Saturday, April 26, 2025

सही प्रत्याशी का चयन ही जीत दिलाएगा

प्रत्याशी या पार्टी? कौन वरेण्य? मोदी मंत्र ने राजनीति के इस अजमंजस को दूर कर दिया। मोदी ने भाजपा की ऐसी प्राण प्रतिष्ठा की कि विगत के दोनों सामान्य निर्वाचनों में कितने ही अनसुने, ऐरा गैरा नत्थू खैरा चुनावी वैतरणी पार कर गये। मोदी नाम केवलम। कमोबेश यही ट्रेंड आसन्न सामान्य लोकसभा निर्वाचन में भी चलेगा।

 

हलांकि भारत निर्वाचन आयोग अपनी ओर से कोई कसर छोड़ नहीं रहा है कि चुनावी मैदान में उतरने वाला प्रत्याशी सही मायने में जन प्रतिनिधित्व के योग्य हो, साफ स्वच्छ छवि का हो और इसलिये प्रत्याशी की ओर से इस तरह का एक विस्तृत व्यौरा नामांकन करते वक्त अनिवार्य कर दिया गया है जिसमें उसकी सम्पत्ति के लेखे जोखे के साथ उसके आपराधिक अतीत का भी स्पष्ट विवरण हो। जनता को यह जानने का पूरा हक है कि जिसे वह चुनने जा रहा है वह समग्रता में कैसा है।

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मगर मोदी मैजिक के चलते भाजपा का टिकट मिल जाना जीत की गारंटी मान लिया गया है। कैंडिडेट कैसा हो कोई फर्क नहीं पडऩे वाला, चाहे वह थोपा हुआ आसमानी कैंडिडेट हो या फिर जनता के बीच कभी भी गया तक न हो। उसकी लोकगम्यता शून्य हो। फिर भी बीजेपी की लहर में मुहर कैंडिडेट पर नहीं कमल पर लगती है। यह विचारणीय है कि क्या यह एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिये उचित है?

 

मैंने इस मुद्दे पर काफी सोचा विचारा है और मेरा तो निष्कर्ष यही है कि किसी भी पार्टी की लहर के बजाय एक प्रबुद्ध मतदाता को सही प्रत्याशी का चयन करना चाहिए। यदि प्रत्याशी ठीक नहीं है, आरोपित है तो केवल इसलिये कि वह अमुक पार्टी का है, आंख मूद कर मतदान नहीं करना चाहिए। आखिर विवेक नाम की भी कोई चीज होती है। अन्धी भीड़ का लोकतंत्र हमें शनै: शनै: अंधकार की ओर ही ले जायेगा।

 

एक सही प्रत्याशी, आपका अपना प्रतिनिधि हमेशा आपके सानिध्य में रहेगा। पार्टी नहीं, वास्तविक जनसेवक तो वही है। मुझे लगता है कि भाजपा ने इस बार जहां जहां भी आसमानी प्रत्याशी उतारे हैं, वहां उनकी जीत संदिग्ध रहेगी भले ही ज्यादातर ऐसे प्रत्याशी विगत लोकसभा चुनावों में विजयी होते रहे हैं। माना कि माहौल राममय भाजपा के पक्ष में है किंतु मतदान की तारीख आते आते फिजा बदलेगी। सही प्रत्याशी का चयन ही जीत दिलाएगा।

 

भाजपा की पहली सूची में ऐसे कुछ अवांछित प्रत्याशी पार्टी ने जनता पर थोप दिये हैं। आशा है दूसरी या तीसरी सूची दुरुस्त आयेगी। जनता पर थोपा प्रत्याशी अनुचित है। उसका प्रतिकार होना ही चाहिए। सुनते आये हैं कि प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच समझ कर, निर्वाचन क्षेत्रों से विभिन्न एजेंसियों से प्राप्त फीडबैक के आधार पर होता है? यदि ऐसा सचमुच होता तो ‘हेलीकाप्टर कैंडिडेट कैसे आ टपकते हैं, समझ के परे है। निश्चय ही कुछ और फैक्टर निर्णायक बनते होंगे जिनके बारे में बस अटकलबाजी ही की जा सकती है।
-डॉ अरविंद मिश्रा

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