नयी दिल्ली- उच्चतम न्यायालय ने बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों को छूट देने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान मंगलवार को कहा कि आप (गुजरात सरकार) सेब की तुलना संतरे से नहीं कर सकते, उसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती।
न्यायमूर्ति के एम जोसेफ और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस वी राजू से कहा कि जब विचाराधीन अपराध “जघन्य” और “भयानक” था तो राज्य सरकार के लिए यह अनिवार्य है कि वह दिमाग का इस्तेमाल करे।
पीठ ने दोषियों को छोड़ने संबंधी दस्तावेज नहीं दिखाने पर श्री राजू से कहा, “आज यह महिला (बिलकिस) है। कल, आप या मैं हो सकते हैं। वस्तुनिष्ठ मानक होने चाहिए … यदि आप हमें कारण नहीं बताते हैं, तो हम अपने निष्कर्ष निकालेंगे।”
शीर्ष अदालत ने इस तथ्य पर भी गौर किया कि एक गर्भवती महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया था और कई लोग मारे गए थे। इस मामले की तुलना भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302 (हत्या) के मानक मामलों से नहीं की जा सकती है।
पीठ ने श्री राजू से कहा, “जैसे आप सेब की तुलना संतरे से नहीं कर सकते, उसी तरह नरसंहार की तुलना एक हत्या से नहीं की जा सकती। अपराध आम तौर पर समाज और समुदाय के खिलाफ किए जाते हैं। असमान लोगों के साथ समान व्यवहार नहीं किया जा सकता है।”
पीठ ने सुनवाई के दौरान गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को दी गई छूट से संबंधित फाइलें इस अदालत के समक्ष पेश नहीं करने पर नाराजगी जताई।
शीर्ष अदालत ने 11 दोषियों की समय से पहले रिहाई को चुनौती देने वाली बिलकिस बानो और सीपीएम की पूर्व सांसद सुभाषिनी अली समेत अन्य की याचिकाओं पर आगे की सुनवाई दो मई को तय की है।