सभी योनियों में मानव को परमात्मा ने ‘विशेष’ बनाया है। विवेकरूपी रत्न केवल मानव को प्रदान किया है, जिसका सदुपयोग कर मानव अपनी सारी अभिलाषाएं पूर्ण कर सकता है।
सृष्टि के समस्त जीवों में मानव को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। जीव को यह वरदान के रूप में मिली है। इसके महत्व को यदि समझ लिया जाये तो संसार में कोई भी आत्महत्या नहीं करेगा।
जीवन एक उत्सव है और आत्महत्या एक पाप है, अपराध है। कुछ लोग अज्ञानवश जीवन की परेशानियों को देखते हुए जीवन का उत्सव नहीं मनाते। ऐसे लोग प्रभु प्रदत्त इस अद्भुत जीवन को वरदान मानते ही नहीं।
ऐसे लोग अपनी परेशानियों और समस्त दुविधाओं के लिए ईश्वर को ही दोषी मानते हैं। इसलिए उनका मानव जीवन कोई वरदान न होकर अभिशाप बन जाता है और इस प्रकार वे अपना जीवन जीते नहीं जीवन को भुगतते हैं।
चिंतामणि नाम का एक रत्न होता है, जिसे सारे मनोरथ पूरे करने वाला माना जाता है। ईश्वर ने मनुष्य को वह चिंतामणि रत्न विवेक के रूप में दिया है, ताकि मनुष्य अपने जीवन को उत्सव मान सके।
याद रखिऐ कि विवेकरूपी यह रत्न सभी जीवों में केवल मनुष्य के पास होता है, जिसका सर्वोत्तम उपयोग करते हुए वह अपनी सारी अभिलाषाएं पूर्ण कर सकता है।