जमीन से पानी निकालने के कई तरीके प्रचलन में हैं। सबसे पहले जमीन में चौड़े और गहरे गड्ढे कर कुआं बनाया जाता था। इसमें जमा पानी बाल्टी आदि की सहायता से ऊपर निकाला जाता है। हैंडपंप द्वारा पानी निकालने का दूसरा तरीका है। फिर ट्यूबबैल की बारी आती है। ट्यूबबैल का बोर (जमीन में सुराख को बोर भी कहते हैं) हमारे भारत में 100 दो सौ फुट तक गहरा होता है।
इससे पानी बिजली चालित मोटर या डीजल इंजन के पंपसेट की सहायता से निकाला जाता है।
पानी निकालने का एक पुराना तरीका आर्टीजन बोरिंग भी है। इस विधि से पानी खुद-ब-खुद फव्वारे की तरह धरती से निकलता है। भारत के पंजाब, उत्तर प्रदेश आदि अनेक राज्यों में आर्टीजन बोरिंग लगे हैं। इनसे दिन रात हर समय पानी निकलता रहता है। तुम जानना चाहोगे इसका नाम ‘आर्टीजन’ क्यों पड़ा?
लगभग सन 1200 ईस्वी में फ्रांस में सबसे पहले आर्टीजन बोरिंग स्थापित किया गया। फ्रांस के आरटोइस नामक क्षेत्र में जमीन में लंबा छेद कर पहला आर्टीजन (स्वचालित बोरिंग) प्रारंभ किया गया तब इसे ‘आरटोइस बोरिंग’ कहा गया। यह अंग्रेजी में ‘आर्टीजियन’ बोरिंग कहा जाने लगा। आगे यह बिगड़कर सीधा ‘आर्टीजन’ हो गया।
आर्टीजन बोर हर जगह सफल नहीं है। यह ऐसे स्थान पर सफल होता है जहां जमीन के अंदर दो चट्टानों के मध्य पानी फंसता है और उसे जमीन के नीचे बहने का आसान रास्ता सुलभ न हो। उस जगह पानी भारी दबाव में एकत्र रहता है। यदि इस जगह छेद कर दिया जाए तो भारी बल के साथ पानी ऊपर को आता है। इसकी गहराई 915 फुट है। यह 40 लाख लीटर लिटर पानी रोज ऊपर फेंकता है। अमेरिका के अलावा अनेक यूरोपीय देशों में आर्टीजन बोरिंग्स बहुतायत में हैं।
– अयोध्या प्रसाद ‘भारती’