आदमी की लालसायें न जाने कब खींचकर उसको नरक के गर्त में पहुंचा देती है। आपको जो भी पद प्राप्त हों, जितने भी अधिकार प्राप्त हों, कितना भी सम्मानित स्थान आपको प्राप्त हुआ है, यदि आपने समाज के साथ, राष्ट्र के साथ न्याय नहीं किया, यदि आप अपनी निरंकुश लालसाओं के हाथों बिक गये तो फिर परिणाम गम्भीर होंगे।
यदि आपके मन में एक गरीब का हिस्सा पाने की लालसा भी जम गई तो सोचिए इसका परिणाम क्या होगा? आपको बुरा लगता है न, जब कोई ऐसी बात कहता है। विचार कीजिए चमड़ी के रोग को आवरण से ढांकने भर से क्या उससे मुक्त हो जाओगे ?
कहा जाता है कि ‘लोभ पाप का बाप है’। यह लोभ ही है, जो हमसे कुकर्म कराता है, यह लोभ ही है, जो हमें निरंकुश बना देता है। जो पदों पर बैठते हैं उनकी परीक्षा होती है। यह परीक्षा परिस्थितियां और समाज लेते हैं, जीवन में प्रगति के शिखर पर पहुंचना चाहिए, परन्तु नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर नहीं।
सब कुछ हासिल करने के लिए कुछ भी करना ठीक नहीं। यही वह प्रवृत्ति है, जो आदमी को पाप की कोठरी में कब धकेल देती है, उसे पता भी नहीं चलता। इसलिए स्वयं से और समाज से सम्मान पाना है, तो अपनी आत्मा को कुकर्मों के बोझ से मत दबाओ।