मनुष्य शारीरिक रूप से शक्तिशाली न भी हो, परन्तु यदि उसकी इच्छाशक्ति दृृढ़ हो तो वह कैसा भी कठिन कार्य हो कर गुजरता है। इसके विपरीत यदि उसमें शारीरिक बल बहुत है पर इच्छाशक्ति की कमी हो, तो वह सरलतम कार्य करने में भी असमर्थ रहता है। कार्य करना तो दूर की बात है, वह अपने स्थान से उठना भी नहीं चाहेगा। मनुष्य की इच्छाशक्ति पर यह सब निर्भर करता है। इसी भाव को निन्म श्लोक में कवि ने बहुत खूबसूरती से लिखा है-
योजनानां सहस्त्रं तु शनैर्गच्छेत् पिपीलिका।
आगच्छन् वैनतेयोपि पदमेकं न गच्छति
अर्थात् चींटी काफी धीरे चलती है, फिर भी लगातार चलने रहने से सहस्त्रों योजन दूर चली जाती है। गरुड़ पक्षी की उडऩे की गति बहुत तेज होती है। यदि उसकी उडऩे की इच्छा नहीं है तो वह एक कदम भी नहीं उड़ सकता।
मनुष्य की इच्छाशक्ति दृढ़ हो तो मनुष्य आसमान में ऊँची उड़ान भर सकता है। वह समुद्र में गहरे पैठ सकता है। वह विशाल पर्वतों का सीना चीर सकता है। वह शेर जैसे खूँखार और हाथी जैसे शक्तिशाली जीवों को अपने वश में कर सकता है। वह नदियों की धारा को अपनी इच्छा से मोड़ सकता है, वह भगीरथ की तरह आकाश से गंगा को भी धरती पर लेकर आ सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि इस धरती पर ऐसा कोई कार्य नहीं है, जो वह नहीं कर सकता।
यहाँ महात्मा गांधी का उदाहरण ले सकते हैं जो इस विषय के लिए बिल्कुल सटीक है। शारीरिक शक्ति न होने पर भी अपने भारत देश को स्वतंत्र करवाने की उनकी दृृढ़ इच्छाशक्ति के सामने अंग्रेजी सरकार ने घुटने टेक दिए। उन्होंने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता का शंखनाद कर दिया। अन्तत: वीरों के बलिदान स्वरूप हमारा देश आज स्वतंत्रता का मीठा फल खा रहा है।
दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर आज हमारे वैज्ञानिकों ने अनेक चमत्कार किए हैं। उनके अथक प्रयासों के फलस्वरूप हम सब लोग सर्दी में गर्मी का आनन्द लेते हैं और गर्मी में ठंडक का मजा चखते हैं, आसमान में उड़ते हैं, समुद्र में आवागमन करते हैं। आज हम अनेक नक्षत्रों पर भी आवागमन कर रहे हैं। नदियों पर बाँध बनाकर, बिजली का उत्पादन करके रात्री में जगमग करते हैं यानी सब प्रकार के सुखों का भोग कर रहे हैं।
अपने चारों नजर दौड़ाने पर हमें मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति का अनुभव होता है। हर ओर होने वाली चहल-पहल, ऊँची-ऊँची इमारतें, हर प्रकार की गाडिय़ों की आवाजाही उसकी जीवन्तता का ही प्रमाण देते हैं। उसकी इच्छाशक्ति के बल पर ही इस संसार का अस्तित्व है नहीं तो सब कुछ सुस्त-सा और शक्तिहीन-सा दिखाई देता। इसमें जीवन का आनन्द ही समाप्त हो जाता।
इच्छाशक्ति हो तो मनुष्य कुछ भी कर गुजरता है। शारीरिक बल का भी बहुत महत्त्व है पर उससे भी बढ़कर इच्छाशक्ति का दृढ़ होना अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। इच्छाशक्ति दृढ़ हो तो मनुष्य दुनिया के सारे कार्य-व्यवहारों को परे छोड़कर, ईश्वर को भी साध लेता है। फिर अपने लिए मोक्ष का मार्ग प्रशस्त कर लेता है। तब वह चौरासी लाख योनियों के कष्टकारी आवागमन से मुक्त हो जाता है।
– चन्द्र प्रभा सूद