मुजफ्फरनगर। नगर की प्रसिद्ध संस्था वाणी की मासिक गोष्ठी श्रीमती सुनीता सोलंकी के आवास शाकुंतलम पर नवनिर्वाचित अध्यक्ष बृजेश्वर त्यागी के निर्देशन एवं सचिव सुनील कुमार शर्मा के संचालन में आयोजित की गई। जिसमें सभी रचनाकारों ने अनेक विषयों पर अपनी अपनी रचनाओं को प्रस्तुत किया।
राम कुमार शर्मा रागी ने जीवन की समस्याओं पर कुछ यूं कहा…
जी चाहता है सहना छोड़ दूं,
इन मंजरों में रहना छोड़ दूं,
कोई बात मानता ही नहीं,
सुनना छोड़ दूं या कहना छोड़ दूं।
पंकज शर्मा ने कलम से नफरत पर वार करते हुए कहा…
पथिक हूं प्रेम के पथ का मुझे नफरत नहीं आती, कलम वाला नहीं करता कभी तलवार की बातें
श्रीमती कमला शर्मा ने रिमझिम फुहार का वर्णन कुछ यूं किया…
देखो पड़ती है रिमझिम फुहार सावन आ गया।
प्रमोद कुमार ने पर्यावरण पर ध्यान देने की बात कही…
पर्यावरण परिवार सम्मान, मानव दो तुम इस पर ध्यान।
वृक्ष लगा कर देखो तो वसुधा देगी आपको सम्मान।
सुनील शर्मा ने निर्जीव चीजों को परिवार की भांति कुछ ऐसे वर्णित किया…
मेरे घर की रसोई में, रहता था 6 गिलासों का परिवार,
कांच की माटी से बना सदा रहता था खुशहाल।
संतोष कुमार शर्मा फलक ने सुंदर ग़ज़ल पेश की…
मयकदे के कह कहे जाने किधर गए
लहू के दौर में शराब कौन पीता है।
पंडित राजीव
शामली ने अपनी वाणी को यूं व्यक्त किया…
वाणी में अभिव्यक्ति का संसार है,
डूबते मन के लिए पतवार है।
नगर के प्रसिद्ध डॉक्टर बृजेश मिश्रा ने एक ऐसे पेश की…..
तुमसे कल जो मुलाकात हो गई,
एक नई नज़्म की शुरुआत हो गई।
स्वर कोकिला सुशीला शर्मा ने कहा….
यह जो घरों से धुआं उठा है इसे मैं कैसे हटाऊं बोलो।
दिलों में है आग नफरतों की इसे मैं कैसे बुझाऊं बोलो।।
योगेंद्र सोम ने तनों की पीर पर कुछ ऐसे कटाक्ष किया….
तनु की पीर है शामिल लाए जल हिमालय से, यह अर्पित है तुझे भोले तेरे मंदिर शिवालय में।
इनके अलावा विपुल शर्मा, राकेश कौशिक, मधुर नागवान, सुनीता सोलंकी, डॉ वीणा गर्ग, इंदु राठी आदि ने एक से बढ़कर एक रचनाएँ सुनाकर श्रोताओं को आल्हादित कर दिया। गोष्ठी के दरम्यान मणिपुर की घटना पर भी कवियों द्वारा रोष व्यक्त किया गया।