Tuesday, July 2, 2024

निमंत्रण देते समय इन बातों का ध्यान रखें

कोई भी मांगलिक कार्य हो या फिर खुशी का मौका, इन अवसरों पर अपने मिलने वालों, रिश्तेदारों व मित्रों को न्योता दिया जाता है। संसार में व्याप्त हर एक परम्परा को विधिपूर्वक या किसी विशेष नियमों के साथ निभाने से उसका महत्ता और भी बढ़ जाता है। जब भी आप कोई मांगलिक कार्य हो या फिर खुशी का मौका, इन अवसरों पर अपने मिलने वालों, रिश्तेदारों व मित्रों को न्योता देने के लिए पत्र लिखते हैं तो उसके लिखने के पूर्व यदि कुछ विशेष बातों का ध्यान देते हंै तो आपके कार्यों में अच्छी सफलता मिलती है और कार्यों में किसी भी तरह की कोई समस्या नहीं होती है, अपने सम्बन्धियों, दोस्तों और अन्य लोगों को निमंत्रण पत्र देने का भी एक शुभ समय होता है, जिससे सभी कार्य मंगलपूर्वक संपन्न होते हैं।
सर्वप्रथम इस बात का ध्यान रखें कि किसी भी शुभ कार्य में सर्वप्रथम निमंत्रण/आमंत्रण कार्ड भगवान् गणेशजी को भिजवाना चाहिए। राजस्थान के रणथंभौर में त्रिनेत्र गणेश जी का एक ऐसा मंदिर स्थित है, जहां उन्हें प्रत्येक शुभ कार्य के लिए पहले निमंत्रण देते हैं, जिसके कारण गणेश जी के चरणों में चिठ्ठियों और निमंत्रण पत्रों का ढेर लगा रहता है। राजस्थान के सवाई माधौपुर से लगभग 10 कि.मी. दूर रणथंभौर के किले में त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर बना है।
लाखों लोग कोई भी शुभ कार्य करने पर सबसे पहला निमंत्रण पत्र रणथंभौर वाले गणेश जी को भेजते हैं। इस मंदिर में भगवान गणेश जी की प्रतिमा अन्य मंदिरों से भिन्न है। यहां विराजित प्रतिमा में भगवान गणेश जी की तीन आंखें हैं। इस मंदिर में गणेश जी अपनी पत्नी रिद्धि, सिद्धि और अपने पुत्र शुभ-लाभ के साथ विराजमान हैं। साथ में गणेश जी का वाहन मूषक भी है। यहां गणेश चतुर्थी पर धूमधाम से उत्सव मनाते हैं और विशेष पूजा-अर्चना भी होती है।
इस मंदिर में अन्य देशों से भी चि_ियां आती हैं। देश के लोग अपने घरों में होने वाले मांगलिक कार्यों का पहला निमंत्रण यहां गणेश जी को भेजते हैं। डाकिया इन चि_ियों को श्रद्धा और सम्मान से यहां पहुंचाता है और वहां का पुजारी इन पत्रों को गणेश जी को पढ़कर सुनाते हैं और भगवान के चरणों में रख देते हैं।
कार्ड पर ऐसे लिखें पता (एड्रेस)– ‘श्री गणेश जी, रणथंभौर का किला, जिला- सवाई माधौपुर (राजस्थान)।
सर्वप्रथम देखें चन्द्रमा
जब चन्द्रमा बली हो, तब निमंत्रण पत्र लिखें।  शुक्ल पक्ष की दशमी से लेकर कृष्ण पक्ष की पंचमी तक चन्द्रमा पूर्ण बली होता है। शुक्ल पक्ष की एकम से दशमी तक मध्यम बली और कृष्ण पक्ष की पंचमी से अमावस्या तक बलहीन होता है।
निमंत्रण लिखने हेतु बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार श्रेष्ठ हैं। इसमें भी यदि बुधवार को द्वितीया, सप्तमी और द्वादशी हो, गुरुवार को पंचमी, दशमी या पूर्णिमा हो, शुक्रवार को तृतीया, अष्टमी तथा त्रयोदशी हो तो अति उत्तम होता है। जिस वार को कार्य प्रारंभ करें, उस वार का ग्रह (बुध, गुरु, शुक्र) पाप ग्रहों से युत या दृष्ट न हो।
कौन सा नक्षत्र रहेगा शुभ/उत्तम
यदि चंद्रमा स्वाति, पुनर्वसु, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, अश्विनी और हस्त में हो और पंचम भाव शुभ हो।
पुत्र विवाह हेतु निमंत्रण पत्र
जिस दिन निमंत्रण देना है, उस समय की लग्न कुंडली में सप्तम भाव, द्वितीय स्थान तथा इनके स्वामी और स्त्री कारक शुक्र, शुभ प्रभाव में हो, पाप ग्रहों (शनि, राहू, केतु, सूर्य, मंगल) से युक्ति-दृष्टि न बने। तब निमंत्रण लिखें।
पुत्री-विवाह के लिए कौन-सा समय रहेगा शुभ
सप्तम भाव, द्वितीय इनके स्वामी और गुरु (स्त्री के लिए गुरु पति होता है) शुभ ग्रहों से युत या दृष्ट हो (उच्च, स्वग्रही, मित्र राशि में, शुभ नवांश में हो) तब लिखें।
नूतन भवन (मकान/आवास)
का निमंत्रण पत्र
जब चतुर्थ भाव, इसका स्वामी ग्रह और मंगल शुभ प्रभाव में हो तथा बली हो, तब गृह प्रवेश का निमंत्रण लिखना चाहिए।
पुत्र जन्मोत्सव के
लिए कब लिखें निमंत्रण
पंचम भाव, उसके स्वामी और गुरु पाप प्रभाव में न हों। इन बिंदुओं के अतिरिक्त चौघडिय़ा आदि देखकर और गणपति का ध्यान करके ही निमंत्रण पत्र लिख रहे हैं तो उससे पूर्व मन में सामथ्र्य अनुसार संकल्प लें और कार्य निर्विघ्न पूर्ण होने पर उस संकल्प को पूर्ण कर लें।
पं. विशाल दयानंद शास्त्री-विभूति फीचर्स

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