Sunday, February 23, 2025

समाज परिवर्तन और शिक्षा अभियान चलाकर कुलसुम बनी महिलाओं की प्रेरणास्रोत

मेरठ। महिलाओं के लिए प्रेरणा स्रोत बनी कुलसुम सयानी पर आज एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें कुलसुम सयानी के प्रति महिलाओं ने अपने विचार व्यक्त किए। डीयू की प्रोफेसर डॉ. शबाना अख्तर ने गोष्ठी की शुरूआत करते हुए कहा कि कुलसुम सयानी का जन्म 21 अक्टूबर 1900 को गुजरात में हुआ था।

कुलसुम 17 साल की उम्र में, वह और उनके पिता महात्मा गांधी से मिले। उसके बाद से कुलसुम गांधी जी के कदमों पर चल निकली। उन्होंने एक अन्य प्रसिद्ध स्वतंत्रता योद्धा डॉ. जान मोहम्मद सयानी से शादी की।

उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में काम करते हुए सामाजिक अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ी। वह अपने पति के समर्थन के कारण भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की विभिन्न गतिविधियों में अत्यधिक शामिल हो गईं। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान, उन्होंने सामाजिक परिवर्तन के लिए अभियान चलाया। उन्होंने निरक्षरों को शिक्षित करना शुरू किया और चरखा वर्ग का हिस्सा बन गईं। वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की जन जागरण पहल में भी एक प्रमुख व्यक्ति थीं, जिसका उद्देश्य लोगों को सामाजिक समस्याओं के बारे में अधिक जागरूक बनाना था।

प्रोफेसर सानिया रजनी ने कहा कि कुलसुम सयानी ने वयस्क शिक्षार्थियों, भारतीय मुक्ति आंदोलन में महिलाओं के महत्व, लोक कल्याण और भारत-पाकिस्तान संबंधों के अलावा अन्य विषयों के बारे में कई रचनाएँ लिखीं। उनके हिंदी भाषा के काम में प्रौध शिक्षा में मेरे अनुभव, भारत-पाक मैत्री-मेरे प्रयत्न, भारतीय स्वतंत्र संग्राम में महिलाओं की भूमिका, भारत में प्रौध शिक्षा शामिल हैं।

सयानी को उनके योगदान के लिए 1959 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। 1969 में, भारत के राष्ट्रपति ने उन्हें नेहरू साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। आज कुलसुम सयानी ना सिर्फ मुस्लिम महिलाओं बल्कि भारतीय महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत हैं। इस दौरान कुलसुम सयानी के चित्र पर पुष्प अर्पित किए गए। गोष्ठी में रेशना खातून, प्रोफेसर संगीता, प्रोफेसर अंजु शर्मा, डॉ. मंजू गौतम के अलावा अन्य महिलाएं उपस्थित रहीं।

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