Saturday, May 18, 2024

सुप्रीम कोर्ट और मोदी की दोहरी मार झेलता राजनीतिक भ्रष्टाचार

मुज़फ्फर नगर लोकसभा सीट से आप किसे सांसद चुनना चाहते हैं |

मोदी ने राजनीतिक दलों के बीच की आपसी सहमति को तोड़ दिया है । अब वो किसी नेता का राजनीतिक कद देखकर उसके साथ रियायत बरतने को तैयार नहीं है। अभी तक राजनीतिक दलों में एक मौन सहमति बनी हुई थी कि सत्ता में होने पर विपक्ष के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ कार्यवाही नहीं की जाती थी । इससे आम आदमी यह महसूस कर रहा है कि अगर कोई गलत काम करता है तो उसे भी कार्यवाही का सामना करना पड़ सकता है, फिर वो चाहे कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो । सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की भी आज जनता में सराहना हो रही है । सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि अब रिश्वत लेकर वोट दिया या प्रश्न पूछा तो सांसद और विधायक को विशेषाधिकार के तहत मुकदमे से छूट नहीं दी जायेगी । 1998 में अदालत ने ऐसे मामलों में सांसदों और विधायकों को छूट दे दी थी लेकिन अब वो फैसला पलट दिया गया है । उस फैसले में कहा गया था कि कोई भी सांसद/विधायक अपना वोट बेच सकता है क्योंकि ये उसका विशेषाधिकार है । उस पर तभी मुकदमा चलाया जा सकता है, जब वो रिश्वत देने वाले के अनुसार वोट न करे । ये बड़ा अजीब तर्क था कि रिश्वत लेना अपराध नहीं था लेकिन रिश्वत लेकर बेईमानी करना अपराध माना गया । यही कारण है कि कहीं कोई सांसद या विधायक बिक न जाए, इस डर से राजनीतिक पार्टियां अपने चुने हुए प्रतिनिधियों को भेड़-बकरी की तरह बसों या हवाई जहाजों में भरकर किसी दूसरे राज्य में भेज देती हैं । उनके मोबाइल छीनकर किसी होटल या रिसोर्ट में बंद कर दिया जाता है । उन्हें यह डर होता है कि कहीं उनके नेता रिश्वत लेकर किसी दूसरी पार्टी के पक्ष में वोट न डाल दें । सरकार गिराने या बचाने के लिए ऐसा किया जाता है ।
संविधान के अनुच्छेद 105 (2) और 194 (2) के तहत सांसदों और विधायकों को सदन के अंदर कुछ भी कहने और करने का विशेषाधिकार मिला हुआ है । इसके कारण सांसद/विधायक सदन में अपने भाषणों में उल्टे-सीधे आरोप लगाकर निकल जाते हैं और उनका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पाता है क्योंकि सदन में दिये गये बयानों के लिये किसी भी अदालत में मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है । उनके खिलाफ सिर्फ सदन के नियमों के तहत कार्यवाही की जा सकती है लेकिन अगर नेता सत्ता पक्ष का हो तो वो भी बहुत मुश्किल होती है । इसका सबसे बड़ा उदाहरण दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल हैं, जो कई बार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर प्रधानमंत्री मोदी पर भ्रष्टाचार के बड़े-बड़े आरोप लगा देते हैं लेकिन सदन से बाहर आकर वो बिल्कुल चुप हो जाते हैं । वास्तव में वो जानते हैं कि सदन में दिए गए उनके बयानों पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता और सदन में उनकी इतनी ताकत है कि उनके खिलाफ कुछ नहीं हो सकता । जो आरोप वो सदन में मोदी पर लगाते हैं, वही आरोप वो अगर सदन के बाहर लगाना शुरू कर दें तो उनके लिए बड़ी मुश्किल खड़ी हो जायेगी । वो जानते हैं कि निराधार आरोपों के लिए उनको जेल की हवा खानी पड़ सकती है । केजरीवाल ऐसा राजनीतिक कारणों से करते हैं, इसके लिए उनको कोई पैसे नहीं देता है । सवाल उन सांसदों और विधायकों का है, जो रिश्वत लेकर वोट डालते हैं या प्रश्न पूछते हैं । माननीय अदालत के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि रिश्वत लेकर वोट डालना सांसदों/विधायकों का विशेषाधिकार नहीं है । अब वो रिश्वत लेकर न तो प्रश्न पूछ सकते हैं और न ही कोई विशेष प्रकार का भाषण दे सकते हैं । अदालत के इस फैसले के बाद टीएमसी नेता महुआ मित्रा के लिए भी समस्या खड़ी हो गई है क्योंकि वो भी रिश्वत लेकर सवाल पूछने के मामले में फंसी हुई हैं । वैसे देखा जाए तो अदालत के फैसले ने सांसदों/विधायको को मिलने वाले विशेषाधिकारों पर सवाल खड़ा कर दिया है । अब ये संसद और राज्यों की विधानसभाओं के ऊपर है कि वो इस बारे में क्या सोचती हैं । यह तो मुश्किल लगता है कि इन विशेषाधिकारों को समाप्त कर दिया जाए लेकिन इनके गलत इस्तेमाल पर जरूर रोक लगनी चाहिए । ये जनता के सेवक हैं लेकिन इन विशेषाधिकारों के कारण ये लोग खुद को जनता से ऊपर समझते हैं । एक लोकतांत्रिक देश में इन नेताओं के पास ऐसे विशेषाधिकार होना उचित नहीं है।
प्रधानमंत्री मोदी ने देश की जांच एजेंसियों को भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्यवाही करने की छूट दी हुई है । मोदी सरकार के आने से पहले जनता ईडी को जानती तक नहीं थी लेकिन आज ये एजेंसी भ्रष्ट नेताओं के लिए आतंक बनी हुई है । यूपीए शासन में बना पीएमएलए कानून नेताओं को डराने लगा है और आज कांग्रेस ही इस कानून पर सवाल उठा रही है । मोदी के आने से पहले ईडी भी थी और उसके पास पीएमएलए कानून भी था लेकिन वो नेताओं के खिलाफ ऐसी कार्यवाही नहीं करती थी । सीबीआई, ईडी और आयकर विभाग आज बहुत अच्छे ढंग से अपना काम कर रहे हैं । ये एजेंसियां सिर्फ नेताओं के खिलाफ ही नहीं बल्कि व्यापारियों और उद्योगपतियों के खिलाफ भी कार्यवाही कर रही हैं । विपक्ष सरकार पर इन एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाता है लेकिन सच्चाई यह है कि सिर्फ तीन प्रतिशत मामले ही नेताओं के खिलाफ हैं, बाकी मामलों में व्यापारी और उद्योगपति फंसे हुए हैं । देश में भ्रष्टाचारियो में फैले हुए डर के कारण ही राजस्व में बढ़ोतरी हो रही है । ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार और टेक्स चोरी खत्म हो गई है लेकिन कमी जरूर आई है । लेकिन यहां मैं यह भी स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि सरकारी कार्यालयों में फैले भ्रष्टाचार में कमी नहीं आई है । मोदी सरकार इस क्षेत्र में कोई काम नहीं कर पाई है लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि अगर राजनीतिक भ्रष्टाचार कम होगा तो दूसरे भ्रष्टाचार पर भी असर होगा । राजनीतिक भ्रष्टाचार ही है, जो दूसरे क्षेत्र में फैले भ्रष्टाचार को संरक्षण देता है । जब नेताओं को भ्रष्टाचार का मौका नहीं मिलेगा तो वो अधिकारियों के भ्रष्टाचार की अनदेखी नहीं करेंगे । जब उन्हें खुद भ्रष्टाचार का मौका नहीं मिलेगा तो ये लोग व्यापारियों और उद्योगपतियों के भ्रष्टाचार में भी उनका साथ नहीं देंगे।
पिछले कुछ सालों से देखने में आ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट और उसके अधीनस्थ न्यायालयों का भ्रष्टाचार के खिलाफ रवैया सख्त होता जा रहा है । देश के कई विपक्षी दल इक_े होकर ईडी और सीबीआई के दुरुपयोग की शिकायत लेकर सुप्रीम कोर्ट गए थे लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें कोई राहत नहीं दी । पीएमएलए कानून के खिलाफ भी विपक्ष सुप्रीम कोर्ट गया था लेकिन उसे अदालत ने सही ठहरा दिया है । सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि नेता चाहते हैं कि उनके साथ अलग से व्यवहार हो लेकिन ऐसा नहीं हो सकता । सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये एजेंसियां जैसी कार्यवाही दूसरों के खिलाफ करती हैं, वैसी ही कार्यवाही नेताओं के खिलाफ करने का अधिकार उनके पास है । नेताओं के पास बड़े-बड़े वकीलों की फौज है, जिसके कारण वो कुछ समय तक तो कार्यवाही से बच जाते हैं लेकिन देर सवेर उन्हें अदालत का सामना करना पड़ता है । यह ठीक है कि अभी सिर्फ कुछ ही नेता जेल तक पहुंचे हैं लेकिन दर्जनों नेता मुकदमों का सामना कर रहे हैं । कितने ही नेता जमानत पर बाहर हैं लेकिन कब तक बाहर रहेंगे, कहा नहीं जा सकता । हमें न्यायपालिका की भूमिका को समझना होगा क्योंकि सरकार के पास सिर्फ आरोपी को पकड़ कर अदालत के सामने पेश करने का अधिकार है, उसको जेल भेजने का अधिकार अदालत के पास ही है । विपक्ष मोदी सरकार पर एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाता है तो सरकार का जवाब यही होता है कि अगर केस झूठा है तो अदालत में साबित करो । अदालत ने कई भ्रष्ट नेताओं को जेल में बंद कर रखा है, जिसके कारण जनता में विपक्ष का यह विमर्श नहीं चल पा रहा है कि उसके खिलाफ झूठे मुकदमें चलाये जा रहे हैं । देखा जाये तो सुप्रीम कोर्ट और सरकार मिलकर भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्यवाही कर रहे हैं । यही कारण है कि जब सुप्रीम कोर्ट ने रिश्वत लेकर सवाल पूछने और वोट डालने पर अपना फैसला सुनाया तो प्रधानमंत्री मोदी ने उसका स्वागत किया । मोदी भी राजनीति में शुचिता लाना चाहते हैं और इसके लिए प्रयास कर रहे हैं । सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भी राजनीति में शुचिता लाने का काम करेगा।
-राजेश कुमार पासी

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