जो पार्टी खुलेआम ऐलान कर रही है कि मुख्यमंत्री बनने के दो घंटे के अंदर गांव-गांव शराब बिकवाएंगें, उसका सामाजिक बहिष्कार करें। यह कहना है अनिल प्रकाश का। अनिल प्रकाश, संपूर्ण क्रांति के आंदोलनकारी रह चुके हैं, बाद के दिनों में गंगा मुक्ति आंदोलन समेत कई आंदोलनों में सक्रिय रहे हैं। एमएलसी हो या विधानसभा, जो पार्टी संपूर्ण शराबबंदी की गारंटी करेगा, वोट वहीं पड़ेगा। यह आनंद पटेल ग्राम सभा का कहना है। ऐसी मुहिम तेज होती जा रही है। यह ऐसे समय हो रहा है जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती के अवसर पर प्रशांत किशोर ने जन सुराज नाम की राजनीतिक पार्टी बनायी और सत्ता की कुर्सी में बैठने के एक घंटे के अंदर शराबबंदी खत्म करने का ऐलान कर अपने राजनीतिक चरित्र का खुलासा कर दिया है। दिलचस्प यह भी है कि इन्हीं प्रशांत किशोर ने महात्मा गांधी को आदर्श बना कर उनकी कर्मस्थली चंपारण से अपनी पदयात्रा शुरू अपने राजनीतिक अभियान का आगाज किया था। उनका यह ऐलान महात्मा गांधी के सिद्धांतों के खिलाफ भी है, जिसके लिए लोगों को जेल जाना पड़ा था। महात्मा गांधी ने 1921 में शराब के खिलाफ आंदोलन किया था। बड़े पैमाने पर लोगों को इसके लिए जेल भी जाना पड़ा। प्रशांत किशोर की माने तो शराबबंदी से हर साल बिहार को 20,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। शराबबंदी हटेगी तो वह पैसा बजट में नहीं जाएगा और न ही नेताओं की सुरक्षा के लिए इस्तेमाल किया जाएगा और न ही इसका उपयोग सड़क, पानी और बिजली के लिए किया जाएगा। इसका उपयोग केवल बिहार में नई शिक्षा व्यवस्था बनाने के लिए किया जाएगा। उनके इस ऐलान का विरोध हो रहा है। बिहार सरकार की परिवहन मंत्री शीला मंडल का प्रशांत किशोर को इस बात की जानकारी नहीं है कि शराबबंदी से कितने घरों में खुशियां लौटी है। समाज में अमन-चैन का माहौल कायम हुआ है। भाजपा के शहनबाज हुसैन का कहना है कि प्रशांत गांधी जी का अपमान करते हैं। कहते हैं शराब ही खोल देंगे, शराब का दरिया बहा देंगे। ये जरूर है कि शराबबंदी में जो लोग गड़बड़ कर रहे हैं, उनको ठीक किया जाएगा। सब पार्टियों ने मिलकर शराबबंदी लागू की थी। वो ऐसा सिर्फ इसलिए बोल रहे हैं ताकि उन्हें कुछ शराबियों का समर्थन मिल जाए। अनेक गांधीवादी संगठनों का कहना है कि ज्यादातर दल शराब और पैसे के बल पर चुनाव को प्रभावित करते हैं इसलिए वे शराबबंदी का विरोध कर रहे हैं। आजादी के आंदोलन के दौरान प्रमुख मुद्दों में से एक मुद्दा शराबबंदी भी था। शराबबंदी की असफलता के पीछे पुलिस माफिया गठजोड़ एक मुख्य कारण है। कानून के साथ-साथ जागरूकता अभियान भी जरूरी है।
आजादी के बाद भारत की केंद्र सरकार ने अप्रैल, 1958 तक पूरे देश में शराबबंदी का लक्ष्य रखा था, जो कभी पूरा नहीं हो पाया। हालांकि आजादी के दो दशक बाद तक मौजूदा महाराष्ट्र, तमिलनाडु, मध्यप्रदेश, ओडिशा, कर्नाटक और केरल का बड़ा हिस्सा शराब मुक्त था, लेकिन 1967 में इनमें से ज्यादातर राज्य सरकारों ने अतिरिक्त राजस्व के लोभ में शराब की बिक्री की अनुमति दी।1977 में कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री बने तो बिहार में शराबबन्दी जैसा साहसिक फैसला लिया और बिहार में शराबबंदी लागू की गई।कर्पूरी ठाकुर ने जब शराबबन्दी का फैसला लिया तो शराब के व्यापार में शामिल लोगों के होश उड़ गए। शराब के व्यापार में शामिल दबंगों और माफियाओं को अप्रत्यक्ष रूप से राजनीतिक संरक्षण की भी बात कही जाती रही है। बाद में कांग्रेस सरकार ने 1981 में उसे हटा लिया। बाद के वर्षों में देश के कई राज्यों में शराब पर प्रतिबंध लगाया गया और फिर हटा लिया गया। बिहार में अप्रैल, 1916 में नीतीश कुमार की सरकार ने शराब की बिक्री और पीने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया।
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि नशा सभी बुराइयों की जड़ है। नशे से मनुष्य के विवेक के साथ सोचने समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। वह अपने हित-अहित और भले-बुरे का अंतर नहीं समझ पाता। बावजूद इसके शराब जैसी कुरीति का समर्थन जनहित में नहीं है।
गांधीजी ने कहा था कि शराब के सेवन से मनुष्य के शरीर और बुद्धि के साथ-साथ आत्मा का भी नाश हो जाता है। शराबी अनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है।
यह एक तल्ख़ हकीकत है कि नशे के चलते मरने वालों की संख्या 10 लाख से अधिक है। जिसमें विगत वर्ष अत्यधिक नशे का सेवन करने के कारण लीवर और किडनी खराब होने तथा दुर्घटना से एक लाख से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है । अधिकतर घरेलू हिंसा का मुख्य कारण भी नशा ही है।
शराब का सीधा प्रभाव हमारे समुदायों की सामाजिक और पारिवारिक गतिशीलता पर पड़ता है। शराब के कारण घरेलू हिंसा और बढ़ती गरीबी का सबसे ज्यादा मुकाबला महिलाओं और बच्चों को ही करना पड़ता है। सभी धर्म, सभी समाज सुधारकों, सभी धर्म गुरुओं, राजनीतिक लोगों, सामाजिक संगठनों एवं सरकारों के द्वारा नशा मुक्ति की बात कही जाती है लेकिन यह सर्व विदित है कि समाज में नशे का चलन लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में नशा करने वालों की संख्या 37 करोड़ के पार चली गई है। यह संख्या दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश अमेरिका से अधिक है। इनके साथ ही, नशा करने वालों में शराब पीने वालों की संख्या 16 करोड़ तक पहुंच गई है, जो रूस की आबादी के बराबर है। लगभग 3 करोड़ लोग शराब के बिना नहीं रह पाते। सर्वे के मुताबिक, शराब पीने वालों में 19 प्रतिशत (लगभग 3 करोड़) ऐसे हैं जो शराब के बिना रह नहीं पाते। 2.26 करोड़ लोग यानी कुल आबादी का 2.1 प्रतिशत अफीम, उसके डोडे, हेरोइन, स्मैक और ब्राउन शुगर जैसी ड्रग्स के शिकंजे में हैं। क्राइम ब्यूरो के अनुसार सबसे ज्यादा ड्रग्स के ओवरडोज से मरने वालों की संख्या पंजाब में 144, राजस्थान में 117, मध्य प्रदेश में 74 है। 2022 के आंकड़ों के अनुसार 681 व्यक्तियों की ड्रग के ओवरडोज से मृत्यु हुई, जिसमें 116 महिलाएं थी। पूरे देश में नारकोटिक्स ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) एक्ट 1985 के तहत देश में एक लाख 15 हजार केस दर्ज किए गए। जिसमें केरल में 26,619, महाराष्ट्र में 13,830 तथा पंजाब में 12,442 केस थे। इसी तरह पंजाब में ड्रग एब्यूज और अधिक शराब पीकर मरने वालों की संख्या देश में सर्वाधिक है। नशा क्रोनिक से पीडि़त भारतीयों की संख्या का कोई आंकड़ा तो नहीं है परंतु देश के सीमावर्ती राज्यों में नशा क्रोनिक से पीडि़तों की संख्या लगातार बढ़ती चली जा रही है।31 जनवरी 2023 तक दो साल में मुंद्रा बंदरगाह से 375.50 करोड़ रुपए की 75 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई तथा सितंबर 2021 में, राजस्व खुफिया निदेशालय, एक केंद्रीय एजेंसी ने मुंद्रा बंदरगाह पर दो कंटेनरों से लगभग 3,000 किलोग्राम हेरोइन जब्त की थी, इसकी कीमत लगभग 21,000 करोड़ रुपए थी। इसी तरह 2023 में केरल तट के पास एनसीबी और नौसेना द्वारा 2,500 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई थी।नई दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सीमा शुल्क अधिकारियों ने 12 और 13 नवंबर 2021 को युगांडा की दो महिला नागरिकों से 12.9 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई जिसकी कीमत लगभग 90 करोड़ रुपये थी। भारत में पिछले 14 सालों में ड्रग्स का इस्तेमाल लगातार बढऩे के बाद भी ड्रग तस्करों के पकड़े जाने की दर रत्न से भी कम है। चर्चित पत्रकार रही मणिमाला का मानना है कि चुनाव के समय मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक दल शराब बांटते है। राजस्थान में 2023 के विधानसभा चुनाव के दौरान 283 करोड़ की अवैध सामग्री जब्त की गई है। जिसमें अवैध शराब, नगदी एवं अन्य सोने चांदी के आभूषण शामिल थे। मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के दौरान 331 करोड़ से ज्यादा कैश व अवैध शराब सहित अन्य सामग्री बरामद की गई। इसमें नगद राशि 38.49 करोड़ व अवैध शराब 62.9 करोड़ की है।
सरकार नशीले पदार्थ के सार्वजनिक स्थान पर उपयोग करने पर कानूनी प्रतिबंध लगाती है लेकिन खुद शराब के कारखाने खुलवाती है। अफीम, गांजा, चरस की खेती करवाती है तथा नशा मुक्ति केंद्र भी खुलवाती है फिर नशा मुक्ति की करोड़ों रुपए की दवाई भी बिकवाती है।
अखिल भारतीय नशाबंदी परिषद के अध्यक्ष डा. रजनीश कुमार के मुताबिक -नशा मुक्त समाज की जरूरत के महत्व को समझते हुए, हमारे संविधान निर्माताओं ने राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के माध्यम से जन स्वास्थ्य में सुधार को सरकार का प्राथमिक कर्तव्य बनाया था। हमारे संविधान के अनुच्छेद 47 में निर्धारित किया गया था कि ‘राज्य स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नशीले पेय तथा मादक दवाओं के चिकित्सीय उद्देश्यों के सिवाए उनके सेवन पर प्रतिबंध लगाने का प्रयास करेगा।Ó इस अधिनियम में मादक पदार्थों के अवैध व्यापार पर नियंत्रण के कठोर प्रावधान किए गए तथा सरकार को नशे की लत की रोकथाम और उपचार के केन्द्र स्थापित करने के अधिकार दिए हैं।
हिंदू धर्म में शराब को अस्वास्थ्यकर और हिंसक व्यवहार का कारण बनने वाला माना गया है। इस्लाम में शराब को हराम माना जाता है। बौद्ध आम तौर पर शराब का सेवन करने से बचते हैं, क्योंकि यह पांच उपदेशों में से 5 वें, बुनियादी बौद्ध आचार संहिता का उल्लंघन करता है और दिमागीपन को बाधित कर सकता है । जैन धर्म में किसी भी प्रकार के शराब के सेवन की अनुमति नहीं है। शराब के सेवन के खिलाफ सबसे महत्वपूर्ण कारण मन और आत्मा पर शराब का प्रभाव है। किण्वन प्रक्रिया से जुड़े बड़ी संख्या में सूक्ष्मजीवों की हत्या से बचने के लिए जैन किण्वित खाद्य पदार्थों (बीयर, वाइन और अन्य अल्कोहल) का सेवन नहीं करते हैं। सिख धर्म के अनुसार एक दीक्षित सिख नशीले पदार्थों का उपयोग या सेवन नहीं कर सकता, जिनमें से शराब एक है। समाज में विशेष रूप से युवाओं में बढ़ती नशे की प्रवृत्ति को रोकने एवं इसकी बुराईयों से उन्हें अवगत कराना हमारा दायित्व और कर्तव्य भी है।
अवैध और जहरीली शराब की बिक्री बंद नहीं होने का एक कारण इंसान की धनलोलुपता है। वह तो केवल यह चाहता है येन-केन-प्रकारेण धन आना चाहिए, चाहे कोई मरे तो मरे। पहली बात तो यह है कि शराब का सेवन किसी भी रूप में और किसी भी प्रकार से उचित नहीं ठहराया जा सकता है। पर आजकल पूरे कुएं में ही भांग पड़ी हुई है और लोग इसे स्टेटस सिम्बल मानने लगे हैं।
लोक समिति लंबे समय से शराबबंदी के लिए मुहिम चला रही है। लोक समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष गिरिजा सतीश का मानना है कि जब तक शराब पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगेगा, तब तक लोगों का सम्यक विकास नहीं होगा। इस तरह हमारी सुचिंतित धारणा है कि समाज और मनुष्य के विकास के लिए शराबबंदी एक अनिवार्य शर्त है। यह उद्देश्य सिर्फ सरकार और कानून से पूरा नहीं हो सकता। इसके लिए सामाजिक स्तर पर सतत अभियान चलाने की जरूरत है।बिहार में बहुत से ऐसे संगठन और संस्थाएं हैं, जो शराबबंदी के लिए प्रयासरत हैं। मुख्यमंत्री को चाहिए कि उन संगठनों को प्रोत्साहित करें और पुलिस माफिया गठजोड़ पर कड़ा प्रहार करें।
(कुमार कृष्णन-विनायक फीचर्स)