मन वचन और कर्म के बंधन से मुक्त हो जाओ सुख मिलेगा। अपने संकल्प, भाव तथा कर्म परम पिता परमात्मा के प्रति समर्पित कर दो, उसकी आज्ञा का पालन करते हुए मिलने वाले सुखों को सभी में बांटो केवल अपने लिए आनन्द की मांग छोड़ दो, आनन्द स्वयं मिलने लग जायेगा। प्राणियों के दुख दूर करने का लक्ष्य निर्धारित करो आपका दुख स्वत: ही मिट जायेगा। जिस आदमी को जीवन में जब महत्वाकांक्षा का पागलपन चढ़ जाता है उसका जीवन विषाक्त हो जाता है, उसके जीवन की शान्ति समाप्त हो जाती है। उसके जीवन में न आनन्द होगा न विश्राम होगा। वह तो रूककर यह भी नहीं सोच पाता कि वह कर क्या रहा है? बेशक अधिक प्रगति न कर पाओ, परन्तु अधिक महत्वाकांक्षी होकर अपनी शान्ति समाप्त तो न करो, महत्वाकांक्षी सदैव भविष्य के सपने देखता है। सोचता है इतना धन मिलेगा, तब जीऊंगा, जब इतनी बडी गाड़ी होगी, तब जीऊंगा, जब इतना बड़ा मकान होगा, तब जीऊंगा, अभी कैसे जी सकता हूं। पूर्व जन्मों के किन्हीं पुण्य कर्मों के कारण सौभाग्य से इनकी पूर्ति हो जाती है, तो उसकी महत्वाकांक्षाओं का जाल आगे और आगे चला गया होता है तथा इसी जाल में फंसकर वह काल के गाल में समा जाता है।