आजकल हर किसी बात को रोग बना देने का फैशन सा चल पड़ा है। लिखने के लिये वही टॉपिक्स जब घिसने पिटने लगते हैं। नया कुछ कहने लिखने को नहीं रह जाता तो जो बातें शाश्वत काल से सही मानी गयी हैं समय की कसौटी पर भी जिन्हें जांच परख लिया गया है, उन्हें ही नकारने का शौक पैदा हो गया है कुछ लोगों में।
जो सच्चे प्रेमी हैं वे प्रेम की मर्यादा जानते हैं। प्रेम एक ऐसा जज्बा है जो मनुष्य को सकारात्मक सोचने के लिए प्रेरित करता है। जो जुनून है उसे हम प्रेम की श्रेणी में नहीं रख सकते हैं। जुनून तो किसी को भी किसी भी बात को लेकर हो सकता है।
सच्चे प्रेमी अपनी प्रेमिका को खुश रखना चाहते हैं वे उसकी खुशी के लिये जमीन आसमान एक कर सकते हैं। वे हमेशा साथ रहना चाहते हैं। उनके लिये जैसे सारा संसार अपने प्रिय में समा जाता है।
ये भी जिन्दगी का एक फेज होता है जैसे बच्चा बचपन में शरारतें करता है ये उसकी केमिस्ट्री है जवानी में इश्क कर बैठता है ये भी उसकी केमिस्ट्री है यह उसके भीतर की पुकार है।
ये भीतर की पुकार रोग कैसे हो सकती है? आज आलम यह है कि जहां मेडिकल साइंस तरक्की करता जा रहा है उसमें भलाई के साथ बुराईयां भी शामिल होती जा रही हैं जिन डाक्टरों को डॉक्टरी पेशे से ज्यादा उसे दुकानदारी बनाकर पैसा कमाने का जुनून है वे अच्छे भले लोगों को रोगी बना देते हैं।
इसी तरह कई मनोवैज्ञानिक व्यक्ति के हर रिएक्शन को, हर मानसिक कार्यकलाप को कोई न कोई हाई फाई नाम देकर मानसिक रोग करार दे देते हैं।
प्रेम को रोग मानकर उसके लिये भी दवाएं इजाद हो गईं हैं। ये दवाएं प्रेम का उन्माद कम करके व्यक्ति को नार्मल बनाती हैं, ऐसा माना जाता है।
इस रोग के लक्षण क्या हैं? ये भी जान लें। पे्रेमी से मिलने की बे$करारी। उसके फोन का इंतजार, लव लैटर लिखना, पढऩा। प्रेमी के लिए उपहार खरीदना, प्रेमी के उपहार को अपनी सबसे अजीज चीज समझना, प्रेम में हार जाने पर दुनिया से विमुख हो जाना। गहरी निराशा में डूब जाना आदि।
क्या ये लक्ष्ण कहीं से भी असामान्य कहे जा सकते हैं? ये इंसान के इंसान होने का प्रतीक है। प्रेम केवल इंसान में नहीं जानवरों मेें भी पाया जाता है। पानी में रहने वाला एक पक्षी अपने जीवनकाल में सिर्फ एक ही जोड़ा बनाता है। चकोरी का चांद से प्रेम तो एक मिसाल बन गया है।
जीवन का प्रतीक ‘डोपामाइन रसायन जो प्रेम में उत्तेजना पैदा करता है शरीर को प्रकृति प्रदत एक अनमोल देन है कोई सिरफिरा ही इसका ट्रीटमेंट लेगा।
शीरी फरहाद, लैला मंजनू का इश्क आज उदाहरण बन गया है। कोई भी उनके प्यार को गलत नहीं कहेगा न ही ये कहेगा कि उन्हें काउंसलिंग की या इलाज की जरूरत थी।
प्रेम का संबंध मस्तिष्क के रसायन से हो या हृदय से ‘लव इज गॉड, इसमें दो राय नहीं। यह प्रेम ही है जिसने न जाने कितनी कविता कहानियां रच डाली महाकाव्यों को जन्म दिया है।
प्रेम कई तरह का हो सकता है कहीं इसका रूप चाहत है कहीं वात्सल्यमय, कहीं वासनात्मक, कहीं रोमांटिक, कहीं पजेसिव, कहीं प्लेटॉनिक। लेकिन सच्चा प्रेम निस्वार्थ होता है वो कभी प्रेमी को यह नहीं कहेगा ‘अगर मेरी नहीं हो सकती तो किसी और की भी नहीं ये कहकर ठांय कर गोली मार देना या एसिड फेंककर प्रेमिका को जीवित लाश बना देना ये प्रेम नहीं, एक विकृति है। इसका इलाज अगर हो सकता है तो जरूर करवा लेना चाहिए लेकिन प्रेम जैसे पवित्र शब्द को ऐसी मानसिकता के साथ जोड़कर बदनाम नहीं करना चाहिए।
प्रेम है तो जीवन है। अगर प्रेम न हो तो जीवन कैसा होगा ठीक जंगल में रहने वाले जंगली जानवरों की तरह। प्रेम ही है जो इंसान को इंसान मानता है। जीवन में रंग भरता है। जीवन को मायने देता है। प्रेम से बढ़कर कोई प्रेरणा नहीं। प्रेम व्यक्ति को बुलंदियों तक पहुंचा सकता है। प्रेम सभी बुरे भावों पर भारी है। प्रेम के रहते कोई न बुरा सोचेगा न बुरा करेगा ये एक मेडिटेशन है जो चित्त को एकाग्र करने की शक्ति रखता है। व्यक्ति के पास बुद्धि है, समझ है, जो प्रेम को कंट्रोल कर सकती है। प्रेम को विकृत होने से रोक सकती है। जैसे हंसना रोना कोई रोग नहीं वैसे ही प्रेम भी कोई रोग नहीं।
उषा जैन ‘शीरी-विनायक फीचर्स