Friday, November 22, 2024

चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देर से उठाया गया एक सही कदम!

हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह को भारत रत्न देने की घोषणा की है। उनके नाम के साथ ही पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव व कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भी भारत रत्न के लिए चुना गया है। इन तीनो को ही यह सम्मान मरणोपरांत मिलेगा। इससे पूर्व समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर और भाजपा नेता एवं पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी को भी भारत रत्न देने की घोषणा की गई। अच्छा होता लाल कृष्ण आडवाणी को यह सम्मान देने से पहले राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद पर ताजपोशी की गई होती लेकिन उन्होंने राजनीति की सक्रिय धारा से उनके सक्षम रहते हुए भी अलग कर दिया गया। चूंकि आडवाणी भाजपा को ताकत में लाने के प्रमुख स्तम्भ रहे है, ऐसे में भाजपा सरकार द्वारा उन्हें यह सम्मान दिया जाना एक अच्छा कदम है।

वही चौधरी चरण सिंह कई दशक पहले किसानों के हकों की लड़ाई लड़ते लड़ते इस दुनिया से चले गए, फिर भी चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न मिलने का स्वागत होना चाहिए भले ही यह लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के साथ चुनावी गठबंधन की आस में दिया गया हो। अलबत्ता पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को यह सम्मान देकर मोदी सरकार ने कम से कम राव सरकार के समय की उपलब्धियों को तो स्वीकार किया वरना अभी तक तो मोदी जी यही कहते आए है कि कांग्रेस ने 70 साल में कुछ नहीं किया, शायद वे भूल गए कि 70 साल में कुछ वर्ष उनकी पार्टी की भी सरकार रही। बहरहाल चौधरी चरण सिंह भारत रत्न मिलना गौरव की बात है। भारतीय राजनीति में चौधरी चरण सिंह एक ऐसा नाम रहा है जो अपनी सादगी, ईमानदारी और किसानों के मसीहा के रूप में जाना गया। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव से उठकर प्रधानमंत्री की कुर्सी तक जा पहुंचना वह भी एक मामूली किसान के लिए कोई कम बड़ी बात नहीं है।

हालांकि वे बहुत कम समय तक देश के प्रधानमंत्री रहे, लेकिन जब तक रहे सिद्धांत के साथ थे। गाजियाबाद में जब वह वकालत करते थे तो एंबेसडर कार में चलाकर कचहरी जाते थे। वह जहाज़ पर उडऩे के ख़िलाफ़  थे और प्रधानमंत्री होने के बावजूद लखनऊ रेल से ही आया जाया करते थे। उनके सामने घर में अगर कोई अनावश्यक बल्ब जलता हुआ मिलता तो वह डांटते थे कि इसे तुरंत बंद करो। चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति के ऐसे विराट व्यक्तित्व थे, जिन्होंने देश से न्यूनतम लिया और देश को अधिकतम दिया। चौधरी चरण सिंह का जन्म सन 1902 में उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के नूरपुर गांव में एक किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने सन 1923 में बीएससी की और आगरा विश्वविद्यालय से सन 1925 में एमएससी की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद एलएलबी की और गाजियाबाद से वकालत की शुरुआत की। बाद में वे मेरठ आ गये और कांग्रेस में शामिल होकर उन्होंने अपना राजनीतिक सफर को शुरू किया।

सन 1937 में छपरौली से उत्तर प्रदेश विधानसभा के लिए वह पहली बार चुने गए। इसके बाद सन 1946, सन 1952, सन 1962 एवं सन 1967 में उन्होंने विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। वे सन 1946 में पंडित गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में संसदीय सचिव बने और राजस्व, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य, न्याय, सूचना इत्यादि विभिन्न विभागों में कार्य किया। जून सन 1951 में उन्हें राज्य के कैबिनेट मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया और न्याय तथा सूचना विभाग का प्रभार दिया गया। बाद में सन 1952 में वे डॉ. सम्पूर्णानन्द के मंत्रिमंडल में राजस्व एवं कृषि मंत्री बने। अप्रैल सन 1959 में जब उन्होंने पद से इस्तीफा दिया, उस समय उन्होंने राजस्व एवं परिवहन विभाग का प्रभार संभाला हुआ था।

 

मुख्यमंत्री सी.बी. गुप्ता के शासनकाल में वे गृह एवं कृषि मंत्री थे। श्रीमती सुचेता कृपलानी की सरकार में वे कृषि एवं वन मंत्री रहे। उन्होंने सन 1965 में कृषि विभाग छोड़ दिया एवं सन 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का प्रभार संभाल लिया।

कांग्रेस विभाजन के बाद फरवरी सन 1970 में वे कांग्रेस पार्टी के समर्थन से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि बाद में राज्य में 2 अक्टूबर सन 1970 को राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था।चरण सिंह ने विभिन्न पदों पर रहते हुए उत्तर प्रदेश की राजनीतिक सेवा की। उनकी ख्याति एक कड़क व ईमानदार नेता के रूप में हो गई थी। प्रशासन में अक्षमता, भाई–भतीजावाद एवं भ्रष्टाचार को वे बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे। उत्तर प्रदेश में भूमि सुधार का पूरा श्रेय उन्हें जाता है। ग्रामीण देनदारों को राहत प्रदान करने वाला विभागीय ऋण मुक्ति विधेयक, 1939 को तैयार करने एवं इसे अंतिम रूप देने में उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। उनके द्वारा की गई पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। मुख्यमंत्री के रूप में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। यह अधिनियम खेती की जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने के उद्देश्य से लाया गया था, ताकि राज्य भर में इसे एक समान बनाया जा सके।

देश में कुछ-ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने लोगों के बीच रहकर सरलता से कार्य करते हुए इतनी लोकप्रियता हासिल की। एक समर्पित लोक कार्यकर्ता एवं सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले चौधरी चरण सिंह को लाखों किसानों के बीच रहकर प्राप्त आत्मविश्वास से काफी बल मिला। चौधरी चरण सिंह ने अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया और अपने खाली समय में वे पढऩे और लिखने का काम करते थे। उन्होंने कई किताबें लिखी जिनमें ‘ज़मींदारी उन्मूलन, ‘भारत की गरीबी और उसका समाधान, ‘किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, ‘प्रिवेंशन ऑफ़  डिवीजऩ ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम, ‘को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रैद् आदि प्रमुख हैं।

उनका रौबीला व्यक्तित्व था, जिसके सामने लोगों की बोलने की हिम्मत नहीं पड़ती थी। उनके चेहरे पर हमेशा परिपक्वता होती थी। वे हमेशा संजीदा बातचीत करते थे और बहुत कम मुस्कुराते थे। उन्हें कभी ठहाके मारकर हंसते हुए शायद ही किसी ने देखा हो।वह उसूलों के पाबंद थे और बहुत साफ़-सुथरी राजनीति के पक्षधर थे।आंदोलनो के दौरान वह महात्मा गाँधी और कांग्रेस की मिट्टी में तपे थे। सन 1937 से लेकर सन 1977 तक वह छपरौली – बागपत क्षेत्र से लगातार विधायक रहे. प्रधानमंत्री बनने के बावजूद उनके साथ किसी तरह का कोई लाव – लश्कर नही चलता था।
कोर्टपीस खेलने के शौकीन

चौधरी चरण सिंह से लोगों का रिश्ता दो तरह का हो सकता था – या तो आप उनसे नफरत कर सकते थे या असीम प्यार. बदले में आपको भी या तो बेहद ग़ुस्सा मिलता था या अगाध स्नेह उनका व्यवहार कांच की तरह पारदर्शी और ठेठ देहाती बुज़ुर्गों जैसा हुआ करता था।

‘बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि वह संत कबीर के बड़े अनुयायी थे। कबीर के कितने ही दोहे उन्हें याद थे। वह धोती और कुर्ता पहनते थे और ‘एचएमटी घड़ी बाँधते थे, वह पूरी तरह शाकाहारी थे।

स्व. चौधरी चरण सिंह ने आगरा कॉलेज आगरा से एलएलबी किया था। वे आगरा कॉलेज के सपू्र हॉस्टल के रूम नंबर 27 में रहते थे। चौधरी चरण सिंह का रसोईया वाल्मीकि समाज से था। उनके साथ शिक्षारत विद्यार्थियों ने इस बात का विरोध किया, लेकिन चौधरी चरण सिंह उस रसोइये के समर्थन में रहे, उन्होंने कहा कोई ऊंच नीच नहीं होता। चौधरी चरण सिंह की इस सोच ने सबका दिल जीत लिया।

वे आगरा के फतेहपुर सीकरी विधानसभा और किरावली ब्लॉक के गांव सरसा में मुख्यमंत्री बनने के बाद आये थे। गांव में आने का उद्देश्य महज औचक निरीक्षण करना था। चौधरी चरण सिंह के साथ जिलाधिकारी भी थे। जब गांव में चौधरी चरण सिंह और जिलाधिकारी एक स्थान पर कुर्सी पर बैठे, तो वहां कुछ बुजुर्ग किसान उन्हें खड़े दिखाई दिए । इस पर चौधरी चरण सिंह ने जिलाधिकारी को किसान के लिए कुर्सी छोडने को कहा। उन्होंने कहा कि इन किसानों को कुर्सी दो क्योंकि अधिकारी जनता का सेवक होता है, मालिक नही।ऐसे थे अपने किसान नेता चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न की बधाई।
-डॉ श्रीगोपाल नारसन एडवोकेट
(लेखक किसानों के हितचिंतक व वरिष्ठ पत्रकार है)

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