मानव की प्रकृति प्रदत्त विभूतियों में एक बड़ी ही मोहक विभूति है – हास्य विनोद। जिन्दगी केवल कराहों का सिलसिला, आहों का जलजला, दर्द की दास्तान बनकर रह जाए यदि उसमें हास्य विनोद न हो।
प्रसन्न मुद्रा और उल्लास प्राकृतिक सौंदर्य का अथाह समुद्र है। मनुष्य को चाहिए कि इसमें जी भर कर स्नान करे। हंसने की इच्छा रखने के लिए आयु, माहौल एवं लिंग का कोई बंधन नहीं है। हर मानव चाहे वह पुरूष हो या औरत, हंसना चाहता है। हंसना ऐसी प्रक्रिया है जिससे शरीर और मस्तिष्क को नई शक्ति मिलती है। त्रास्त शिराओं में मकरध्वज की सी ऊष्मा आ जाती है।
राष्ट्रपिता गांधी जी ने कहा था कि ‘यदि मुझमें विनोद का भाव न होता तो मैंने बहुत पहले ही आत्महत्या कर ली होती।’ वह मानव बड़ा ही भाग्यशाली है जिसे विधाता से हास्य और विनोद का बहुमूल्य वरदान मिला है। तमाम रसों में हास्य रस सबसे सरस एवं सरल है। यह मानव जीवन की आवश्यकता है।
सुप्रसिद्ध जापानी कवि नागूची ने भगवान से वरदान मांगा कि ‘जब जीवन के किनारे की हरियाली सूख गई हो, चिडिय़ों की चहक मूक हो गयी हो, सूर्य को ग्रहण लग गया हो, मेरे मित्रा एवं साथी मुझे कांटों में अकेला छोड़कर कहीं चले गए हों और प्रकाश का सारा क्रोध मेरे भाग्य पर बरसने वाला हो, तब हे भगवान, तुम इतनी कृपा करना कि मेरे होंठों पर हंसी की एक लकीर खींच जाना।
हंसी एक औषधि है जो मन को निरोग रखती है और इसके लिए कुछ खर्च भी नहीं करना पड़ता। खुले मन से हंसने वाला व्यक्ति कभी भी हिंसक नहीं हो सकता। जब हंसी के इतने लाभ हैं तो इससे परहेज क्यों? क्यों न हम सभी वक्त-बेवक्त ठहाका लगाने की आदत को अपनी दिनयर्चा बना लें।
हास्य और उल्लास का नाम ही जवानी है। जार्ज बर्नार्ड शॉ ने कहा है कि हंसी की पृष्ठभूमि पर ही जवानी के फूल खिलते हैं। जिदंगी हास्य और विनोद के बिना अपनी जिंदादिली खो देती है।
कहा जाता है कि अमेरिकी लोग बहुत कम हंसते हैं। जानते हैं आप कि सबसे ज्यादा ब्लड प्रेशर और हृदय रोग के शिकार अमेरिका के ही लोग होते हैं। दीर्घायु होने का सर्वोत्तम साधन है हंसमुख स्वभाव। कहा भी गया है कि हंसते ही घर बसते हैं।
किंतु यह ध्यान रखना चाहिए कि हंसना इतना अमर्यादित न हो जाये कि दूसरों की नींद हराम कर दे। ऐसा न हो जाये कि दूसरे के काम में रोड़ा अटकाये। दूसरों के दुख को देखकर भी नहीं हंसना चाहिए।
अत: मर्यादित हास्य और विनोद परमात्मा का एक अनोखा वरदान है – इसमें संदेह नहीं।
– राजेश कुमार ‘रंजन’