गांधीनगर/नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को कहा कि 21वीं सदी के तेजी से बदलते समय में भारत की शिक्षा प्रणाली बदल रही है और शिक्षक और छात्र भी बदल रहे हैं। इन बदलती परिस्थितियों में हम कैसे आगे बढ़ेंगे यह तय करना महत्वपूर्ण है।
प्रधानमंत्री ने गुजरात के गांधीनगर में अखिल भारतीय शिक्षा संघ अधिवेशन को संबोधित करते हुए अपनी बात रख रहे थे। उन्होंने कहा कि आज भारत, 21वीं सदी की आधुनिक आवश्कताओं के मुताबिक नई व्यवस्थाओं का निर्माण कर रहा है। ‘नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ इसी को ध्यान में रखते हुए बनाई गई है। उन्होंने कहा कि हम इतने वर्षों से स्कूलों में पढ़ाई के नाम पर अपने बच्चों को केवल किताबी ज्ञान दे रहे थे। ‘नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ उस पुरानी अप्रासंगिक व्यवस्था को परिवर्तित कर रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रेक्टिकल पर आधारित है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति, मातृभाषा में शिक्षण को बढ़ावा देती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति में जो एक बड़ा प्रावधान किया गया है, वो हमारे गांव-देहात और छोटे शहरों के शिक्षकों की बहुत मदद करने वाला है। ये प्रावधान मातृभाषा में पढ़ाई का है। उन्होंने कहा कि आज हमें समाज में ऐसा माहौल बनाने की भी जरूरत है जिसमें लोग शिक्षक बनने के लिए स्वेच्छा से आगे आएं।
प्रधानमंत्री ने हर स्कूल का जन्मदिन मनाने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि स्कूल और स्टूडेंट के बीच डिस्कनेक्ट को दूर करने के लिए ये परंपरा शुरू की जा सकती है कि स्कूलों का जन्मदिन मनाएं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि गुजरात में रहते हुए मेरा प्राथमिक शिक्षकों के साथ मिलकर राज्य की पूरी शिक्षा व्यवस्था को बदलने का अनुभव रहा है। एक जमाने में गुजरात में ड्रॉप आउट रेट करीब 40 प्रतिशत के आस-पास हुआ करता था और आज 03 प्रतिशत से भी कम रह गई है। ये गुजरात के शिक्षकों के सहयोग से ही संभव हुआ है। उन्होंने कहा कि गुजरात में शिक्षकों के साथ मेरे जो अनुभव रहे, उसने राष्ट्रीय स्तर पर भी नीतियां बनाने में हमारी काफी मदद की है।
प्रधानमंत्री ने भारतीय शिक्षकों के महत्व को रेखांकित करते हुए बताया कि भूटान राज परिवार के सीनियर ने उन्हें बताया कि उन सब को हिंदुस्तान के शिक्षकों ने पढ़ाया-लिखाया है। ऐसे ही सऊदी अरब के किंग के बचपन में शिक्षक गुजरात (भारत) से ही थे।
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज की पीढ़ी के छात्रों की जिज्ञासा, उनका कौतूहल, एक नया चैलेंज लेकर आया है। ये छात्र आत्मविश्वास से भरे हैं, वो निडर हैं। उनका स्वभाव टीचर को चुनौती देता है कि वो शिक्षा के पारंपरिक तौर-तरीकों से बाहर निकलें। छात्रों के पास सूचना के अलग-अलग स्रोत हैं। इसने भी शिक्षकों के सामने खुद को अद्यतन (अपडेट) रखने की चुनौती पेश की है। इन चुनौतियों को एक टीचर कैसे हल करता है, इसी पर हमारी शिक्षा व्यवस्था का भविष्य निर्भर करता है। सबसे अच्छा तरीका ये है कि इन चुनौतियों को निजी और व्यावसायिक विकास अवसर के तौर पर देखा जाए। ये चुनौतियां हमें सीखना, भूलना और फिर से सीखना करने का मौका देती हैं।
उन्होंने कहा कि टेक्नोलॉजी से जानकारी मिल सकती है लेकिन सही दृष्टिकोण नहीं। सिर्फ एक गुरु ही बच्चों को ये समझने में मदद कर सकता है कि कौन सी जानकारी उपयोगी है और कौन सी नहीं। प्रधानमंत्री ने कहा कि जब जानकारी की भरमार हो तो छात्रों के लिए ये महत्वपूर्ण हो जाता है कि वे कैसे अपना ध्यान केंद्रित करें। ऐसे में ध्यान लगा के पढ़ना और उसे तार्किक निष्कर्ष तक पहुंचाना बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। इसलिए 21वीं सदी के छात्र के जीवन में शिक्षक की भूमिका और ज्यादा बृहद हो गई है।