Friday, May 17, 2024

समान नागरिक संहिता को मुसलमान स्वीकार नहीं कर सकते : मौलाना अरशद मदनी

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देवबंद (सहारनपुर)। देश के मुसलमानों के सबसे बड़े मजहबी और सामाजिक संगठन जमीयत उलमाए हिंद के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं इस्लामिक शिक्षण संस्था दारूल उलूम देवबंद के सदर मुदर्रिस 82 वर्षीय मौलाना अरशद मदनी ने आज स्पष्ट शब्दों में कहा कि यदि समान नागरिक संहिता देश में लागू की जाती है तो मुसलमान उसे किसी भी हाल में स्वीकार नहीं करेंगे क्योंकि ऐसा करना उनकी धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ होगा।

मौलाना अरशद मदनी की ओर से भारतीय विधि आयोग को इस संबंध में जो सुझाव भेजे गए हैं उनको जमीयत के प्रेस सचिव फजर्लुरहमान कासमी की ओर से आज प्रेस के लिए जारी किया गया है। इसमें कहा गया है कि संविधान का अनुच्छेद 25 भारत के नागरिकों को अंतःकरण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता प्रदान करता हैं। जिसमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि जमीयत उलमाए हिंद समान नागरिक संहिता लागू किए जाने का शांतिपूर्वक और विधि के अनुसार पूरी ताकत से विरोध करेगी। मौलाना मदनी ने कहा कि देश में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सीआरपीसी और इंडियन पैनल कोड (आईपीसी) पहले से ही लागू है। जो हर नागरिक पर लागू होती है। लेकिन समान नागरिक कानून विभिन्न अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक स्वतंत्रता में दखल अंदाजी करने जैसा होगा।

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उन्होंने कहा कि हमारा पर्सनल ला कुरान और सुन्नत पर आधारित है। जिसमें किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता मुसलमानों को स्वीकार नहीं है और ये देश की एकता और अखंडता के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता शुरू से ही विवादास्पद मुद्दा रहा है। भारत सदियों से विविधता में एकता का प्रतीक रहा है। जहां विभिन्न धार्मिक और सामजिक वर्गों और जनजातियों के लोग अपने धर्म की शिक्षाओं का पालन करके शांति और एकता के साथ रहते आए हैं। इन सभी ने ना केवल धार्मिक स्वतंत्रता का आनंद लिया है बल्कि कई बातों में एकरूपता ना होने के बावजूद उनके बीच कभी कोई मतभेद पैदा नहीं हुए और ना ही इनमें से किसी ने कभी दूसरों की धार्मिक मान्यताओं और रीति-रिवाजों पर आपत्ति उठाई है। मौलाना मदनी ने कहा कि भारतीय समाज की यही विशेषता उसे दुनिया के सभी देशों से अलग और श्रेष्ठ बनाती है।

यह गैर एकरूपता 100-200 साल पहले या आजादी के बाद पैदा नहीं हुई है बल्कि यह भारत में सदियों से मौजूद है। उन्होंने कहा कि हम सत्ताधीशों से यह कहना चाहते हैं कि कोई भी फैसला नागरिकों पर नहीं थोपा जाना चाहिए और ऐसा करने से पहले आम सहमति बनाने का प्रयास करना चाहिए। जिससे फैसला सभी को स्वीकार्य हो। सरकार को देश के सभी धर्मों और सामाजिक एवं आदिवासी समूहों के प्रतिनिधियों से बातचीत करनी चाहिए और उन्हें भरोसे में लेना चाहिए यही लोकतंत्र का तकाजा है। मौलाना मदनी ने कहा कि जेयूएच समान नागरिक संहिता का विरोध करती है। उन्होंने कहा कि भारतीय संविधान धर्म निरपेक्ष है जिसका अर्थ यह है कि देश का अपना कोई धर्म नहीं है। सभी धर्मों का समान रूप से सम्मान करता है। धर्म के आधार पर किसी से भी भेदभाव नहीं किया जा सकता है।

देश के प्रत्येक नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि एक धर्म विशेष के लोगों को ध्यान में रखकर बहुसंख्यकों को गुमराह करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 44 की आड़ ली जाती है और कहा जाता है कि ये बात संविधान में कही गई है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के दूसरे सरसंघचालक गुरू गोल वलकर ने कहा था कि समान नागरिक संहिता भारत के लिए अप्राकृतिक है और यह विविधताओं के खिलाफ है। सच्चाई यह है कि समान नागरिक संहिता की बात संविधान के दिशा-निर्देशों में सुझाव की तरह है। नागरिकों के मौलिक अधिकार की गारंटी संविधान में दी गई हैं।

संविधान के अध्याय तीन के तहत उल्लेखित मूल अनुच्छेद में किसी भी संस्था को चाहे संसद हो या सुप्रीम कोर्ट बदलने का अधिकार नहीं है। हमारा संविधान स्वतंत्रता के बाद तैयार हुआ है। जबकि इतिहास के अनुसार सदियों में इस देश के लोग अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करते हुए आ रहे हैं। लोगों की धार्मिक मान्यताएं और रीति-रिवाज अलग-अलग रहे हैं। लेकिन उन्होंने कभी कोई असहमति नहीं जताई और ना उनमें तनाव पैदा हुआ।

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