Sunday, April 13, 2025

चतुर्दशी पर देवी की मुख्य पूजा के दिन देवबंद के मां श्री त्रिपुर बाला सुंदरी शक्तिपीठ पर रही श्रद्धालुओं की भारी भीड

देवबंद (सहारनपुर)। चतुर्दशी (चौदस) पर देवी की मुख्य पूजा के दिन देवबंद के दूर-दूर तक विख्यात श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी शक्तिपीठ पर देवी दर्शन और प्रसाद चढाने के लिए प्रात:काल से शुरू हुई श्रद्धालुओं की भारी भीड रात तक उमडी रही। बीती देर रात्रि 12 बजे के बाद से श्रद्धालु शक्तिपीठ पर पहुंचना शुरू हो गए थे। प्रात: तीन बजे देवी मां को प्रसाद चढना शुरू हुआ। इस वक्त देवी मां के भवन से लेकर बडी दूर तक श्रद्धालुओं की लंबी-लंबी लाइनें लगी हुई थी। सभी श्रद्धालुओं द्वारा देवी मां के दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त कर प्रसाद चढाया गया और मनौती मांगी गई। इसी के साथ बीती देर शाम देवबंद के श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी शक्तिपीठ के मैदान पर हर वर्ष की भांति चौदस पर लगने वाले विशाल मेले का उद्घाटन भी राज्य मंत्री कुंवर बृजेश सिंह द्वारा किया गया।
https://royalbulletin.in/hindu-maternal-uncle-played-the-relationship-of-the-relationship-at-the-wedding-of-muslim-niece-bid-farewell-to-helicopter/321915
देवबंद में उत्तरी भारत का ऐतिहासिक, पौराणिक एवं दूर-दूर तक विख्यात लाखों लोगाें की आस्था एवं श्रद्धा का प्रतीक श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी का यह शक्तिपीठ आदि-अनादिकाल से मौजूद है। देवबंद शक्तिपीठ पर विराजमान देवी मां के दर्शन को लेकर श्रद्धालुओं में ऐसा अटूट विश्वास है कि मां बाला सुंदरी की सच्चे मन से पूजा-अर्चना और आराधना करने वाले सभी भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती है। देवबंद शक्तिपीठ की एक खासियत यह भी हैं कि देश में प्राचीन समय में छूआ-छूत के चलते समय भी इस शक्तिपीठ के द्वार कभी दलितों के लिए बंद नहीं हुए और मां का आंचल हमेशा सभी के लिए खुला रहा। जिसका उदाहरण यह हैं कि गर्भगृह के समक्ष स्थापित मां के वाहन (सिंह) की प्रतिमा की सेवा एक बाल्मीकि परिवार द्वारा की जाती हैं। मां भवानी राज राजेश्वरी श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी महाशक्ति जगदंबा का रूप है।
https://royalbulletin.in/villagers-jammed-to-file-a-murder-report-in-old-age/322021
ब्रहा-विष्णु और महेश तीन पुर (शरीर) जिनमें है, वह त्रिपुर बाला है। तंत्रसार के मुताबिक मां राजेश्वरी त्रिपुर बाला सुंदरी प्रातः कालीन सूर्य मंडल की आभा वाली है। इनकी चार भुजा एवं तीन नेत्र है। वह अपने हाथ में पाश, धनुष-बाण और अंकुश लिए हुए है तथा उनके मस्तक पर बालचंद्र सुशोभित है। मां त्रिपुर बाला सुंदरी ने 105 ब्रहमांडों के अधिपति भंडासुर का वध किया जबकि चौदह भुवन का एक ब्रहमांड होता है और एक ब्रहमांड में चौदह लोक होते है। मां श्री त्रिपुर बाला सुंदरी देवी की उपासना करने वालो को भोग और मोक्ष दोनो प्राप्त होेते है। मां त्रिपुर बाला सुंदरी ने भगवती लक्ष्मी की आराधना की थी। जिससे प्रसन्न होकर भगवती लक्ष्मी ने अपना उपनाम ‘श्री’ मां त्रिपुर बाला सुंदरी को अपने नाम से पहले धारण करने को कहा। इसीलिए उन्हें श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी कहा जाता है। देवबंद की वर्तमान स्थिति से उसके गौरवशाली अतीत का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है लेकिन देवबंद एक प्राचीन एवं महत्वपूर्ण नगर है इसका प्रमाण यहां के ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी शक्तिपीठ से जरूर मिलता है। कहा जाता है कि सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां के गहन वन में देवी दुर्गा के निवास के कारण यह नगर कभी ‘देवीवन’ के नाम से प्रसिद्ध था।
https://royalbulletin.in/controversy-over-cutting-connection-due-to-the-outstanding-bill-of-sso-inside-the-power-house/322017
कालांतर में जो ‘देवी बंद’ और फिर देवबंद कहा जाने लगा। एक अन्य मतानुसार ‘दुर्ग’ नाम के असुर का इसी स्थान पर संहार करने के कारण दुर्गा देवी की देवताओं द्वारा वंदना करने के कारण यहां का नाम ‘देवी वन्दना’ स्थल पड़ा जो बाद में ‘देवीवन्दन’ और फिर देवबंद हो गया। पौराणिक मत है कि देवताओं के बहुत अधिक संख्या में निवास करने के कारण इस स्थान को देववृन्द कहा जाता था, जो बाद में देवबंद हो गया। देवी का यह शक्तिपीठ वर्तमान में किसने बनवाया इसका कोई उल्लेख नहीं मिलता है लेकिन राजा रामचंद्र मराठा द्वारा मंदिर के अंतिम जीणोद्धार की बात कही जाती है। गर्भगृह के तीन चौथाई भित्ति चित्र नष्ट हो चुके है। नगर का यह शक्तिपीठ कितना प्राचीन है यह तो निश्चित रूप से नहीं बताया जा सकता किंतु यह कम से कम 200 वर्ष पुराना अवश्य है। महाभारत काल में पवित्र गंगा के यहां से होकर प्रवाहित होने का विवरण मिलता है। घने जंगलों के बीच प्रकृति की सुरम्य गोद में पतित पावनी गंगा के तट की इस मनोरम जगह पर पाण्डवों ने द्रौपदी के साथ अज्ञातवास के कुछ दिन यहां बिताए थे। उसी दौरान अर्जुन ने इस शक्तिपीठ की साधना भी की थी। समय के साथ अनेक साम्राज्य और धार्मिक संप्रदाय आये किंतु इस शक्तिपीठ की मान्यता लगातार बढ़ती ही चली गई। ऐसी मान्यता है कि यहां स्थापित प्रतिमा एकाएक प्रकट हुई थी। यह प्राकृतिक रूप में है और हमेशा चांदी के गिलासनुमा बर्तन से ढकी रहती है। पुजारी प्रतिदिन आंखे व कपाट बंद करके मां को स्नान आदि कराकर पुनः उसी बर्तन से ढक देते है और कहीं पर किसी भी शक्तिपीठ में देवी मां का ऐसा रूप देखने को नहीं मिलता है।
https://royalbulletin.in/36-mobile-stealing-chowkidar-nab-recovered-23-mobiles-recovered-from-girls-college-in-muzaffarnagar/321971
कहा जाता है। एक पुरानी मान्यता के मुताबिक इस शक्तिपीठ का संबंध उस घटना से जुड़ा है जब भगवान शंकर सती को कंधे पर उठाए लिए जा रहे थे तब जिन स्थानों पर विभिन्न अंग गिरे वहीं विभिन्न पीठ स्थापित हुए जिनमें से देवबंद का श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी शक्तिपीठ भी एक है। मंदिर की स्थापना के विषय में मार्कण्डेय पुराण में लिखा है कि एक बार भंडासुर राक्षस से त्रस्त जनता के प्राणो की रक्षा के लिए इस स्थान पर देवताओं ने महामाया से अनुनय की थी। लोगों की प्रगाढ़ आस्था का केंद्र बना यह शक्तिपीठ अपने भक्तों और श्रद्धालुओं की संख्या को गंगा की अविरल धारा की भांति लगातार बढ़ाता ही जा रहा है। देवबंद शक्तिपीठ की हमेशा से ही यह एक रहस्यपूर्ण बात रही है कि शक्तिपीठ पर चैत्र सुदी (चौदस) जो की देवी की मुख्य पूजा का दिन है उससे एक दिन पूर्व तेज हवाऐं, आंधी-तूफान एवं तेज वर्षा होती है। तेज हवाऐं, आंधी-तूफान एवं तेज वर्षा हर वर्ष की भांति अबकी बार भी बीती रात हुई है। क्षेत्र के बड़े-बूढों का कहना है कि देवी मां के शक्तिपीठ में आने और जाने के समय ऐसा सदियों से होता चला आ रहा है।
https://royalbulletin.in/36-mobile-stealing-chowkidar-nab-recovered-23-mobiles-recovered-from-girls-college-in-muzaffarnagar/321971
शक्तिपीठ में देवी का स्वरूप लगभग सात सेमी ऊंची प्रतिमा के प्राकृत रूप में विराजमान हैं। इन दिनों दस गुणा पंद्रहा सेमी की चांदी की शिवलिंगाकार आकृति (पिंडी) से आवृत है। मंदिर के सिंह द्वार के बाहर 18 बीघे भूमि में एक प्राचीन एवं मनोरम सरोवर है। जो ’देवीकुंड’ के नाम से विख्यात है। श्री त्रिपुर मां बाला सुंदरी देवी शक्तिपीठ की पौराणिकता का एक प्रमाण मंदिर के निकासी द्वार पर लगे पत्थर के लेख से भी मिलता है। इस पत्थर पर अज्ञात भाषा में कुछ उत्कीर्ण है। पुरातत्व विभाग के बड़े से बडे़ वैज्ञानिक यहां आए लेकिन आज तक भी इस पत्थर पर लिखा कोई नहीं पढ सका। अगर इस पत्थर पर लिखा कोई पढ पाता तो शायद इस शक्तिपीठ की पौराणिकता के बारे में और कुछ भी पता चल सकता।
यह भी पढ़ें :  मुज़फ्फरनगर में ओवरलोड ट्रक का कहर, गन्ने से भरा ट्रक पलटा, दो महिलाओं की मौत, कई घायल
- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

76,719FansLike
5,532FollowersFollow
150,089SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय