरेपी से सभी पांच नामांकित प्रतिभागियों में वार्षिक रक्तस्राव दर सफलतापूर्वक शून्य हो गई, जबकि फैक्टर VIII का उत्पादन लंबे समय तक जारी रहा, जिससे बार-बार इंजेक्शन लगाने की आवश्यकता समाप्त हो गई।
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टीम ने कहा कि यह प्रभाव परिधीय रक्त में फैक्टर VIII गतिविधि और वेक्टर कॉपी संख्याओं के बीच संबंध स्थापित करने वाले 81 महीनों के कम्युलेटिव फॉलो-अप स्टडी में देखा गया। हीमोफीलिया ए एक गंभीर रक्तस्राव विकार (ब्लीडिंग डिसऑर्डर) है जो थक्के बनाने वाले फैक्टर VIII की कमी के कारण होता है। यह रोगियों के जीवन की गुणवत्ता को काफी प्रभावित करता है, जिससे ब्लीडिंग होती है। हालांकि यह दुर्लभ है, लेकिन भारत में हीमोफीलिया के लगभग 136,000 मामले हैं जो दुनिया में दूसरे सर्वाधिक हैं।
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वर्तमान उपचारों में बार-बार फैक्टर VIII प्रतिस्थापन चिकित्सा की आवश्यकता होती है, जिसमें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जैसे अधिक कीमत, बच्चों में नसों को ढूंढना और रोगियों की कम स्वीकृति जैसे मामले शामिल हैं। नए जीन थेरेपी दृष्टिकोण में फैक्टर VIII जीन की एक सामान्य प्रतिलिपि को ऑटोलॉगस हेमेटोपोएटिक स्टेम कोशिकाओं (एचएससी) में प्रविष्ट कराने के लिए लेंटीवायरल वेक्टर का उपयोग शामिल है। ये संशोधित एचएससी ऐसी रक्त कोशिकाएं उत्पन्न करते हैं जो लंबी अवधि तक कार्यात्मक फैक्टर VIII का उत्पादन करने में सक्षम होती हैं। शोधकर्ताओं ने कहा, ”जीन थेरेपी के बाद प्रतिभागियों की छह महीने तक निगरानी की गई। परिणामों से फैक्टर VIII गतिविधि स्तरों और परिधीय रक्त में वेक्टर कॉपी संख्या के बीच एक मजबूत सहसंबंध दिखा।’
‘ उन्होंने कहा, “यह उपलब्धि थेरेपी की दीर्घकालिक प्रभावकारिता और सुरक्षा को रेखांकित करती है, जो गंभीर हीमोफीलिया ए के रोगियों के लिए नई उम्मीद की किरण है।” यह अग्रणी अध्ययन सीमित संसाधनों वाली स्थितियों में सुलभ और प्रभावी उपचारों में एक परिवर्तनकारी छलांग है, जो पहले लाइलाज बीमारियों के प्रबंधन के लिए नई संभावनाओं को खोलता है। उम्मीद है कि इस थेरेपी का जल्द ही दूसरे चरण का मानव परीक्षण किया जाएगा। यह पायनियरिंग स्टडी संसाधन-सीमित सेटिंग्स के लिए सुलभ और प्रभावी उपचारों में एक परिवर्तनकारी छलांग को दिखाती है, जो पहले लाइलाज बीमारियों के लिए नई संभावनाओं को खोलता है। उम्मीद है कि जल्द ही इस थेरेपी का दूसरा चरण मानव परीक्षण से गुजरेगा।