आज महावीर जयंती है। भगवान महावीर ने अहिंसा परमोधर्म कहा। उन्होंने संसार को एक बहुत प्यारा नारा दिया- ‘जियो और जीने दो।’ यही तो धार्मिक आदमी के लक्षण हैं कि वह स्वयं भी सुख और शान्ति के साथ जीता है और दूसरों को भी शांति के साथ जीने देता है। दूसरों की सुख-शान्ति नहीं छीनता, अपने वैभव पर इतराता नहीं।
जो इस सबके विपरीत आचरण करता है वह दैत्य की संज्ञा में आता है। जो व्यक्ति कठोर है अपने साथ-साथ दूसरों की शान्ति भंग करता है, वह अधार्मिक है। धार्मिक तो वह है जिसके हृदय में करूणा है।
सभी महान पुरूषों और सभी धार्मिक ग्रंथों की वाणी का यही सार निकलता है कि व्यक्ति को दयालु होना चाहिए। दया का, प्रेम का रूप संसार में बांटना चाहिए। यहां तक प्रयास करना चाहिए कि यदि भोजन करने बैठे हो तो आसपास देख लेना चाहिए कि कहीं कोई व्यक्ति भूखा है तो पहले उसे खिलाकर खायें। व्यक्ति अपने लिए कोई वस्त्र सिलवाये तो ध्यान कर ले कि कोई आसपास नंगा वस्त्रहीन इंसान तो नहीं है, यदि है तो उसे भी वस्त्र दें।