पटना| पटना में 20 राजनीतिक दलों की बैठक के बाद बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का कद राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ गया है। इसके अलावा, राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव एक बार फिर राजनीति में जोरदार वापसी कर रहे हैं।
इन दोनों नेताओं ने जिस तरह से बैठक में सूत्रधार की भूमिका निभाई, वह बिहार और देश में भाजपा के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इन दोनों नेताओं का राज्य की जनता से जुड़ने का अनोखा अंदाज है। यह 2015 के विधानसभा चुनाव में देखा गया था, जब उन्होंने बिहार में नरेंद्र मोदी के ‘विजय रथ’ को रोक दिया था।
2024 में स्थिति भाजपा के लिए और भी खराब है, क्योंकि सत्ता विरोधी लहर भी चरम पर है। केंद्र की भाजपा सरकार को 2014 में किए गए वादों को पूरा करने में विफल रहने के लिए काफी आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में लालू प्रसाद और नीतीश कुमार की जोड़ी उन्हें भाजपा के लिए एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी बना देगी।
नीतीश कुमार ही थे, जिन्होंने अपने बुलावे पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को पटना आने का निमंत्रण देने में अहम भूमिका निभाई थी। इससे यह भी साबित हो गया कि विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच नीतीश कुमार की स्वीकार्यता सबसे ज्यादा है। उनकी छवि साफ-सुथरी है और उनके खिलाफ कोई कानूनी या भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है। उन्हें इन पार्टियों का संयोजक भी घोषित किया गया, जिसका मतलब है कि वह लोकसभा चुनाव के लिए दो या दो से अधिक पार्टियों के बीच सीट बंटवारे पर बातचीत के दौरान मध्यस्थ की भूमिका निभाएंगे।
पटना की बैठक की शानदार सफलता के बाद जद-यू विधायक शालिनी मिश्रा ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट अपलोड किया, जिसमें नीतीश कुमार की तस्वीर और ‘देश मांगे नीतीश’ का नारा था।
बिहार सरकार में भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी ने कहा, हर जन आंदोलन के पीछे एक मजबूत व्यक्ति का हाथ होता है। बिहार अतीत में कई जन आंदोलनों का गवाह रहा है, जिसने देश में सत्तारूढ़ दलों को हिलाकर रख दिया था।
चौधरी ने कहा, लोकतंत्र में एक मजबूत विपक्ष का होना जरूरी है और यह नीतीश कुमार के प्रयासों से संभव है।
जद-यू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा, जेपी नड्डा और अमित शाह के पास हमसे कहने के लिए कुछ नहीं बचा है। इसलिए, वे कांग्रेस और शिवसेना के एक ही मंच पर आने की बात करते हैं जहां हम हैं। यह एक गैर-जिम्मेदाराना कदम है।
सिंह ने कहा, 1975 में आपातकाल के दौरान जब हम लड़ रहे थे, तो यह उस समय की स्थिति के खिलाफ लड़ाई थी, न कि किसी सरकार के खिलाफ। वर्तमान चरण में स्थिति आपातकाल से भी बदतर है। उस समय, प्रेस स्वतंत्र था लेकिन अब प्रेस उनके नियंत्रण में है, सभी संवैधानिक संस्थाएं उनके नियंत्रण में हैं। उन्होंने मीडिया संगठनों के प्रबंधन पर नियंत्रण कर लिया है। इसलिए, आज लोकतंत्र खतरे में है। भाजपा लोकतंत्र को नष्ट कर रही है और हमें आपातकाल याद करने के लिए कह रही है।”
उन्होंने कहा, अगर कोई आपके (केंद्र) खिलाफ बात करता है, तो सीबीआई, ईडी, आयकर उन्हें निशाना बनाते हैं। आपातकाल के दौरान ऐसा नहीं था जब इंदिरा गांधी ने इन संवैधानिक संस्थानों का इस्तेमाल किया था। केंद्र देश के लोगों, आजादी को धमकी दे रहा है। सिंह ने कहा कि देश खतरे में है और इसलिए हम इस स्थिति से लड़ रहे हैं और कांग्रेस पार्टी हमारे साथ है।
ललन सिंह ने अमित शाह के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “वह एक भविष्यवक्ता हैं और अगर उन्होंने भविष्यवाणी की है कि बीजेपी 300 से ज्यादा सीटें जीतेगी और मोदी जी देश में सरकार बनाएंगे तो इसका मतलब है कि मोदी जी चुनाव हार रहे हैं। जब बिहार में 2015 का विधानसभा चुनाव हो रहा था, तो वह तीन महीने तक यहां रुके थे और मतगणना के दिन सुबह 10.30 बजे तक भविष्यवाणी की थी कि भाजपा सरकार बनाएगी। परिणाम क्या था, भाजपा ने सिर्फ 53 सीटें जीतीं। जब वह पश्चिम बंगाल गए, तो उन्होंने दो-तिहाई जनादेश के साथ अपनी सरकार बनने की भविष्यवाणी की। उनकी पार्टी ममता दीदी के खिलाफ लड़ रही थी, वहां क्या हुआ? उन्होंने हिमाचल और कर्नाटक में भी यही भविष्यवाणी की और परिणाम क्या थे? यदि वह दावा कर रहे हैं कि 300 सीटें जीतकर मोदी जी फिर सरकार बनाएंगे तो इसका मतलब है कि वह चुनाव हार रहे हैं।”
उन्होंने कहा, पटना में विपक्षी एकता की बैठक शुरू होने से पहले भाजपा नेताओं ने भ्रम फैलाया कि शुक्रवार को कौन आएगा और कौन नहीं। अब, आपने देखा भाजपा-आरएसएस विरोधी विचारधारा वाले सभी राजनीतिक दल एक मंच पर एकत्र हुए। हमारा मानना है कि बैठक हमारी अपेक्षाओं से अधिक सफल रही। भाजपा नेता अब मान रहे हैं कि उनका प्रस्थान निकट है और वे असहज महसूस कर रहे हैं।
राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने कहा, पटना की बैठक में भाजपा मुक्त भारत की नींव रखी गई।
उन्होंने कहा, हमारे पास आमने-सामने की लड़ाई और वोटों के बिखराव को कम करने का सरल फॉर्मूला है। हमारे पास भाजपा की तुलना में वोटों का प्रतिशत अधिक है। 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्हें केवल 37 फीसदी वोट मिले थे, जिसका मतलब है कि मतदाताओं में भगवा विरोधी रुझान है।