आजादी की लड़ाई में अनेक महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया और आजादी के बाद भी महिलाओं का राजनीति मेें उल्लेखनीय योगदान रहा। राजनीति में महिलाओं का प्रवेश एक अच्छी बात है। लेकिन, तब के और आज के राजनीतिक माहौल में जमीन-आसमान का फर्क है।
आज का राजनैतिक माहौल इतना गंदा हो चुका है कि अब वहां सीधे सादे शरीफ पुरुष का भी टिक पाना असंभव है। फिर महिलाओं के साथ सिर्फ महिला होने की वजह से अनेक परेशानियां जुड़ जाती हैं। यदि कोई महत्वाकांक्षी महिला अपने बूते पर राजनीति में अपनी पहचान बनाने की कोशिश करती है तो उसका वही हश्र होता है, जो मध्यप्रदेश में सरला मिश्र और दिल्ली में नैना साहनी का हुआ था। आज राजनीति में वही महिला टिक सकती है, जिसकी पारिवारिक पृष्ठभूमि राजनैतिक हो। पंचायत से लेकर लोकसभा तक या फिर दिल्ली की सोनिया गांधी से बिहार की राबड़ी देवी तक ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं कि किसी राजनेता की पत्नी, बेटी या बहू ही राजनीति में आती है।
मेरे विचार से आम महिलाओं विशेषकर युवा लड़कियों को, राजनीति से दूर ही रहना चाहिए। यदि कोई महिला देश की सेवा ही करना चाहती है तो वह सामाजिक संगठनों से जुड़कर काम कर सकती है फिर बाद में प्रौढ़ावस्था में जब उन्हें पर्याप्त अनुभव और ज्ञान हो जाए, तब उन्हें अपनी योग्यता के बल पर राजनीति में आना चाहिए।
भारतीय राजनीति और समाज में यह सवाल लंबे समय से बना हुआ है कि महिलाओं को राजनीति में आना चाहिए या नहीं। यूं सोचने में यह सवाल बड़ा अप्रांसगिक लगता है, क्योंकि इस देश में लंबे समय तब एक महिला प्रधानमंत्री का शासन रहा और मुख्यमंत्री व राज्यपाल पदों पर भी काफी महिलाएं आसीन थीं और अभी भी हैं, लेकिन इस सवाल की जड़ें बहुत गहरी हैं और हमारे समाज पर काबिज पितृ सत्तात्मक सोच की परिचायक है।
मौजूदा दौर में महिलाओं को राजनीति से दूर रहने की सलाह देने वाले अपनी बात के समर्थन में यह तर्क पेश करते हैं कि राजनीति में अपराध हावी है, सिद्धान्तहीनता व भ्रष्टता का बोलबाला है आदि। राजनीति की खौफनाक तस्वीर पेश करके वे महिलाओं को इससे बचकर चलने की सलाह देते हैं। इस तरह से देश व अर्थव्यवस्था के बारे में सर्वोच्च फैसला लेने की प्रक्रिया में प्रवेश करने से ही महिलाओं को हतोत्साहित किया जाता है। सवाल यह है कि अगर मौजूदा राजनीति दुरुस्त नहीं है तो क्या महिलाओं के घर बैठने भर से यह ठीक हो जाएगी।
इसके साथ ही जब तमाम विपरीत परिस्थितियों का सामना करते हुए आज महिलाएं जीवन के कमोबेश हर क्षेत्र में दाखिल हो चुकी हैं तो वे सत्ता में भागीदारी और वह भी बराबर की भागीदारी से क्यों वंचित रहें। हाल ही के वर्षों में महिलाओं में राजनीति में भागीदारी करने, नेतृत्वकारी भूमिका निभाने का जबरदस्त रुझान दिखाई दे रहा है। इसी के चलते सत्ता (संसद, विधान सभा) में 33 फीसदी की हिस्सेदारी की मांग ने भी जोर पकड़ा है।
आज के दौर में जब महिलाओं की भूमिका सिर्फ घर की चहारदीवारी तक न सीमित रहकर तमाम क्षेत्रों में विस्तार पा रही है। उसे राजनीति से दूर रखना पूरी तरह आधी दुनिया के साथ अन्याय होगा। आखिर आधी दुनिया की भी सत्ता पर दावेदारी बराबर की बनती है। राजनीति की बुराइयों को गिनाकर इससे उसे दूर रखने की साजिश उसी पुरुषवादी वर्चस्व की निशानी है, जो महिलाओं को सिर्फ घर तक सीमित रखना चाहता है या बाहर भी उतना ही आने देना चाहता है, जितने में उसे चुनौती न मिले। इसलिये महिलाओं को मजबूती के साथ बढ़-चढ़कर राजनीति में शिरकत करनी चाहिए, ताकि देश व समाज संबंधी महत्वपूर्ण फैसलों में उनका बराबरी का दखल हो।
निर्मला – विनायक फीचर्स